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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, अब तलाक के लिए पति-पत्नी को नहीं करना होगा 6 महीने का इंतजार

supreme-court-order-on-divorce नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने तलाक को लेकर सोमवार को अहम फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट संविधान पीठ ने इस फैसले में कहा गया है कि धारा 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का प्रयोग करते हुए ऐसे रिश्ते में तलाक (Divorce) दिया जा सकता है जहां सुधार के लिए कोई गुंजाइश न बची हो। सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने कहा कि दंपति को अनिवार्य प्रतीक्षा अवधि का इंतजार करने की जरूरत नहीं है। ये भी पढ़ें..Karnataka Election: भाजपा का संकल्प पत्र ‘प्रजा ध्वनि’ जारी, 3 मुफ्त सिलेंडर, 10 लाख घर…जानें क्या-क्या किए वादे मौजूदा विवाह कानूनों के मुताबिक पति-पत्नी की सहमति के बावजूद पहले फैमिली कोर्ट (Family Court) एक समय सीमा तक दोनों पक्षों को पुनर्विचार करने का वक्त दिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब तलाक के लिए पति-पत्नी को 6 महीने का इंतजार नहीं करना पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने 29 सितंबर 2022 को फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले में कोर्ट ने पांच वकीलों जय सिंह, वी गिरी, कपिल सिब्बल, दुष्यंत दवे और मीनाक्षी अरोड़ा को एमिकस क्यूरी को नियुक्त किया था। इस बेंच में जस्टिस कौल के अलावा जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस एएस ओका, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस एके माहेश्वरी शामिल हैं। पांच जजों की इस पीठ ने कहा कि ‘हमने ऐसे कारक भी निर्धारित किए हैं जो यह तय कर सकते हैं कि विवाह कब पूरी तरह से टूट चुका है।’ बेंच ने यह भी बताया है कि विशेष रूप से गुजारा भत्ता, रखरखाव और बच्चों के अधिकारों के संबंध में हितों को कैसे संतुलित किया जाए। पीठ ने अपने आदेश को सुरक्षित रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना कि सामाजिक बदलावों में कुछ समय लग सकता है और नए कानूनों को लागू करना समाज को अपनाने के लिए राजी करने से ज्यादा आसान हो सकता है। हालांकि सुनवाई के दौरान पीठ ने इस मुद्दे पर विचार करने का फैसला लिया कि क्या विवाहों को निश्चित तौर पर टूटने के आधार पर खत्म किया जा सकता है। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने भारत में विवाह में परिवारों की महत्वपूर्ण भूमिका को भी स्वीकार किया था। इस केस की सीनियर वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेषाधिकार को लागू करते ही संवैधानिक कानूनों के दायरे से बाहर आ जाता है। यह लेख न्याय, समानता और अच्छे इरादों के विचारों का प्रतीक है। सिब्बल ने कहा कि गुजारा भत्ता और कस्टडी तय करने की प्रक्रिया को तलाक की प्रक्रिया से अलग रखा जाना चाहिए, ताकि महिला और पुरुष दोनों को आत्महत्या करने से बचाया जा सके। (अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)