Memories of Netaji: नेताजी सुभाष चंद्र बोस की ऐतिहासिक धरोहर को सहेजने का अनूठा उदाहरण पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के नोआपाड़ा थाने में देखने को मिलता है। 93 साल बाद भी यहां चाय का वह प्याला और तश्तरी सुरक्षित रखी गई है, जो 1931 में एक अंग्रेज अधिकारी ने नेताजी को भेंट की थी। थाने से जुड़ा नेताजी का यह ऐतिहासिक अध्याय 11 अक्टूबर 1931 को शुरू हुआ, जब शाम 5 बजे उन्हें ब्रिटिश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। वे जगद्दल के गोलघर में बंगीय जूट मिल मजदूर संघ के कार्यक्रम को संबोधित करने जा रहे थे। उन्हें नोआपाड़ा थाने लाया गया और कुछ घंटों तक हिरासत में रखा गया।
Memories of Netaji: चाय की पेशकश ठुकराई
थाने में नेताजी को चाय की पेशकश की गई, जिसे उन्होंने विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया, क्योंकि वह एक अंग्रेज अधिकारी ने पेश की थी। इस घटना को याद करते हुए थाने में प्याला और तश्तरी को सुरक्षित रखा गया है।
Memories of Netaji: स्मारक और पुस्तकालय
नोआपाड़ा थाने ने नेताजी की याद में एक स्मारक स्थापित किया है। इसमें उनकी फोटो के साथ वह कप और तश्तरी प्रदर्शित की गई है। इसके अलावा थाने के एक कमरे को लाइब्रेरी में तब्दील कर दिया गया है, जहां नेताजी के जीवन और विचारों पर आधारित किताबें रखी गई हैं।
हर साल 23 जनवरी को नेताजी की जयंती पर स्मारक कक्ष आम जनता के लिए खोला जाता है। इस अवसर पर बैरकपुर पुलिस कमिश्नरेट के वरिष्ठ अधिकारी कार्यक्रम में शामिल होते हैं और नेताजी को श्रद्धांजलि देते हैं। इस साल भी विशेष आयोजन के तहत आम जनता को स्मारक देखने और नेताजी को सम्मान देने का मौका दिया गया है।
थाने के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा, “यह हमारे लिए गर्व की बात है कि नेताजी ने इस स्थान पर कदम रखा था। वे हमारे प्रेरणा स्रोत हैं और यह ऐतिहासिक घटना आम जनता तक पहुंचनी चाहिए।”
Memories of Netaji: नेताजी की गिरफ्तारी और रिहाई
इतिहासकारों के अनुसार, नेताजी को उनके भाषण के कारण संभावित अशांति की आशंका में गिरफ्तार किया गया था। बैरकपुर के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट के हस्तक्षेप के बाद उन्हें 12 अक्टूबर 1931 की आधी रात को रिहा कर दिया गया था। हालांकि, उन्हें तीन महीने तक नोआपाड़ा में प्रवेश करने से रोक दिया गया था।
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पुलिस स्टेशन के बाहर नेताजी की एक प्रतिमा स्थापित है, जो उनकी विरासत का प्रतीक है। इसके पीछे नेताजी की पुरानी तस्वीरें लगी हैं, जिसमें वे पुलिस स्टेशन में दो कांस्टेबलों के साथ बैठे नजर आ रहे हैं। नेताजी की इस ऐतिहासिक विरासत को संजोने का यह प्रयास उनके योगदान को याद करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम बन गया है।
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