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Papmochani Ekadashi 2023: पापमोचनी एकादशी पर करें श्रीविष्णु चालीसा का पाठ, दूर हो जायेंगे सभी दुख-दर्द

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नई दिल्लीः हर माह दो एकादशी तिथि पड़ती हैं। एक कृष्ण और दूसरी शुक्ल पक्ष में। हर माह पड़ने वाली एकादशी तिथि को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसी तरह चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को पापमोचनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस माह पापमोचनी एकादशी शनिवार (18 मार्च) को है। एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की आराधना का विधान है। हिंदू धर्म मान्यताओं के अनुसार पापमोचनी एकादशी पर भगवान विष्णु की श्रद्धापूर्वक आराधना करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन व्रत और पूजन करने के साथ ही श्री विष्णु चालीसा का पाठ करने से भगवान विष्णु अपने भक्त पर कृपा दृष्टि बरसाते हैं और साधक को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। इस बार पापमोचनी एकादशी पर तीन अद्भुत योग बन रहे हैं।

पापमोचनी एकादशी पर बन रहे ये अद्भुत योग
सर्वार्थ सिद्धि योग-प्रातःकाल 06.28 बजे से रात 12.29 बजे तक।
द्विपुष्कर योग-रात 12.29 बजे से 19 मार्च को प्रातःकाल 06.27 बजे तक।
शिव योग-सुबह से लेकर रात 11.54 बजे तक।
सिद्ध योग-रात 11.54 बजे से अगले दिन तक।

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पापमोचनी एकादशी पर करें श्री विष्णु चालीसा का पाठ

दोहा
विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय ।
कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय ॥

श्री विष्णु चालीसा
नमो विष्णु भगवान खरारी, कष्ट नशावन अखिल बिहारी ।
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी, त्रिभुवन फैल रही उजियारी ॥

सुन्दर रूप मनोहर सूरत, सरल स्वभाव मोहनी मूरत ।
तन पर पीताम्बर अति सोहत, बैजन्ती माला मन मोहत ॥

शंख चक्र कर गदा विराजे, देखत दैत्य असुर दल भाजे ।
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे, काम क्रोध मद लोभ न छाजे ॥

सन्तभक्त सज्जन मनरंजन, दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ।
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन, दोष मिटाय करत जन सज्जन ॥

पाप काट भव सिन्धु उतारण, कष्ट नाशकर भक्त उबारण ।
करत अनेक रूप प्रभु धारण, केवल आप भक्ति के कारण ॥

धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा, तब तुम रूप राम का धारा ।
भार उतार असुर दल मारा, रावण आदिक को संहारा ॥

आप वाराह रूप बनाया, हिरण्याक्ष को मार गिराया ।
धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया, चौदह रतनन को निकलाया ॥

अमिलख असुरन द्वन्द मचाया, रूप मोहनी आप दिखाया ।
देवन को अमृत पान कराया, असुरन को छवि से बहलाया ॥

कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया, मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया ।
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया, भस्मासुर को रूप दिखाया ॥

वेदन को जब असुर डुबाया, कर प्रबन्ध उन्हें ढुढवाया ।
मोहित बनकर खलहि नचाया, उसही कर से भस्म कराया ॥

असुर जलन्धर अति बलदाई, शंकर से उन कीन्ह लड़ाई ।
हार पार शिव सकल बनाई, कीन सती से छल खल जाई ॥

सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी, बतलाई सब विपत कहानी ।
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी, वृन्दा की सब सुरति भुलानी ॥

देखत तीन दनुज शैतानी, वृन्दा आय तुम्हें लपटानी ।
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी, हना असुर उर शिव शैतानी ॥

तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे, हिरणाकुश आदिक खल मारे ।
गणिका और अजामिल तारे, बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे ॥

हरहु सकल संताप हमारे, कृपा करहु हरि सिरजन हारे ।
देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे, दीन बन्धु भक्तन हितकारे ॥

चाहता आपका सेवक दर्शन, करहु दया अपनी मधुसूदन ।
जानूं नहीं योग्य जब पूजन, होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन ॥

शीलदया सन्तोष सुलक्षण, विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण ।
करहुं आपका किस विधि पूजन, कुमति विलोक होत दुख भीषण ॥

करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण, कौन भांति मैं करहु समर्पण ।
सुर मुनि करत सदा सेवकाई, हर्षित रहत परम गति पाई ॥

दीन दुखिन पर सदा सहाई, निज जन जान लेव अपनाई ।
पाप दोष संताप नशाओ, भव बन्धन से मुक्त कराओ ॥

सुत सम्पति दे सुख उपजाओ, निज चरनन का दास बनाओ ।
निगम सदा ये विनय सुनावै, पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै ॥

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