Monday, January 6, 2025
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Homeफीचर्डआम आदमी और रसूखदारों का अलग कानून ?

आम आदमी और रसूखदारों का अलग कानून ?

इसमें कोई शक नहीं कि प्रभावशाली लोग कानून (law) को खिलौना समझते हैं। यह सिस्टम उनके काम में काफी मददगार भी साबित होता है। देश में ये सालों से चल रहा है। सख्त से सख्त कानून बनाने और तमाम कदम उठाने के बाद भी रसूखदार लोग आए दिन कानून का मजाक उड़ाने से बाज नहीं आते। कानून को बौना दिखाने वाले इस समूह को राजनीतिक संरक्षण मिलता है। ऐसी स्थिति में, धनबल और राजनीतिक संरक्षण वाले लोग सिस्टम की कमियों और खामियों के कारण नियमों और विनियमों को आसानी से दरकिनार कर देते हैं।

जो पुलिस आम आदमी को उसकी जरा सी गलती पर गिरफ्तार करने में काफी तत्पर रहती है, वही पुलिस रसूखदारों तक पहुंचने में वक्त लगाती है। पश्चिम बंगाल में इसकी अवधि काफी लंबी हो जाती है। संदेशखाली कांड के कारण चौतरफा निंदा का शिकार बने तृणमूल कांग्रेस नेता शाहजहां शेख को 55 दिनों तक फरार रहने के बाद पुलिस ने पकड़ लिया। लेकिन फिर जब कलकत्ता हाई कोर्ट ने ममता सरकार को फटकार लगाई। यदि उसे डाँटा न गया होता तो उसे छिपाकर रखा जाता। जिस शानो-शौकत के साथ वह थाने और दरबार में दाखिल हुआ, उससे ऐसा लगा कि वह कोई शहंशाह है।

पश्चिम बंगाल पुलिस उनके सामने नतमस्तक और भयभीत नजर आ रही थी। यह तथ्य कि उन्हें सत्ता का संरक्षण प्राप्त था, तृणमूल कांग्रेस के इस बयान से छिपा नहीं जा सकता कि हमने उन्हें निलंबित कर दिया है। यह राजधर्म नहीं है, बेशर्मी है कि उन्हें गिरफ्तार न करने के हाईकोर्ट के आदेश की भी गलत व्याख्या की गई। अगर ईडी को शक है कि बंगाल पुलिस शाहजहां शेख की मदद कर सकती है तो यह स्वाभाविक है। तृणमूल कांग्रेस सरकार बेहद बेशर्मी से अपने नेता का बचाव करती रही। संदेशखाली की महिलाओं ने जिन शब्दों में अपना दर्द बयां किया है, वह किसी पत्थर दिल इंसान का भी दिल पिघला सकता है। लेकिन पश्चिम बंगाल की महिला मुख्यमंत्री का दिल नहीं टूटा। भारतीय जनता पार्टी के विरोध और हाई कोर्ट की कड़ी टिप्पणियों के बाद शाहजहाँ को गिरफ्तार कर लिया गया।

दिल्ली शराब घोटाले में पूछताछ के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) अब तक दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल को आठ समन भेज चुका है। केजरीवाल जांच एजेंसी के सामने पेश होने के बजाय ईडी के समन को अवैध बता रहे हैं। वह कानूनी दांव-पेचों से जांच से बच रहे हैं। और दिल्ली विधानसभा में खड़े होकर वह केंद्र की मोदी सरकार और अपने राजनीतिक विरोधियों पर जमकर भड़ास निकाल रहे हैं। चूंकि विधानसभा में दिए गए बयान पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती। इसके चलते केजरीवाल ने विधानसभा को अपना गुस्सा निकालने और अपने राजनीतिक विरोधियों पर मनगढ़ंत आरोप लगाने का मंच बना लिया है। देश की जनता उनका तमाशा देख रही है।

जिस शराब घोटाले में उनसे पूछताछ होनी है, उसमें उनके सबसे खास सहयोगी मनीष सिसौदिया और संजय सिंह तिहाड़ की रोटी तोड़ रहे हैं। एक संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति जिस तरह से कानून और संविधान का मजाक उड़ा रहा है, वह निश्चित रूप से समाज में एक गलत उदाहरण स्थापित कर रहा है। वहीं आम आदमी के मन में यह सवाल भी उठता है कि रसूखदार लोगों के सामने कानून कमजोर और लाचार क्यों नजर आता है? केजरीवाल की तरह, तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी ईडी के समन की अवहेलना करते रहे और खुद को बचाने की पूरी कोशिश की। काफी जद्दोजहद के बाद ईडी ने उसे पकड़ लिया। फिलहाल सोरेन को जेल का खाना मिल रहा है।

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हत्या और रेप मामले में जेल की सजा काट रहे राम रहीम को बार-बार पैरोल दिए जाने पर पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट ने सवाल उठाए हैं। हाई कोर्ट ने कहा कि सिर्फ राम रहीम को ही बार-बार पैरोल क्यों मिल रही है? अन्य कैदियों को लाभ क्यों नहीं दिया जाता? रेप दोषी राम रहीम को इस साल जनवरी में 50 दिन की पैरोल दी गई थी। करीब 10 महीने में यह उनकी 7वीं और पिछले चार साल में 9वीं पैरोल थी। हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को आदेश दिया है कि अब राम रहीम को कोर्ट की इजाजत के बिना पैरोल नहीं दी जाएगी। सत्ता, सिस्टम, कानून के रक्षकों और रक्षकों के गठजोड़ से ही राम रहीम जैसे प्रभावशाली लोग कानून को फुटबॉल बना देते हैं।

जब तक अपराधियों को सत्ता के गलियारों से संरक्षण मिलता रहेगा, यह बेशर्मी जारी रहेगी। हर घटना में किसी न किसी सत्तासीन प्रभावशाली व्यक्ति का संरक्षण नजर आता रहा है। हर बार सरकार द्वारा सख्त से सख्त कार्रवाई करने की बात की जाती है, कुछ दोषियों को गिरफ्तार भी किया जाता है, जांच में लीपापोती कर दी जाती है और उसके बाद सब कुछ भुला दिया जाता है। संदेशखाली जैसी घटनाएं कुछ दिनों तक खबरों में रहती हैं और फिर लोगों के दिमाग से गायब हो जाती हैं। कितनों को निठारी कांड याद है? कितनों को बिहार मुजफ्फरपुर शेल्टर होम रेप केस याद है? कितनों को उसके अपराधी की सज़ा याद है? कुछ दिनों बाद संदेशखाली के साथ भी यही होगा।

अगर प्रभावशाली लोग किसी मामले में फंस भी जाएं तो उनके चेहरे, हाव-भाव, चेहरे से टपकते अहंकार और अहं को देखकर ऐसा नहीं लगता कि उन्हें कानून का जरा सा भी डर है। वे पुलिस प्रशासन को अपना नौकर मानते हैं। कहीं न कहीं सिस्टम भी उनकी मदद करता दिख रहा है। देश की अदालतों में करोड़ों मामले लंबित हैं। और आम आदमी को न्याय पाने के लिए वर्षों तक इंतजार करना पड़ता है। दर्जनों रसूखदार लोग भ्रष्टाचार व अन्य गंभीर मामलों में आसानी से जमानत पाकर आराम की जिंदगी जी रहे हैं। चारा घोटाले में सजायाफ्ता लालू प्रसाद यादव स्वास्थ्य कारणों से जमानत पर हैं। राजनीति में उनकी सक्रियता बताती है कि वह अब स्वस्थ हैं। और अगर वह स्वस्थ है तो जमानत पर क्यों है? भले ही रसूखदार लोगों को जेल भी जाना पड़े लेकिन वहां वे अपनी इच्छानुसार सुख-सुविधाएं भोगते रहते हैं। ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं। दिल्ली के मंत्री सत्येन्द्र जैन का जेल की कोठरी में कथित तौर पर मालिश कराने का वीडियो देश ने देखा है। यूपी के चर्चित नेता और माफिया मुख्तार अंसारी की पंजाब जेल में कांग्रेस सरकार ने जो मेहमाननवाजी की उसे कौन भूल पाएगा।

जब किसी नेता या प्रभावशाली व्यक्ति को जांच एजेंसी पकड़ लेती है तो वह विजयी मुद्रा बनाकर हवा में हाथ लहराता है। मानो उसने कोई बहुत बड़ा काम कर दिया हो। गिरफ्तारी के समय या जांच के लिए जाते समय नेताओं और प्रभावशाली लोगों के हाव-भाव ऐसे होते हैं मानो वे कोई उपकार करने जा रहे हों। और उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है, उन्हें राजनीति के कारण फंसाया गया है। जांच एजेंसी के कार्यालय के बाहर नेता के समर्थकों का धरना-प्रदर्शन अप्रत्यक्ष रूप से डराने, धमकाने और जांच एजेंसी पर दबाव बनाने का कृत्य है।

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वहीं, किसी प्रभावशाली व्यक्ति को सजा मिलने पर जिस तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आती हैं, वह चौंकाने वाली होती हैं। उनमें विशिष्ट होने का अहंकार और न्यायालय की अवमानना के साथ-साथ संवेदनहीनता की पराकाष्ठा भी सुनने को मिलती है। अगर किसी प्रभावशाली व्यक्ति ने, जो खुद को कानून से ऊपर समझता है, कोई गैरकानूनी काम किया है तो देर-सबेर कानून उसे उसके किए की सजा देगा ही, लेकिन उच्च वर्ग के अहंकार पर भी अंकुश लगाने की जरूरत है, जो इस पर अड़े हुए हैं अपने गलत कामों को सही साबित करना। अमानवीय हो जाता है।

आशीष वशिष्ठ

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