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रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत को मिला ये बड़ा मौका, कई देशों ने किया संपर्क

नई दिल्ली: रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग के कारण पूरी दुनिया में महंगाई बढ़ने का खतरा बढ़ गया है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल से लेकर खाद्यान्न तक और सोने-चांदी से लेकर खनिज पदार्थ तक सब कुछ तेज होता नजर आ रहा है, लेकिन इस युद्ध की वजह से भारत को दुनिया के कई देशों से गेहूं निर्यात के क्षेत्र में बड़ा ऑर्डर मिलने का मौका बन गया है।

भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है। विश्व के कुल गेहूं उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 14.14 प्रतिशत की है, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारत की निर्यात हिस्सेदारी एक प्रतिशत से भी कम है। दूसरी ओर रूस और यूक्रेन दुनिया के सबसे बड़े गेहूं निर्यातक देशों में से एक हैं। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में होने वाले गेहूं के कुल निर्यात में इन दोनों देशों की हिस्सेदारी करीब 30 प्रतिशत है, लेकिन दोनों देशों के बीच शुरू हुई जंग के कारण इन दोनों ही देशों से होने वाला गेहूं का निर्यात तो पूरी तरह से ठप हो ही गया है, निर्यात के कई अग्रिम सौदे भी रद्द हो चुके हैं। इसकी वजह से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में एक झटके में गेहूं की सप्लाई में करीब 30 प्रतिशत की कमी आ गई है। ऐसा होने से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमत में भी काफी बढ़ोतरी हो गई है।

वाणिज्य मंत्रालय की ओर से उपलब्ध कराई गई जानकारी के मुताबिक यूक्रेन और रूस से गेहूं की खरीद करने वाले इंडोनेशिया, यमन, कतर, अफगानिस्तान, ओमान और इजरायल जैसे देशों ने गेहूं की खरीद के लिए भारत से संपर्क साधा है। मंत्रालय की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार भारत के पास गेहूं का काफी विशाल स्टॉक पड़ा हुआ है।

दावा किया जा रहा है कि अपनी जरूरत के लिए जरूरी स्टॉक और आकस्मिक जरूरत के लिए अतिरिक्त 50 प्रतिशत गेहूं का भंडारण करने के बाद भी भारत अपने बफर स्टॉक से एक से सवा करोड़ टन तक गेहूं का आसानी से निर्यात कर सकता है। गेहूं उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल करने के बाद अब हर साल सरकार किसानों से भारी मात्रा में गेहूं की खरीद तो कर लेती है, लेकिन भंडारण का मुकम्मल इंतजाम नहीं होने की वजह से हर साल भारी मात्रा में गेहूं समेत कई खाद्यान्न खराब हो जाते हैं। यही वजह है कि केंद्र सरकार पिछले कुछ वर्षों से लगातार गेहूं समेत अन्य खाद्यान्न के अतिरिक्त भंडार का निर्यात बढ़ाने की कोशिश में लगी है।

वित्त वर्ष 2022-23 के लिए सरकार ने एक करोड़ टन गेहूं के निर्यात का लक्ष्य तय किया है। इसके लिए भारत सरकार अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पहले से ही खरीदार की तलाश कर रही थी। ऐसे वक्त में रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग के कारण कई देशों ने गेहूं की जरूरत के लिए भारत से संपर्क साधा है। वाणिज्य मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक सूडान, ट्यूनीशिया, तुर्की, मोरक्को, अजरबैजान, लेबनान, मिस्र और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश भारत से गेहूं की खरीद करना चाहते हैं। ये देश अभी तक भारत की बजाय अन्य देशों से गेहूं की खरीद करते रहे हैं, लेकिन रूस और यूक्रेन से गेहूं की आपूर्ति रुक जाने के कारण अब ये देश अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए भारत से संपर्क कर रहे हैं।

बताया जा रहा है कि 24 फरवरी से रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग के कारण अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पहले से हुए गेहूं के कई सौदे रद्द भी हो गए हैं। खासकर अधिकांश पश्चिमी देशों ने रूस के साथ पहले किए गए सौदों को आर्थिक प्रतिबंध लगने के बाद रद्द कर दिया है। ऐसी स्थिति में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में गेहूं की आपूर्ति बाजार की मांग की तुलना में काफी कम हो गई है, जिससे गेहूं की कीमत में लगातार तेजी बनी हुई है। ऐसे वक्त में भारत 2022-23 के लिए तय किए गए गेहूं निर्यात के लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में काफी सफलता हासिल कर सकता है।

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उल्लेखनीय है कि भारत ने 2020-21 में 21.5 लाख टन गेहूं का निर्यात किया था। मौजूदा वित्त वर्ष में गेहूं का निर्यात करीब 3 गुना बढ़कर 66 लाख टन हो चुका है। जबकि अगले वित्त वर्ष में इसे एक करोड़ टन तक ले जाने का लक्ष्य तय किया गया है। ऐसे में रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण बाजार में बने संकट के दौरान भारत सरकार आसानी से गेहूं निर्यात का लक्ष्य हासिल कर सकती है। इसके साथ ही अगर गेहूं की गुणवत्ता और आपूर्ति में लगने वाले समय का प्रबंधन ठीक तरीक से हुआ, तो कई देश आने वाले वर्षों में भारत के स्थाई ग्राहक भी बन सकते हैं।

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