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हिन्दुत्व का विचार सनातन और सर्वव्यापी, इसे सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता

नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (रा.स्व.संघ) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के सबसे चर्चित एवं महत्वपूर्ण भाषणों पर आधारित पुस्तक ‘यशस्वी भारत’ का शनिवार को लोकार्पण हुआ। प्रभात प्रकाशन की ओर से प्रकाशित इस पुस्तक के लोकार्पण समारोह में रा.स्व.संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल, स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज और भारत के पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक राजीव महर्षि सम्मिलित हुए। वर्चुअल माध्यम से हुए इस समारोह में देश-दुनिया के हजारों स्वयंसेवक एवं संघ के शुभचिंतक सम्मिलित हुए।

समारोह के मुख्य वक्ता डॉ. कृष्ण गोपाल ने अपने संबोधन में कहा कि हम तो सनातन संस्कृति के वाहक हैं, हिन्दू नाम तो उन लोगों ने दिया जो हम पर आक्रमण करने आए। इसके बावजूद हमारी संस्कृति इतनी विकसित और उदार है कि आज भी हिन्दुत्व की परिभाषा करना बहुत कठिन है क्योंकि परिभाषा सीमित की होती है, असीमित की नहीं। उन्होंने कहा कि जो भी मानव समाज के कल्याण का भाव रखता है और सबके साथ समरसता का सूत्र खोज लेता है, आप उन्हें कुछ भी कहिए, हमारी नजर में वह हिन्दुत्व ही है। इस दृष्टि से दुनिया के प्रत्येक मत-पंथ में जो कुछ भी श्रेष्ठ है, वह हिन्दुत्व ही है। हिन्दुत्व अलग से कुछ नहीं है।

डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि विश्व का इतिहास बताता है कि असभ्य और बर्बर जातियां सभ्य और विकसित जातियों का सर्वनाश कर देती हैं। ग्रीक, मिश्र, बेबीलोनिया, स्पार्टा, एथेंस, पर्सिया को जिन्होंने नष्ट किया, वे सभ्यता और विद्वता में उनसे बहुत पीछे थे लेकिन हिंसक और क्रूर थे। हमारे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। आजादी से पहले के एक हजार वर्ष का इतिहास बताता है कि वह हम पर क्रूर और बर्बर जातियों के आक्रमण का कालखंड था। रा. स्व. संघ उस इतिहास को भूलता नहीं है और उससे सबक सीखकर देश को समर्थ और सशक्त बनाने के लिए कार्य कर रहा है। हमारे समाज ने प्राण और धर्म की रक्षा के लिए बहुत कष्ट सहे और जैसा संघर्ष किया वैसा दुनिया की कोई और सभ्यता न कर सकी।

डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि भारत की सनातन जाति को अपनी सभ्यता और संस्कृति को बचाने के लिए अपना बहुत कुछ अच्छा खोना पड़ा और बहुत कुछ खराब अपनाने को मजबूर होना पड़ा। बाल विवाह, बहु विवाह, सती प्रथा, पर्दा प्रथा और जाति प्रथा गुलामी के कालखंड की देन हैं। यह हमारी जाति और संस्कृति के अंग कभी नहीं रहे। वेदों की ऋचाएं रचने वाली महिलाओं को वेद पढ़ने के अधिकार से वंचित किया गया। स्वतंत्रता के बाद हम देखते हैं कि पर्दा प्रथा पूरी तरह से खत्म हो रही है और महिलाएं समान अधिकार के साथ सब क्षेत्रों में आगे बढ़ रही हैं। बाल विवाह और बहु विवाह समाप्त हो रहे हैं, विधवा विवाह शुरू हो गए हैं। हां, जाति प्रथा की जड़ पकड़ गई है। इसे दूर करने के भरसक प्रयत्न हो रहे हैं। इसके लिए निरंतर और मजबूत प्रयास की जरूरत है। रा. स्व. संघ परतंत्रता के कालखंड में समाज में घुस आए सभी प्रकार के भेदों को समाप्त करने के लिए दिन-रात कार्य करता है। वह भारत की सनातन और आध्यात्मिक शक्ति के आधार पर समर्थ, सम्पन्न और शक्तिशाली भारत बनाने के लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ रहा है। संघ के सरसंघचालक की पुस्तक यशस्वी भारत से आप संघ के इस विचार, उद्देश्य, कार्यशैली और लक्ष्य को समझ सकेंगे।