भारत की चुनावी व्यवस्था पर उठते, बेजा सवाल और हकीकत

0
34
unnecessary-questions-raised

भारत में निर्वाचन प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण अंग इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) है, जिसने चुनावी प्रक्रिया को पारदर्शी, तथ्यात्मक और सरल बना दिया है। भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली में करीब दो दशक से हर संसदीय और विधानसभा चुनाव में सटीक परिणाम के लिए ईवीएम का ही इस्तेमाल किया जा रहा है। ईवीएम को आशंकाओं, आलोचनाओं और आरोपों का भी सामना करना पड़ा है, लेकिन चुनाव आयोग का कहना है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने में EVM बहुत अहम भूमिका निभाती है। इसने बूथ कैप्चरिंग और बाहुबल से चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने वालों पर रोक लगा दी है।

देश में पिछले कुछ वर्षों से चुनावों में हार-जीत के परिणाम सामने आने के बाद विपक्षी दलों ने EVM पर कई तरह के सवाल खड़े किए गए हैं, जिनके समर्थन में आज तक कोई भी व्यक्ति, संस्था या राजनीतिक दल चुनाव आयोग के समक्ष मजबूत तथ्य प्रस्तुत नहीं कर पाया है। EVM पर बेजा सवाल उठाकर विपक्ष ने भारतीय लोकतंत्र और चुनावी प्रक्रिया को लेकर पूरी दुनिया में गलत संदेश देने का काम किया है, जो लोकतांत्रिक प्रणाली और विदेशों में भारत की साख को नुकसान पहुंचाने के अलावा कुछ और हासिल नहीं है।

भारत में इस्तेमाल होने वाली EVM को देश की ही दो सरकारी कंपनियां बनाती हैं, इनमें पहली कंपनी बेंगलुरु स्थित भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और दूसरी हैदराबाद स्थित इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड हैं। यही कंपनियां मशीन का परीक्षण करने, उनका सीरियल नंबर जारी करने और सत्यापन करने का काम करती हैं। देश में ईवीएम के इस्तेमाल को लेकर आम सहमति साल 1998 में बनी और मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली की 25 विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव में इसका इस्तेमाल हुआ। इसके बाद में साल 1999 में 45 सीटों पर हुए चुनाव में भी ईवीएम इस्तेमाल की गई। फरवरी 2000 में हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान 45 सीटों पर ईवीएम इस्तेमाल की गई। मई 2001 में तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल और पुडुचेरी में हुए विधानसभा चुनावों में सभी सीटों पर मतदान के लिए ईवीएम इस्तेमाल हुईं।

2004 के आम चुनावों में सभी 543 संसदीय क्षेत्रों में मतदान के लिए 10 लाख से ज्यादा ईवीएम इस्तेमाल की गई थी। 2004 के आम चुनावों में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की सरकार बनी थी। इसके बाद 2007 में राज्यों के चुनाव और 2009 के लोकसभा चुनाव में भी ईवीएम का ही प्रयोग किया गया। इन सभी चुनावों में ईवीएम को लेकर कुछ सवाल उठाए गए और पारदर्शिता को बढ़ाने के लिए वोटर वेरिफाइबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपैट) को ईवीएम से जोड़ने का निर्णय लिया गया। वीवीपैट वाली ईवीएम का इस्तेमाल पहली बार साल 2013 में नगालैंड के नोकसेन विधानसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव के दौरान किया गया था। अब हर चुनाव में वीवीपैट का इस्तेमाल किया जाता है और यह ईवीएम का अभिन्न अंग है। इसमें ईवीएम का बटन दबाने के बाद वीवीपैट में पर्ची निकलती है, जिसमें मतदाता ने किसको मतदान किया, उसकी तस्वीर दिख जाती है।

जो पार्टी हारती है चुनाव, उसे EVM पर होता है संदेह

यह मतदान की पुष्टि का सबसे तथ्यात्मक आधार होता है। इसके बावजूद कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल समेत अनेकों राजनीतिक दल ईवीएम से चुनाव कराने की प्रक्रिया पर सवाल उठाते रहे हैं। ताज्जुब की बात है कि ईवीएम के माध्यम से ही चुनाव सम्पन्न होने पर जिन राज्यों में इन राजनीतिक दलों की सरकारें बनती हैं, वहां की चुनावी प्रक्रिया पर कभी भी कोई सवाल खड़ा नहीं किया जाता है। जिस चुनावी प्रक्रिया से 2002 से 2014 तक यूपीए की केंद्र में सरकार बनी थी, उसी प्रक्रिया के तहत हुए चुनावों के परिणामस्वरूप 2014 से 2024 तक राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार है। दरअसल, जो पार्टी चुनाव हारती है, उसे ईवीएम पर शक होने लगता है। 2009 में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले बैलेट पेपर से मतदान कराने की मांग की थी।

unnecessary-questions-raised

2009 में भाजपा ने बकायदा एक किताब ’डेमोक्रेसी एट रिस्क! कैन वी ट्रस्ट ऑवर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन?’ लॉन्च की थी। इस किताब को भाजपा नेता जीवीएल नरसिम्हा राव ने लिखा था। साल 2009 में ही भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस ने 90 ऐसी सीटों पर जीत हासिल की है, जो असंभव है। स्वामी ने दावा किया था कि ईवीएम के जरिए वोटों का ’होलसेल फ्रॉड’ संभव है। 2014 से केंद्र की सत्ता में भाजपा काबिज है। अब जो भी चुनाव सम्पन्न हो रहे हैं, उनमें विपक्षी दल लगातार ईवीएम पर सवाल खड़े कर रहे हैं, बैलेट पेपर से दोबारा चुनाव कराने की मांग कर रहे हैं। इस बार तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने केंद्र सरकार के गृहमंत्री अमित शाह पर 150 जिलाधिकारयों को धमकाने और चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने के आरोप लगाए हैं, जिसे गंभीरता से लेकर मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने तत्काल जयराम रमेश से तथ्यों से साथ जवाब मांग लिया है।

इसके अलावा चुनाव आयोग की वेबसाइट पर विलंब से वोटिंग प्रतिशत अपडेट करने समेत तमाम बिंदुओं को लेकर विपक्ष की ओर से बेजा सवाल उठाए गए लेकिन जब चुनाव आयोग ने तथ्यों के साथ प्रस्तुत होने के लिए कहा तो विपक्ष ने चुप्पी साध ली है। अब कहा जा रहा है कि हम ईवीएम का विरोध नहीं करते हैं, बल्कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग में हेरफेर के खिलाफ हैं। मतदान प्रणाली की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए वीवीपैट पर्चियों की 100 फीसद गिनती की जानी चाहिए, तभी नतीजों को लेकर सत्य सामने आएगा।

गौरतलब है कि कांग्रेस समेत कई दलों का आरोप है कि कई बड़े देशों में ईवीएम पर प्रतिबंध है, क्योंकि इसकी सुरक्षा और सत्यता पर कई देशों ने सवाल उठाया है। यही कारण है कि साल 2006 में ईवीएम का इस्तेमाल करने वाले सबसे पुराने देशों में शामिल नीदरलैंड ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया। साल 2009 में जर्मनी की सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम को असंवैधानिक बताते हुए और पारदर्शिता को संवैधानिक अधिकार बताते हुए ईवीएम पर रोक लगा दी। नतीजों को बदले जाने की आशंका को लेकर नीदरलैंड और इटली ने भी ईवीएम पर प्रतिबंध लगा दिया था। इंग्लैंड और फ्रांस में भी ईवीएम का इस्तेमाल नहीं हुआ है। अमेरिका जैसे देश के कई राज्यों में ईवीएम पर रोक है। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार का कहना है कि ईवीएम के आने से मतदान प्रक्रिया तेज और आसान हो गई है। पहले मतपत्रों की गिनती में कई-कई दिन लगा करते थे इसीलिए चुनाव परिणाम भी देरी से आते थे। अब ईवीएम मशीन के जरिए मतों की गिनती बेहद तेजी से होती है और 5-6 घंटे में परिणाम आ जाते हैं।

यह भी कहना है कि 40 बार इस देश की संवैधानिक अदालतों ने ईवीएम से जुड़ी चुनौतियों को देखा है। देश के कई राजनीतिक दलों की तरफ से कहा गया था कि ईवीएम में सेंधमारी हो सकती है, चोरी हो जाती है, मशीन खराब हो सकती हैं, नतीजे बदल सकते हैं लेकिन हर बार संवैधानिक अदालतों ने इसे खारिज कर दिया। गौरतलब है कि वर्तमान में दुनिया के लगभग 24 देश अपने यहां चुनावों में ईवीएम का इस्तेमाल कर रहे हैं। चुनाव में ईवीएम इस्तेमाल करने वाले देशों में ब्राजील, नॉर्वे, वेनेजुएला, भारत, कनाडा, बेल्जियम, रोमानिया, ऑस्ट्रेलिया, इटली, आयरलैंड, यूरोपीय संघ और फ्रांस जैसे कुछ देश शामिल है। हालांकि, इनमें से कुछ देशों में अब ईवीएम पर बैन है और वे बैलेट पेपर पर वापस लौट गए हैं। इनमें से कई देशों में यह पायलट फेज में हैं, वहीं भारत में बने ईवीएम को खरीदने वाले देशों में नेपाल, नामीबिया, केन्या और भूटान शामिल हैं। इनके अलावा श्रीलंका, बांग्लादेश, साउथ अफ्रीका, रूस, नाइजेरिया, घाना और मलेशिया ने भी भारत में बने ईवीएम को लेकर रुचि जाहिर की है, क्योंकि इन सभी देशों को भारत की चुनावी प्रक्रिया और ईवीएम पर पूरा भरोसा है। ऐसे में भारत के राजनीतिक दलों को भी चुनावी प्रक्रिया पर बेजा सवाल उठाने से बचना चाहिए। इससे हासिल कुछ नहीं होगा, लेकिन विदेशों में भारत के लोकतंत्र के प्रति जो सम्मान का भाव है, उस पर काफी बुरा असर पड़ेगा।

इंदौर में नोटा ने बनाया अनोखा रिकॉर्ड

मध्य प्रदेश की औद्योगिक राजधानी इंदौर ने लोकसभा चुनाव के इतिहास में भाजपा के शंकर लालवानी ने 11 लाख 75 हजार वोटों से ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। लोकसभा चुनाव के इतिहास में यह सबसे बड़ी जीत है। इतना ही नहीं इंदौर ने सबसे बड़ी जीत के साथ-साथ सबसे ज्यादा नोटा वोट का भी रिकॉर्ड बनाया है। इंदौर से शंकर लालवानी ने 11 लाख 75 हजार 92 वोटों से जीत दर्ज कर इतिहास रच दिया। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार संजय को पराजित किया। शंकर लालवानी को कुल 12 लाख 26 हजार 751 मत मिले, उनके बाद दूसरे नंबर पर नोटा रहा। इस संख्या ने भी भारत के चुनावी इतिहास में रिकॉर्ड बनाया। कुल 2 लाख 18 हजार 674 वोट नोटा में पड़े जबकि बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार संजय सोलंकी को 51,659 मत प्राप्त हुए।

यह भी पढ़ेंः-गलतियों पर बच्चों को डांटने और पीटने के बजाय अपनाएं Time Out तकनीक, जानें कैसे करता है असर

बता दें कि इससे पहले तक गुजरात के नवसारी से सीआर पाटिल देश में सबसे बड़े अंतर से जीते थे। 2019 लोकसभा चुनावों में उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी को 6,89,668 मतों से हराया था। इस बार भी वे अब तक की गणना में 07 लाख 65 हजार मतों से आगे चल रहे हैं, वहीं गृह मंत्री अमित शाह भी करीब 7 लाख मतों से जीत दर्ज की है। बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में गुजरात के वडोदरा से 5,70,128 वोटों से सबसे बड़ी जीत दर्ज की थी। 2014 के चुनाव में यह सबसे बड़ी जीत थी। 2014 में उन्होंने वडोदरा सीट छोड़ दी थी और सिर्फ वाराणसी सीट अपने पास रखी थी। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी 1984 के चुनाव में सबसे ज्यादा वोटों से जीतने वाले उम्मीदवार बने थे, उन्होंने उत्तर प्रदेश के अमेठी में मेनका गांधी को 3,14,878 वोटों से हराया था।

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर(X) पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)