लखनऊः उत्तर प्रदेश सरकार ने फाइलेरिया (Filariasis) जैसी घातक बीमारी को 2027 तक पूरी तरह समाप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके लिए सरकार ने मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (MDA) अभियान की तैयारियों को तेज कर दिया है। यह अभियान 10 फरवरी से 28 फरवरी तक राज्य के 14 जिलों में चलाया जाएगा। इस पहल का उद्देश्य व्यापक स्तर पर दवा वितरण कर फाइलेरिया के प्रसार को रोकना है।
Filariasis के खिलाफ 14 जिलों में चलेगा अभियान
अभियान की सफलता के लिए राज्य ने जिला स्तरीय प्रशिक्षकों को तैयार किया है। इसके साथ ही सामुदायिक रेडियो स्टेशनों को भी इस अभियान का अभिन्न हिस्सा बनाया गया है। 33 सामुदायिक रेडियो स्टेशनों के प्रतिनिधियों को वर्चुअल वर्कशॉप में अभियान का महत्व समझाया गया। राज्य फाइलेरिया अधिकारी डॉ. एके चैधरी ने इस दौरान कहा कि सामुदायिक रेडियो का योगदान इस अभियान की सफलता में महत्वपूर्ण होगा। उन्होंने बताया कि फाइलेरिया रोधी दवाएँ पूरी तरह सुरक्षित हैं और इनके नियमित उपयोग से फाइलेरिया को खत्म किया जा सकता है।
एमडीए अभियान के तहत फाइलेरिया प्रभावित जिलों को दवा वितरण की दो विधियों में बांटा गया है। 12 जिलों में ट्रिपल ड्रग थेरेपी (टीडीटी) लागू की जाएगी, जिसमें आइवरमेक्टिन, डायथाइलकार्बामेजिन और एल्बेंडाजोल दवाओं का उपयोग किया जाएगा। बाराबंकी और शाहजहांपुर जिलों में डबल ड्रग थेरेपी (डीडीटी) का उपयोग किया जाएगा। इस बार कवरेज का दायरा बढ़ाने के लिए आशा कार्यकर्ताओं के साथ पुरुष स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को भी शामिल किया गया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दवाइयां हर घर तक पहुंचे। डॉ. चैधरी ने वर्कशॉप में यह स्पष्ट किया कि फाइलेरिया रोधी दवाएं केवल स्वस्थ व्यक्तियों को दी जाती हैं।
दवा लेने के बाद होने वाली खुजली या चकत्ते जैसी प्रतिक्रियाएं यह दर्शाती हैं कि व्यक्ति के शरीर में फाइलेरिया के कीटाणु मौजूद हैं, जो दवा से मर रहे हैं। इस वर्ष दवाइयों के वितरण की प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता लाने के लिए यह सुनिश्चित किया जाएगा कि लोग स्वास्थ्य कर्मियों की निगरानी में ही दवाइयां खाएं। अभियान में सामुदायिक रेडियो की भूमिका पर विशेष जोर दिया गया है। लखनऊ, बीबीडी, केजीएमयू गूंज और सीएमएस जैसे रेडियो स्टेशनों ने वर्कशॉप में भाग लेकर इस अभियान में अपना समर्थन व्यक्त किया। सामुदायिक रेडियो के माध्यम से ग्रामीण और दूर-दराज के क्षेत्रों में अभियान की जानकारी को व्यापक रूप से फैलाया जाएगा। रेडियो के जरिए यह संदेश दिया जाएगा कि फाइलेरिया से बचाव के लिए दवा का सेवन अनिवार्य है। एमडीए अभियान के पिछले राउंड में सामने आया कि लगभग 20 प्रतिशत लोगों ने दवा सेवन से इनकार कर दिया था। इस चुनौती को रिफ्युजल कहा जाता है।
पीसीआई इंडिया के सहयोग से आयोजित कार्यशाला में इस बात पर जोर दिया गया कि इस बार रिफ्युजल को पूरी तरह से तोड़ा जाना चाहिए। एनएचएम के महाप्रबंधक, डॉ. अमित ओझा ने कहा कि यदि अधिक से अधिक लोगों को दवा खिलाने में सफलता मिली तो फाइलेरिया उन्मूलन का लक्ष्य जल्द ही हासिल किया जा सकेगा। फाइलेरिया से पीड़ित मरीजों के लिए भी सरकार ने कई विशेष प्रावधान किए हैं। एमडीए अभियान के तहत अन्य जिलों में प्रभावित मरीजों को एमएमडीपी किट और अंगों की देखभाल का प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसके अलावा, हाइड्रोसील सर्जरी जैसी सेवाएं भी प्रदान की जाएंगी। संक्रमण की निगरानी के लिए रात्रि रक्त सर्वेक्षण आयोजित किए जाएंगे।
सहयोग के लिए आगे आए संगठन
डब्ल्यूएचओ, जीएचएस, पाथ, पीसीआई, स्मार्ट और सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च जैसे प्रतिष्ठित संगठनों ने इस अभियान में अपना सहयोग दिया है। इन संगठनों का तकनीकी और संसाधन संबंधी समर्थन सरकार को अभियान की सफलता सुनिश्चित करने में मदद करेगा। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा फाइलेरिया उन्मूलन के लिए उठाया गया यह कदम न केवल स्वास्थ्य क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि साबित होगा, बल्कि अन्य राज्यों के लिए भी प्रेरणा बनेगा। सामुदायिक भागीदारी, जागरूकता अभियान और दवा वितरण की प्रभावी रणनीति के माध्यम से 2027 तक फाइलेरिया को जड़ से खत्म करने का लक्ष्य साकार किया जा सकता है।
केजीएमयू ट्रामा सेंटर में खुला सेटेलाइट ब्लड बैंक
केजीएमयू (किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी) के ट्रामा सेंटर में मरीजों की सुविधा को बढ़ाने के उद्देश्य से सेटेलाइट ब्लड बैंक यूनिट की शुरुआत की गई है। अब ट्रामा सेंटर में इलाज के दौरान मरीजों को रक्त के लिए ब्लड बैंक तक दौड़ने की जरूरत नहीं पड़ेगी। यह यूनिट इमरजेंसी कॉम्प्लेक्स एंड ट्रामा सेंटर में शुरू की गई है, जिसका उद्घाटन कुलपति प्रो. सोनिया नित्यानंद ने किया। उद्घाटन के दौरान प्रो. नित्यानंद ने ट्रामा सेंटर की सेवाओं की समीक्षा की और चिकित्सा प्रक्रिया को और अधिक कुशल बनाने पर बल दिया। उन्होंने उत्कृष्ट कार्य करने वाले चार सुरक्षाकर्मियों को उनके योगदान के लिए सम्मानित भी किया।
इस अवसर पर ट्रामा सेंटर के सीएमएस डॉ. प्रेमराज सिंह, डॉ. सोमिल अग्रवाल, डॉ. अर्चना सोलंकी समेत अन्य वरिष्ठ चिकित्सक और कर्मचारी उपस्थित रहे। सेटेलाइट ब्लड बैंक की शुरुआत से ट्रामा सेंटर में इलाज के दौरान होने वाली रक्त संबंधी आवश्यकताओं को तुरंत पूरा किया जा सकेगा। इस सुविधा के जरिए मरीजों और उनके परिजनों को समय पर रक्त उपलब्ध होगा, जिससे जीवन रक्षक प्रक्रियाओं में देरी नहीं होगी। डॉ. प्रेमराज सिंह ने बताया कि यह कदम ट्रामा सेंटर में आने वाले गंभीर मरीजों के लिए बेहद लाभदायक साबित होगा। अब इमरजेंसी में भर्ती मरीजों के परिजनों को रक्त के लिए अलग से ब्लड बैंक जाने की आवश्यकता नहीं होगी, जिससे समय की बचत होगी और इलाज तेजी से हो सकेगा। इस अवसर पर ट्रामा सेंटर की सेवाओं और कार्यप्रणाली की समीक्षा भी की गई।
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प्रो. सोनिया नित्यानंद ने सभी विभागों को बेहतर समन्वय के साथ काम करने का निर्देश दिया। उन्होंने कहा कि मरीजों को बेहतर इलाज और सुविधाएं उपलब्ध कराना विश्वविद्यालय की प्राथमिकता है। कार्यक्रम के दौरान उत्कृष्ट कार्य के लिए चार गार्डों को सम्मानित किया गया। ये गार्ड ट्रामा सेंटर में व्यवस्था बनाए रखने और मरीजों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभा रहे थे। कुलपति ने उनके योगदान की सराहना करते हुए उन्हें प्रमाणपत्र देकर सम्मानित किया। सेटेलाइट ब्लड बैंक यूनिट की शुरुआत केजीएमयू ट्रामा सेंटर में मरीजों के लिए एक बड़ी सुविधा के रूप में देखी जा रही है। यह कदम न केवल मरीजों की जिंदगी बचाने में मददगार होगा, बल्कि ट्रामा सेंटर की कार्यक्षमता को भी बढ़ाएगा। ट्रामा सेंटर में उपलब्ध सेवाओं के विस्तार और सुधार के लिए यह एक महत्वपूर्ण पहल है।
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