लखनऊः नगरीय क्षेत्र के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं देने के लिए स्थापित किये गये स्वास्थ्य केंद्र खुद बीमार पड़े हुए हैं, ऐसे में लोगों को बेहतर सेवा देने की बात ही बेमानी लगती है। दवाओं की कमी और विशेषज्ञ चिकित्सकों के अभाव के चलते यह केंद्र सिर्फ शोपीस बनकर रह गए हैं और लोगों को निजी अस्पतालों में ही शरण लेनी पड़ रही है।
हम यह बात यूं नहीं कह रहे हैं, अगर आप टूड़ियागंज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र को देखें तो यह बात बिल्कुल इस केंद्र पर सटीक बैठती है। इस केंद्र पर हजारों मरीजों के स्वास्थ्य देखभाल की जिम्मेदारी है, पर इसकी हालत इतनी दयनीय है कि खुद इसका इलाज नहीं हो पा रहा है। दवाओं की भारी कमी के चलते मरीजों व तीमारदारों को निजी मेडिकल स्टोरों पर लुटना पड़ता है तो विशेषज्ञ चिकित्सकों की तैनाती न होने की वजह से समुचित इलाज भी नहीं मिल पाता है। स्वच्छता के मानकों पर तो यह स्वास्थ्य केंद्र विभाग के दावों की कलई खोलता नजर आता है, पर जिम्मेदारों को इसकी कोई खबर नहीं है। यह स्वास्थ्य केंद्र में मरीजों के लिए कुल 30 बेडों की व्यवस्था है, जबकि इमरजेंसी में मात्र एक बेड। यहां पर प्रतिदिन 100 से ज्यादा मरीज ओपीडी में पहुंचते हैं, लेकिन उसमें से कुछ ही लोगों को समुचित इलाज व दवा मिल पाती है। यह अस्पताल सिर्फ तीन चिकित्सकों के सहारे ही चल रहा है। महीनों से यह तमाम चिकित्सकों के पद खाली पड़े हुए हैं, लेकिन इसकी सुधि लेने वाला कोई नहीं है। डॉक्टरों के न होने की वजह से यहां आने वाले मरीजों के सामान्य रोगों का इलाज तो हो जाता है, लेकिन थोड़ी सी स्थिति गंभीर होने पर दूसरे जगह ही शरण लेनी पड़ती है।
बाहर से चकाचक, अंदर खस्ताहाल
यह स्वास्थ्य केंद्र बाहर से तो बिल्कुल चकाचक है, लेकिन अंदर की स्थिति बेहतर दयनीय है। कमरों में सीलन लगा हुआ है तो जगह-जगह प्लास्टर टूट चुके हैं। दीवारों पर वर्षों से रंगाई-पुताई का काम न होने की वजह से यह पूरी तरह जीर्ण-शीर्ण हो चुका है। ऐसे में यहां भर्ती मरीज इलाज के बावजूद व्यवस्था को देखकर बीमार हो जाते हैं।
शौचालय की दुर्दशा
मरीजों और तीमारदारों के लिए इस अस्पताल में शौचालय बने हुए हैं। ग्राउंड फ्लोर में बना शौचालय साफ-सुथरा है, लेकिन शौचालय की दीवारों में सीलन और प्लास्टर टूटा-फूटा है। देखने से ऐसा लगता है जैसे कि मरम्मत व पुताई का काम हुए बरसों बीत गए हों। यहां के शौचालयों में हाथ धुलने के लिए साबुन तक मौजूद नहीं ह, जबकि शौचालय के बाद व कोविड प्रोटोकाॅल के तहत भी हाथ धुलने की सलाह बार-बार दी जाती है।
दवाओं की भारी कमी
इस स्वास्थ्य केंद्र पर जरूरी दवाओं की अनुपलब्धता के चलते मरीजों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। यहां जिम्मेदार दवाओं की भरपूर उपलब्धता की बात तो कर रहे थे, लेकिन दवा वितरण काउंटर पर लगे बोर्ड में कई दवाओं के नाम के आगे क्रास का निशान मिला। जो इस बात की गवाही दे रहे थे कि ये दवाएं केंद्र पर उपलब्ध नहीं है। ऐसे में मरीजों को आम बीमारियों के लिए भी बाहर से ही दवाएं खरीदनी पड़ती हैं।
डॉक्टरोंकी कमी से व्यवस्था ध्वस्त
इस सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में महज कुल 3 डॉक्टरों की तैनाती है और इन्हीं के भरोसे पूरा स्वास्थ्य केंद्र चल रहा है। चिकित्सा अधीक्षिका डाॅ. प्रीति श्रीवास्तव ने बताया कि वर्तमान में दो चिकित्सक डाॅ. सर्वत और डाॅ. राबिया अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि अल्ट्रासाउंड वह खुद कर रही हैं और उन्होंने बकायदा इसके लिए ट्रेनिंग की है। चिकित्सकों की कमी है, इसके लिए विभाग को पत्र भी लिखा गया है।
जांच की सुविधा ठीक-ठाक
जानकारी मिली कि स्वास्थ्य केंद्र पर करीब 16 प्रकार की जांच की जा रही है। जिसमें से प्रमुख रूप से हीमोग्लोबिन, बीटी, सीटी, पेशाब की जांच, ब्ल्ड गु्रप जैसी सभी 16 प्रमुख जांच अस्पताल में ही की जा रही है। जांच की सुविधा यहां पर ठीक-ठाक मिली।
कोविड डेस्क में निःशुल्क कोरोना जांच
अस्पताल के बाहरी परिसर में लगे कोविड डेस्क में सुरक्षा के सभी इंतजाम दिखे। कोविड का टेस्ट कराने आने वालों की संख्या तो कम दिखी, लेकिन डेस्क इंचार्ज ने बताया कि हर दिन 10-15 केस कोविड टेस्ट के लिए आ ही जाते हैं।
गंदगी का बोल-बाला
नागरिकों को स्वच्छता का पाठ पढ़ाने वाले स्वास्थ्य केंद्र पर स्वच्छता का जमकर माखौल उड़ाया जा रहा है। अस्पताल के अंदरूनी हिस्सों के अलावा बाहरी दीवारों के किनारे जगह-जगह गंदगी फैली हुई दिखी। देखने से ऐसा लग रहा है कि यहां पर महीनों में ही सफाई होती है। ऐसे में यहां आने वाले मरीज इलाज के बावजूद गंदगी के चलते बीमार हो जाते हैं। इसके अलावा अस्पताल की दीवारें व सीढ़ियों के कोने पान की पीक से रंगे हुए दिखाई दिए। यह हाल तब है जब आए दिन अधिकारी यहां का निरीक्षण करने भी आते हैं।
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हमारे यहां डॉक्टरों की भारी कमी है। सिर्फ दो डॉक्टरोंकी मदद से यहां आने वाले मरीजों की देखभाल की जा रही है। हम अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश करते हैं, लेकिन मैनपॉवर की कमी के चलते थोडी बहुत कमी रह ही जाती है। रही बात साफ-सफाई की तो उसे जल्द ही दुरूस्त करा लिया जाएगा।
-प्रीति श्रीवास्तव, चिकित्सा अधीक्षिका