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कुंभकार के दीपक से दमकेगी आज की दीपावली

Clay lamps

लखनऊः दीपावली पर कुम्हार हफ्तों पहले से मिट्टी के दीपक बनाने के लिए दिन-रात जुटे होते हैं। हालांकि चाइनीज लैंप और झालरों के बीच कम होती इनकी बिक्री से कुम्हार काफी परेशान हैं। लखनऊ के पास स्थित चिनहट में रहने वाले कुम्हार कहते हैं कि चूंकि लोग मिट्टी से निर्मित दीयों को खरीदने में रुचि दिखा रहे हैं। ऐसे में हम भी नए-नए डिजाइन और आकार के दिए बना रहे हैं। हम कई दीयों को एक साथ रखने वाले स्टैंड भी बना रहे हैं, जिन्हें आप दीपावली के बाद भी घर की सजावट के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। चिनहट कभी मिट्टी से निर्मित चीजों का गढ़ हुआ करता था, लेकिन बाद में मांग में कमी के चलते धीरे-धीरे कारखानें और दुकानें बंद होती गईं। लोगों का कहना है कि हमें त्यौहारों को मनाने के पारंपरिक तरीकों से जुड़े रहना चाहिए। दीपावली पर मिट्टी के दीये जलाने का धार्मिक, आध्यात्मिक, शारीरिक, प्राकृतिक व आर्थिक महत्व भी है।

मिट्टी के दीये का धार्मिक महत्व

हिंदू धर्म में पंचतत्वांे की महत्वपूर्ण भूमिका हैं और उसी के द्वारा ही संपूर्ण ब्रह्मांड की रचना हुई है। यह पंचतत्व हैं- जल, वायु, अग्नि, आकाश व भूमि। मिट्टी का दीया इन पांचों तत्वों का प्रतिनिधित्व करता है। उसके अंदर यह पांचों तत्व विद्यमान होते है। इस कारण इसकी महत्ता अत्यधिक बढ़ जाती है। साथ ही जब इसे जलाया जाता हैं तो यह तीनों लोकों व तीनों काल का भी प्रतिनिधित्व करता हैं। दीपक में मिट्टी का दीया हमें पृथ्वी लोक व वर्तमान को दिखाता है, जबकि उसमें जलने वाला तेल या घी भूतकाल व पाताल लोक का प्रतिनिधित्व करता हैं। जब हम उसमें रुई की बत्ती डालकर प्रज्जवलित करते हैं तो वह लौ आकाश, स्वर्ग लोक व भविष्यकाल का प्रतिनिधित्व करती है।

मिट्टी के दीये का आध्यात्मिक महत्व

जो मन की शांति एक मिट्टी के दीपक से मिलती हैं, वह आपको रंग-बिरंगी रोशनी से कदापि नही मिल सकती है। वह हमें सिखाता है कि किस प्रकार स्वयं जलकर दूसरों के जीवन में रोशनी लाई जाती हैं। आप कल्पना कीजिये यदि विश्व से बिजली समाप्त हो जाए तो आप रोशनी कैसे करेंगे। यह एक प्राकृतिक तरीका है जो कभी समाप्त नही होगा।

मिट्टी के दीये का शारीरिक लाभ

दीपावली ऐसे समय में आती हैं, जब वर्षा ऋतु समाप्त हो चुकी होती हैं तथा शरद ऋतु का आरंभ होता है। ऐसे समय में वातावरण में कीट-पतंगे, मच्छर व अन्य जहरीले विषाणुओं की संख्या बढ़ जाती हैं। यह सभी हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं तथा हमें विभिन्न प्रकार की बीमारियां दे जाते हैं। इस दिन जब सरसों के तेल से मिट्टी के दीये जलाए जाते हैं तो इन सभी जीवाणुओं का नाश हो जाता हैं व इनका प्रभाव भी कम हो जाता है। इसलिये दीपावली के दिन सभी घरांे में एक साथ दीपक को प्रज्जवलित करने पर इन सभी कीट-पतंगों के नाश में सहायता मिलती है।

मिट्टी के दीये का प्राकृतिक लाभ

आजकल प्रकृति का दोहन बहुत बढ़ गया है, लेकिन समय के साथ-साथ जब प्रकृति की चोट हम पर लगती हैं तब हमें उसका महत्व समझ आता हैं। अपने आप को आधुनिक मानकर जो दुनिया आगे बढ़ रही थी, उसने अब अपने कदम रोक लिए है और वापस प्रकृति की ओर बढ़ने लगी हैं ताकि एक बेहतर भविष्य का निर्माण किया जा सके। ऐसे में अब लोग मिट्टी के दीपक को काफी महत्व दे रहे हैं और इसका बहुतायत प्रयोग भी कर रहे हैं। मिट्टी के दीपक से न सिर्फ तम का नाश होता है बल्कि यह हमारे पर्यावरण के भी अनुकूल होते हैं।

मिट्टी के दीये का आर्थिक लाभ

हमारे देश में कुम्हारों को मिट्टी का देवता कहा जाता है, क्योंकि कुम्हार मिट्टी को आकार देकर किसी भी रूप में ढाल सकता है। कबीर दास ने कहा कि गुरू कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि-गढ़ि काढै खोट। अंतर हाथ सहार दे, बाहर बाहै चोट।। इसका अर्थ है कि जिस प्रकार गुरू अपने शिष्यों को अच्छे संस्कार देकर उसके अवगुणों को दूर करता है, उसी प्रकार कुम्हार भी मिट्टी के अलग-अलग रूपों को संवार कर उसे पूजनीय बना देता है। प्राचीन काल से ही मिट्टी के दीपक व खिलौनों का एक बड़ा बाजार देश में रहा है, लेकिन आधुनिकता की अंधी दौड़ में इसकी दमक खो सी गई थी। पिछले कई वर्षों से लगातार बढ़ रहे वायु प्रदूषण के चलते लोग अब फिर इन मिट्टी के दीपकों की तरफ लौटने लगे हैं। ऐसे में इस बार कुम्हारों को दीपों के तमाम आर्डर भी मिले हैं और उनकी दीपावली भी रोशन होगी।

100-150 रूपए सैकड़ा बिक रहे दीये

दीपों के त्यौहार में इस बार मिट्टी के दीयों से बाजार गुलजार हैं, क्योंकि अब पर्यावरण की सुरक्षा और स्वदेशी अपनाने के मुहिम का लोगों पर साफ असर दिख रहा है। लोग इस बार दीपावली में अपने घरों को झालरों की अपेक्षा मिट्टी के दीयों से रोशन करने का मन बना चुके हैं। ऐसे में बाजार में इस बार मिट्टी के दीपकों, चिराग व गुल्लकों की भरमार है। बाजार में मिट्टी के छोटे दीपकों की कीमत 100-150 रूपए सैकड़ा है जबकि नई डिजाइन में चार दीपक लगे चिराग की कीमत 30 रूपए तक है। एक मुंह वाले चिराग की कीमत 10 रूपए जबकि तीन व चार मुंह वाले दीपकों की कीमत 15-25 रूपए तक है। इसके अलावा कलरफुल गुल्लकों की भी इस बार अच्छी बिक्री का अनुमान है तो कुम्हारों ने अलग-अलग डिजाइन व साइज के गुल्लक सजा रखे हैं, जिनकी कीमत 10-70 रूपए तक है। गोमती नगर के मिठाई वाला चैराहे पर दीपक की दुकान लगाने वाले मल्हौर निवासी मुन्ना ने बताया कि इस बार दीपकों की बिक्री पिछले दीपावली की अपेक्षा ज्यादा होने की संभावना है, क्योंकि अब लोग मिट्टी के दीयों का ज्यादा महत्व दे रहे हैं। बताया कि इस बार अलग-अलग डिजाइन व साइज के दीपक और चिराग दुकान पर उपलब्ध हैं।

इस बार जगमग करेंगे गोबर के दीये

दीपावली पर अब गाय के गोबर से चीन को सबक सिखाने की तैयारी पूरी की जा चुकी है। राष्ट्रीय कामधेनु आयोग चीनी लाइट्स का इस्तेमाल कम करने के लिए गाय के गोबर से दीए बना रहा है। बाजार में गोबर से बने 33 करोड़ पर्यावरण अनुकूल दीए बनाने का लक्ष्य रखा गया है। अयोध्या में 3 लाख और वाराणसी में 1 लाख दीए लगभग बनाए जा चुके हैं। राजधानी लखनऊ के कान्हा उपवन में भी बड़ी संख्या में दीये बनाए जा रहे हैंै। इसको लेकर दर्जनों लोगों को रोजगार भी मिला हुआ है। गोबर के दीयों को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए शासन द्वारा विशेष प्रबंध भी किए गए हैं और इसका आॅनलाइन बिक्री भी की जा रही है। माना जा रहा है कि गाय का गोबर रेडिएशन रोक सकता है।

भारतीय झालरों को मिली रोशनी

पिछले कई सालों से चीन का भारतीय बाजारों पर कब्जा बढ़ता जा रहा था और भारतीय त्यौहार चीन के भरोसे ही होते जा रहे थे, लेकिन अब बदली परिस्थिति के बीच चीनी सामानों का लोग बाॅयकाॅट कर रहे हैं। प्रधानमंत्री की आत्मनिर्भर भारत योजना व स्वदेशी को बढ़ावा देने की मुहिम का साफ असर इस दीपावली के पर्व पर देखने को मिल रहा है। इस बार बाजारों में चीनी झालरों की अपेक्षा देश में बनी झालरों की मात्रा काफी अधिक दिख रही है, कारण कि लोग खुद अब मेक इन इंडिया के झालरों को महत्व दे रहे हैं और उनकी मांग कर रहे हैं। राजधानी के सदर में बिजली के सामान बेचने वाले दुकानदारों का कहना है कि इस बार चीनी लाइटों की मांग में भारी कमी आई है। ग्राहक सस्ते चाइनीज एलईडी झालरों की जगह भारतीय एलईडी झालरों को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं। बाजार में भारतीय झालरों की काफी विविधता है, जिनमें स्टिक ऑन लाईट ट्रेल्स भी शामिल है। पिछले साल से झालरों के बाजार में इंडियन झालरें चाइनीज झालरों को कड़ी टक्कर दे रही हैं। अब लोग ज्यादातर इंडियन झालरों की ही मांग करते हैं, ऐसे में इस बार अधिकतर दुकानों पर इंडियन झालरें ही दिखाई पड़ रही हैं। दुकानों पर 10 मीटर की इंडियन झालरें 120-150 रूपए जोड़ा बिक रही हैं, हालांकि इतने मीटर की ही चाइनजी झालरें 70-80 रूपए में मिल रही है, लेकिन लोग इंडियन झालरों को अधिक प्राथमिकता दे रही है। गोमती नगर के पत्रकारपुरम् में इलेक्ट्राॅनिक दुकान चलाने वाले विवेक यादव का कहना है कि इस बार अधिकतर झालरें इडियन ही है, क्योंकि अब लोग चाइनीज झालरों को कम खरीद रहे हैं। बताया कि देशी झालरें थोड़ी महंगी तो हैं पर अब इनकी मांग ज्यादा है।