त्वरित टिप्पणी
(रघुनाथ कसौधन)
Jammu and Kashmir Elections 2024 , लखनऊः जम्मू-कश्मीर के चुनावी नतीजे सबके सामने हैं और एनसी-कांग्रेस गठबंधन ने बंपर जीत हासिल की है। बीजेपी ने भी यहां पूरा दमखम लगाया था लेकिन उसे मन के मुताबिक नतीजे नहीं मिले। यह तो वहां के प्रमुख दलों की बात थी लेकिन जम्मू-कश्मीर में रीलॉन्च हुई उत्तर प्रदेश की प्रमुख विपक्षी पार्टी सपा का सूपड़ा ही साफ हो गया। पार्टी ने जिन प्रत्याशियां को चुनावी मैदान में उतारा था, उन सभी को करारी हार मिली है और कईयों की तो जमानत भी जब्त हो गई है।
सपा के राष्ट्रीय पार्टी बनने के मंसूबे पर फेरा पानी
इस चुनाव नतीजे ने समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय पार्टी बनने के मंसूबे पर पूरी तरह पानी फेर दिया है। सपा का यह हाल अन्य दलों या वहां की जनता ने नहीं किया, बल्कि खुद उसके अपने नेताओं ने ही पार्टी की लुटिया डुबोने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी और वहां प्रचार तक करने नहीं पहुंचे। आइए आपको बताते हैं कि रीलॉन्च होने के बावजूद सपा जम्मू-कश्मीर की सियासी पिच पर क्यों लॉन्च नहीं हो सकी और कैसे अपनों के विश्वासघात के चलते उसको करारी हार झेलनी पड़ी।
लोकसभा चुनाव में 37 सीटें जीतकर देश की दूसरी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बनने वाली सपा पूरे देश में अपना जनाधार बढ़ाकर व अधिक से अधिक राज्यों में चुनाव लड़कर राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने में जुटी हुई है। पिछले दिनों लखनऊ में सपा के राष्ट्रीय अधिवेशन में अखिलेश यादव ने प्रदेशों के अध्यक्षों को यह टास्क सौंपा था और कहा था कि राष्ट्रीय पार्टी बनने के मिशन को पूरी गंभीरता से लें। इसी को लेकर सपा अधिकतर राज्यों में चुनाव लड़ रही है और अपने हाथ-पांव मार रही है।
राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए नहीं लड़ा चुनाव
हालांकि, यूपी में साथ मिलकर 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस उसे अपने प्रभाव वाले राज्यों में ज्यादा भाव नहीं दे रही है। जिसकी वजह से अक्सर दोनों पार्टियों के बीच खटपट लगी रहती है। हरियाणा के चुनाव में भी सपा ने कांग्रेस से कुछ सीटें मांगी थी लेकिन लंबी रस्साकस्सी के बावजूद कांग्रेस ने उसे एक भी सीट नहीं दी। नतीजा यह हुआ कि उसके बड़े नेता यह कहते नजर आए कि हमने हरियाणा में कांग्रेस को समर्थन दिया और राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए चुनाव नहीं लड़ा। अब बात करते हैं दूसरे चुनावी राज्य जम्मू-कश्मीर की, जहां भी सपा नेशनल कान्फ्रेंस और कांग्रेस के गठबंधन में सहयोगी बनना चाहती थी लेकिन उसकी दाल वहां भी नहीं गली।
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थक-हार कर सपा ने वहां पार्टी की रीलॉन्चिंग की और पूरे दम-खम के साथ चुनाव लड़ने का ऐलान किया। उसने घाटी समेत जम्मू की कई सीटों पर अपने प्रत्याशियों को मैदान में उतार दिया लेकिन उनको राम भरोसे ही छोड़ दिया। तीन चरणों में संपन्न हुए जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव के दौरान न तो सपा मुखिया अखिलेश यादव खुद चुनाव प्रचार के लिए पहुंचे और न ही पार्टी का और भी कोई बड़ा नेता। जिसका नतीजा यह हुआ कि सभी के सभी प्रत्याशी ढेर हो गए और कई अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए।
अखिलेश समेत 13 स्टार प्रचारक, लेकिन कोई भी नहीं पहुंचा
सपा ने जम्मू-कश्मीर में कुल 28 प्रत्याशियों को टिकट दिया था लेकिन 20 प्रत्याशियों के नामांकन ही वैध पाए गए, बाकी का पर्चा ही खारिज हो गया। लिहाजा कश्मीर की 20 और जम्मू की 05 सीटों पर सपा के प्रत्याशी चुनाव में ताल ठोंक रहे थे लेकिन यह प्रत्याशी सिर्फ अपने बल-बूते ही चुनाव मैदान में टिके रहे। सपा ने जम्मू-कश्मीर में अपने प्रत्याशियों का प्रचार करने के लिए चुनाव आयोग को कुल 13 स्टार प्रचारकों की लिस्ट सौंपी थी। इस सूची में सांसद अवधेश प्रसाद, धर्मेंद्र यादव, जावेद अली, हरेंद्र मलिक, इकरा हसन, प्रिया सरोज, पुष्पेंद्र सरोज, विधायक कमाल अख्तर खां, एमएलसी जासमीर अंसारी, पूर्व एमएलसी उदय वीर सिंह, किरनमय नंदा, राम आसरे विश्वकर्मा समेत 13 लोग शामिल थे।
सपा की प्रदेश इकाई ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से भी समय मांगा था लेकिन उन्होंने समय हीं नही दिया। यहीं नही अखिलेश के अलावा अन्य नेता, जो स्टार प्रचारकों की लिस्ट में शामिल थे, वह भी सीन से गायब रहे। सपा नेताओं की इस बेरूखी का नतीजा यह रहा कि सभी उम्मीदवारों ने अपने ही बल-बूते प्रचार किया और चुनाव लड़ा लेकिन किसी को भी सफलता हाथ नहीं लगी।
तमाम उम्मीदवारों की तो जमानत भी जब्त हो गई। चुनावी नतीजों को लेकर जम्मू-कश्मीर के सपा प्रदेश अध्यक्ष जिया लाल वर्मा कहते हैं कि जनता का निर्णय सर्वमान्य है। पार्टी की रिलॉन्चिंग चुनाव से कुछ दिन पहले ही हुई थी, इस वजह से चुनाव की तैयारी करने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिला। अब पार्टी की मजबूती पर ध्यान दिया जाएगा।
तो ऐसे मिलेगा सपा को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा
जम्मू-कश्मीर में प्रत्याशी उतार कर उनके प्रचार के लिए न जाना और सिर्फ उम्मीदवारों के भरोसे चुनाव लड़ने की बात सपा समर्थकों को भी काफी नागवार गुजर रही है। दबी जुबान वह कह रहे हैं कि ऐसे तो पार्टी को राष्ट्रीय दर्जा मिलने से रहा। बहरहाल, या तो अखिलेश यादव और उनके पार्टी के नेताओं की जेके के चुनाव में कोई दिलचस्पी नही थीं या फिर यहां भी हरियाणा की तरह वह राष्ट्रीय हितों को महत्व देने में लगे हुए थे, यह तो वो ही जानें लेकिन अगर सपा को राष्ट्रीय राजनीति में उभर कर बड़ी भूमिका निभानी है तो इस तरह की सुस्ती उसे हर हाल में छोड़नी ही होगी।