बलियाः अब नगर निकाय चुनाव में नई-नई तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके लिए जिला प्रशासन महीनों पहले कमर कस कर इंतजामों में जुट जाता है। लेकिन 1885 में गठित हुई जिले की बांसडीह नगर पंचायत में 1933 तक हाथ उठाकर चेयरमैन का चुनाव होता था। जिले में दो नगर पालिका और 10 नगर पंचायतों के अपेक्षाकृत बांसडीह का इतिहास हमेशा से अलग रहा है। जानकारों के अनुसार बांसडीह नगर पंचायत का गठन देश की आजादी से बहुत पहले 1885 में ही हो गया था।
शुरू में यहां अंग्रेज प्रशासक रहे। 1925 में पहला चुनाव हुआ था। जिसे नोटिफाइड एरिया का नाम दिया गया था। तब 1925 के चुनाव के दौरान दो प्रत्याशी बाबू गोविंद प्रसाद सिंह एवं चंद्रशेखर प्रसाद सिंह चुनावी मैदान में उतरे थे। जिसमें गोविंद प्रसाद सिंह पहले चेयरमैन चुने गए। कार्यकाल की बात करें तो नगर पंचायत के चेयरमैन का दो साल का ही होता था। 1925 में नगर पंचायत बांसडीह के चुनाव का तरीका बहुत आसान था। मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रत्याशी के साथ-साथ जनता आती थी। वहीं पर हाथ खड़ा कराकर जिसके पक्ष में ज्यादा हाथ लोगों का उठता था, उसे चेयरमैन चुन लिया जाता था। यह सिलसिला 1933 से बैलट पेपर से चुनाव होने तक चलता रहा।
1925 का कार्यकाल पूरा होते ही 1927 में चेयरमैन का कार्यकाल दो वर्ष से बढ़ाकर कर तीन वर्ष का कर दिया गया। एक बार फिर बाबू गोविंद प्रसाद सिंह व चंद्रशेखर प्रसाद सिंह के बीच में चुनाव हुआ। बाबू गोविंद प्रसाद सिंह चुनाव जीतने के बाद चेयरमैन हुए। 1930 में गोविंद प्रसाद सिंह की मृत्यु हुई। चंद्रशेखर प्रसाद सिंह को निर्विरोध चैयरमैन चुन लिया गया। वजह कि उस समय गोविंद प्रसाद सिंह के परिवार से कोई खड़ा नहीं हुआ। चंद्रशेखर प्रसाद सिंह का कार्यकाल 1933 तक चला। इसके बाद बैलेट पेपर से चुनाव होने लगा।
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अब तक का इतिहास
ठाकुर बैजनाथ सिंह 1933 से 1952 तक चेयरमैन रहे। 1952 से 1961 तक वीर विक्रम सिंह उर्फ टुन जी चेयरमैन रहे। 1952 के बाद चेयरमैन का कार्यकाल पांच साल का हो गया। 1961 में वीर विक्रम सिंह की मृत्यु के बाद फिर से नगर पंचायत की जनता ने ठाकुर बैजनाथ सिंह को निर्विरोध अपना चेयरमैन चुन लिया। वहीं, 1967 में ठाकुर बैजनाथ सिंह क्षेत्र के विधायक भी चुन लिए गये। बीच में ही पद खाली होते ही नगर वार्ड कमेटी द्वारा चंद्रिका पांडेय को वाइस चेयरमैन चुना गया।
1971 में विजयपाल सिंह नगर के चेयरमैन बने और 1977 तक रहे। उनका कार्यकाल सात वर्ष का रहा। क्योंकि 1975 में इमरजेंसी लागू होने के चलते चुनाव नहीं हो पाया। इसलिए डेढ़ वर्ष कार्यकाल और बढ़ा दिया गया। फिर सरकार ने पूरे प्रदेश में 17 वर्षों तक नगर पंचायतों का चुनाव नहीं कराया। उसके बाद फिर चुनाव शुरू हुआ और संजय कुमार सिंह मुन्ना चेयरमैन बने और 1994 फरवरी तक चेयरमैन रहे। एक बार फिर एक साल तक चुनाव नहीं हुआ और 1995 नवंबर में पुनः चुनाव हुआ। जिसमें शकुंतला देवी महिला चेयरमैन बनीं। जिनका कार्यकाल 2000 तक रहा। उसके बाद 2001 में नंदलाल सिंह चेयरमैन बने। फिर 2006 में धीरेंद्र बहादुर सिंह चुन्ना चेयरमैन बने। 2011 में मनोरमा सिंह चेयरमैन बनीं लेकिन चार महीने बाद ही उनकी मृत्यु हो गई। जिस कारण 2012 में उपचुनाव हुआ। जिसमें सुनील कुमार सिंह बब्लू चैयरमैन बने और 2017 तक रहे। वर्तमान में रेनू सिंह चैयरमैन हैं।
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