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Shimla: सेब कार्टन पर जीएसटी के विरोध में बागवानों ने सरकार के खिलाफ खोला मोर्चा, सचिवालय के सामने जोरदार प्रदर्शन

शिमला : सेब कार्टन पर जीएसटी के विरोध में प्रदेश के बागवानों ने शुक्रवार को राजधानी शिमला में सरकार के खिलाफ हल्ला बोला। संयुक्त किसान मंच के बैनर तले आयोजित इस प्रदर्शन में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और वामपंथी संगठनों के कार्यकर्ताओं ने भी हिस्सा लिया। बागवानों ने सेब पैकिंग सामग्री व अन्य मांगों को लेकर शहर में करीब दो किलोमीटर तक आक्रोश मार्च निकालकर सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। प्रदर्शनकारियों ने राज्य सचिवालय की तरफ कूच किया। प्रदर्शनकारियों की भारी संख्या को देखते हुए पुलिस प्रशासन ने सचिवालय को जाने वाले दोनों गेट बंद कर दिए। सचिवालय के बाहर काफी देर तक प्रदर्शनकारी डटे रहे और बेरीकेडिंग तोड़ने का भी प्रयास हुआ। इस दौरान पुलिस के साथ उनकी हल्की झड़प भी हुई। इस विरोध प्रदर्शन में महिलाएं भी बड़ी संख्या में पहुंचीं।

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भाजपा को छोड़कर सभी दलों ने इस रैली को अपना समर्थन दिया। जुब्बल कोटखाई से कांग्रेस विधायक रोहित ठाकुर, रोहड़ू से कांग्रेस विधायक एमएल ब्राक्टा, कांग्रेस उपाध्यक्ष हरीश जनारठा, जिला शिमला अध्यक्ष अतुल शर्मा, ठियोग से माकपा विधायक राकेश सिंघा इस विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए। बागवानों के इस व्यापक प्रदर्शन की वजह से शहर में घंटों यातायात जाम रहा। संजौली से लक्कड़ बाजार, विधानसभा से विक्ट्री टनल, ओल्ड बस स्टैंड हर जगह गाड़ियों की लंबी लाइन लगी हैं। इसके साथ ही चौड़ा मैदान से विधानसभा तक के टप्च् मार्ग पर भी गाड़ियों के पहिए जम गए हैं। यातायात पुलिस की तैनाती के बावजूद भी लंबा जाम देखने को मिला। इस दौरान सबसे ज्यादा परेशानी स्कूली बच्चों और कर्मचारियों को झेलनी पड़ी।

संयुक्त किसान मंच के सह संयोजक संजय चौहान ने बताया कि बागवान 5000 करोड़ की सेब इंडस्ट्री को बचाने के लिए बागवान लंबी लड़ाई लड़ने को तैयार हैं। अब निर्णय सरकार को करना है कि बागवानों की मांगें कितनी जल्दी पूरी करती है। उन्होंने बताया कि इससे पहले बागवानों ने 1987 और 1990 में ऐसे बड़े आंदोलन लड़े हैं। इस बार फिर से ऐसी ही निर्णायक लड़ाई लड़ी जाएगी। विधायक राकेश सिंघा ने बताया कि सरकार पर बागवानों की अनदेखी भारी पड़ने वाली है। आगामी विधानसभा चुनाव में सरकार को इसका जवाब मिल जाएगा। उन्होंने बताया कि बागवान सेब का तुड़ान करने के बजाय खेत-खलियान छोड़कर सड़कों पर उतर आया है। इसलिए सरकार को अब बागवानों के सामने झुकना पड़ेगा।

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