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बारह महीनों की तृतीया तिथि व्रत महिमा

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Tritiya Tithi Vrat Mahima: नारद पुराण के अनुसार, तृतीया तिथि के व्रत का विधिपूर्वक पालन करके विशेष रूप से नारी शीघ्र सौभाग्य लाभ प्राप्त करती है। वर प्राप्ति की इच्छा रखने वाली कन्या तथा सौभाग्य, पुत्र एवं पति की मंगलकामना करने वाली विवाहिता नारी चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को उपवास करके गौरी देवी तथा भगवान शंकर की सोने, चांदी, तांबे या मिट्टी की प्रतिमा बनाकर उसे गन्ध, पुष्प, दुर्वाकाण्ड आदि उपचारों तथा सुंदर वस्त्राभूषणों से विधिवत पूजित करके सधवा ब्राह्मण-पत्नियों अथवा सुलक्षणा ब्राह्मण कन्याओं को सिंदूर, काजल और वस्त्राभूषणों आदि से संतुष्ट करना चाहिए। स्त्रियों को सौभाग्य देने वाली जैसी गौरी देवी हैं, वैसी तीनों लोकों में कोई शक्ति नहीं है। वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया है, उसे ‘अक्षय तृतीया’ कहते हैं। वह त्रेता युग की आदि तिथि है। उस दिन जो सत्कर्म दान आदि किया जाता है, उसे वह अक्षय बना देती है।

वैशाख शुक्ल तृतीया को लक्ष्मी सहित जगद्गुरु भगवान नारायण का पुष्प, धूप और चन्दन आदि से पूजन करना चाहिए अथवा गांगाजी के जल में स्नान करना चाहिए। ऐसा करने वाला मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता है तथा सम्पूर्ण देवताओं से वंदित हो भगवान विष्णु के लोक में जाता है। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की जो तृतीया है, वह ‘रम्भा तृतीया’ के नाम से प्रसिद्ध है। उस दिन पत्नी सहित मनुष्य को श्रेष्ठ ब्राह्मण पुरोहित आचार्य की गन्ध, पुष्प और वस्त्र आदि से पूजा करनी चाहिए, साथ ही भोजन आदि से संतुष्ट कर दक्षिणा प्रदान करनी चाहिए। यह व्रत धन, पुत्र और धर्म विषयक शुभकारक बुद्धि प्रदान करता है।

आषाढ़ शुक्ल तृतीया को पत्नी सहित श्रेष्ट ब्राह्मण पुरोहित आचार्य में लक्ष्मी सहित भगवान विष्णु की भावना करके वस्त्र, आभूषण, भोजन और गोदान या गाय के मूल्य का दान के द्वारा उनकी पूजा करनी चाहिए, फिर प्रिय वचनों से उन्हें अधिक संतुष्ट करना चाहिए। इस प्रकार सौभाग्य की इच्छा से प्रेम पूर्वक इस व्रत का पालन करके नारी धन-धान्य से सम्पन्न हो देव-देव श्री हरि के प्रसाद से विष्णु लोक प्राप्त कर लेती है। श्रावण शुक्ल तृतीया को स्वर्ण गौरी व्रत का आचरण करना चाहिए। उस दिन स्त्री को भवानी की सोलह उपचारों से पूजा करनी चाहिए।

भाद्रपद शुक्ल तृतीया को सौभाग्यवती स्त्री विधिपूर्वक पाद्य-अर्घ्य आदि के द्वारा भक्तिभाव में पूजा करती हुई ‘हरितालिका व्रत’ का पालन करना चाहिए। सोने, चांदी, तांबे, बांस अथवा मिट्टी के पात्र में दक्षिणासहित पकवान रखकर फल और वस्त्र के साथ सदाचारी ब्राह्मण पुरोहित आचार्य को दान करना चाहिए। इस प्रकार व्रत का पालन करने वाली नारी मनोरम भोगों का उपभोग करके इस व्रत के प्रभाव से गौरी देवी की सहचरी होती है। आश्विन शुक्ल तृतीया को ‘बृहद गौरी व्रत’ का आचरण करना चाहिए। इससे सम्पूर्ण कामनाओं की सिद्धि होती है। कार्तिक शुक्ल तृतीया को ‘विष्णु गौरी व्रत’ का आचरण करना चाहिए। उसमें भांति-भांति के उपचारों से जगदवन्द्या लक्ष्मी देवी की पूजा करके सुहागिन स्त्री का मंगल द्रव्यों से पूजन करने के पश्चात उसे भोजन कराएं और प्रणाम करके विदा करना चाहिये। मार्गशीर्ष शुक्ल तृतीया को मंगलमय ‘हरगौरी व्रत’ करके ‘पूर्वोक्ताविधि’ से जगदम्बा का पूजन करना चाहिए। इस व्रत के प्रभाव से स्त्री मनोरम भोगों का उपभोग करके देवी लोक में जाती और गौरी के साथ आनंद का अनुभव करती है।

 इसमें भी पूर्वोक्त विधि से पूजन करके नारी ब्रह्मगौरी के प्रसाद से उनके लोक में जाकर आनंद भोगती है। माघ शुक्ल तृतीया को व्रत रखकर पूर्वोक्त विधि से सौभाग्य सुन्दरी की पूजा करनी चाहिए और उनके लिए नारियल के साथ अर्घ्य देना चाहिए। इससे प्रसन्न होकर व्रत से संतुष्ट हुई देवी अपना लोक प्रदान करती हैं। फाल्गुन शुक्ल पक्ष में कुल सौख्यदा-तृतीया का व्रत होता है। इस व्रत में रोली, गन्ध, पुष्प आदि के द्वारा पूजित होने पर देवी सबके लिए मंगलदायिनी होती है। सम्पूर्ण तृतीया व्रत में देवी पूजा, ब्राह्मण आचार्य पूजा, दान, हवन और विसर्जन– यह साधारण विधि होती है। इस प्रकार नारद पुराण के अनुसार तृतीय व्रत की विधि बतायी गयी है। जो भी नारी भक्तिपूर्वक व्रत का आचरण करती है, देवी गौरी पूजित होने पर मन की अभीष्ट वस्तुएं प्रदान करती हैं।

लोकेन्द्र शास्त्री