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दीपावली के दिन भूल से भी नहीं करने चाहिए ये काम, जानिए इसका पौराणिक महत्व

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दीपावली का त्यौहार चार दिनों तक मनाया जाता है और इन दिनों में अंधकार को दूर करने के लिए दीपों की अवलियां सजाई जाती हैं। हिंदू धर्म में पंचतत्वों की महत्वपूर्ण भूमिका हैं और उसी के द्वारा ही संपूर्ण ब्रह्मांड की रचना हुई है। लेकिन हिंदू धर्म में कई ऐसे काम होते हैं जो किसी दिन विशेष पर नहीं करने चाहिए। वैसे ही दीपावली के दिन भी कई कामों नहीं करना चाहिए जैसे-

1. कार्तिक अमावस्या यानी दीपावली के दिन प्रातःकाल शरीर पर तेल की मालिश के बाद स्नान करना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से धन की हानि नहीं होती है। 2. दीपावली के दिन वृद्धजन और बच्चों को छोड़कर अन्य व्यक्तियों को भोजन नहीं करना चाहिए। शाम को महालक्ष्मी पूजन के बाद ही भोजन ग्रहण करें। 3. दीपावली पर पूर्वजों का पूजन करें और धूप व भोग अर्पित करें। प्रदोष काल के समय हाथ में उल्का धारण कर पितरों को मार्ग दिखाएं। यहां उल्का से तात्पर्य है कि दीपक जलाकर या अन्य माध्यम से अग्नि की रोशनी में पितरों को मार्ग दिखायें। ऐसा करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। 4. दीपावली से पहले मध्य रात्रि को स्त्री-पुरुषों को गीत, भजन और घर में उत्सव मनाना चाहिए। कहा जाता है कि ऐसा करने से घर में व्याप्त दरिद्रता दूर होती है।

दीपावली की पौराणिक कथा

हिंदू धर्म में हर त्यौहार से कई धार्मिक मान्यताएं और कहानियां जुड़ी हुई हैं। दीपावली को लेकर भी दो अहम पौराणिक कथाएं प्रचलित है। 1. कार्तिक अमावस्या के दिन मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम 14 वर्ष का वनवास काटकर और लंकापति रावण का नाश करके अयोध्या लौटे थे। इस दिन भगवान श्रीराम के अयोध्या आगमन की खुशी पर लोगों ने दीप जलाकर उत्सव मनाया था। तभी से इसकी शुरुआत हुई। 2. एक अन्य कथा के अनुसार, नरकासुर नामक राक्षस ने अपनी असुर शक्तियों से देवता और साधु-संतों को परेशान कर दिया था। इस राक्षस ने साधु-संतों की 16 हजार स्त्रियों को बंदी बना लिया था। नरकासुर के बढ़ते अत्याचारों से परेशान देवता और साधु-संतों ने भगवान श्रीकृष्ण से मदद की गुहार लगाई। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध कर देवता व संतों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई, साथ ही 16 हजार स्त्रियों को कैद से मुक्त कराया। इसी खुशी में दूसरे दिन यानि कार्तिक मास की अमावस्या को लोगों ने अपने घरों में दीये जलाए। तभी से नरक चतुर्दशी और दीपावली का त्यौहार मनाया जाने लगा। 3- धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक का स्वामी बनाया था और इंद्र ने स्वर्ग को सुरक्षित पाकर खुशी से दीपावली मनाई थी। 4- इसी दिन समुंद्र मंथन के दौरान क्षीरसागर से लक्ष्मी जी प्रकट हुई थीं और उन्होंने भगवान विष्णु को पति के रूप में स्वीकार किया था।

ज्योतिष महत्व

हिंदू धर्म में हर त्यौहार का ज्योतिष महत्व होता है। माना जाता है कि विभिन्न पर्व और त्यौहारों पर ग्रहों की दिशा और विशेष योग मानव समुदाय के लिए शुभ फलदायी होते हैं। हिंदू समाज में दीपावली का समय किसी भी कार्य के शुभारंभ और किसी वस्तु की खरीददारी के लिए बेहद शुभ माना जाता है। इस विचार के पीछे ज्योतिष महत्व है। दरअसल, दीपावली के आस-पास सूर्य और चंद्रमा तुला राशि में स्वाति नक्षत्र में स्थित होते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, सूर्य और चंद्रमा की यह स्थिति शुभ और उत्तम फल देने वाली होती है। तुला एक संतुलित भाव रखने वाली राशि है। यह राशि न्याय और अपक्षपात का प्रतिनिधित्व करती है। तुला राशि के स्वामी शुक्र जो कि स्वयं सौहार्द, भाईचारे, आपसी सद्भाव और सम्मान के कारक हैं। इन गुणों की वजह से सूर्य और चंद्रमा दोनों का तुला राशि में स्थित होना एक सुखद व शुभ संयोग होता है।