पीएम मोदी ने कहा- तालिबान हुकूमत समावेशी नहीं मान्यता पर सामूहिक फैसला करे दुनिया

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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अफगानिस्तान की तालिबान हुकूमत के बारे में पहली बार भारत का पक्ष स्पष्ट करते हुए दो टूक शब्दों में कहा कि यह सरकार समावेशी नहीं है तथा बिना किसी विचार-विमर्श के बनी है। उन्होंने कहा कि तालिबान की शासन सत्ता की स्वीकार्यता पर सवालिया निशान है।

प्रधानमंत्री ने ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) और सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (सीएसटीओ) की विस्तारित बैठक में अफगानिस्तान के बारे में विश्व बिरादरी को साफ संदेश दिया। तालिबान का नाम लिए बिना उन्होंने कहा कि नई शासन सत्ता में महिलाओं और अल्पसंख्यकों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है।

तालिबान हुकुमत को मान्यता दिए जाने के बारे में प्रधानमंत्री ने विश्व बिरादरी को सुझाव दिया कि वे सोच-विचार कर सामूहिक रूप से फैसला कराना चाहिए। मान्यता के संबंध में भारत संयुक्त राष्ट्र की केन्द्रीय भूमिका का समर्थन करता है।

अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के नतीजों के बारे में विश्व बिरादरी को आगाह करते हुए उन्होंने कहा कि इस घटनाक्रम से अन्य उग्रवादी गुटों को हिंसा के जरिए सत्ता हासिल करने का बढ़ावा मिल सकता है। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में अस्थिरता और मजहबी कट्टरता जारी रहने से पूरी दुनिया में आतंकवादी और उग्रवादी विचारधारा को बढ़ावा मिलेगा।

प्रधानमंत्री ने कहा कि अफगानिस्तान के घटनाक्रम से नशीले पदार्थों के कारोबार अवैध हथियारों की तस्करी और मानव तस्करी की समस्या पैदा हो सकती हैं। मोदी ने अमेरिकी सेना के अत्याधुनिक हथियार तालिबान और आतंकवादी गुटों को हासिल होने के खतरे की चर्चा करते हुए कहा कि अफगानिस्तान में ऐसे अत्याधुनिक हथियारों को जखीरा है जिससे पूरे क्षेत्र में अस्थीरता पैदा होने का खतरा है। उन्होंने शंघाई सहयोग संगठन और इसकी आतंकवाद विरोधी प्रणाली ‘रेटस’ के जरिए हथियारों की आवाजाही पर निगरानी रखने और इस संबंध में सूचनाओं के आदान-प्रदान पर जोर दिया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत इस महीने एससीओ के आतंकवाद विरोधी प्रणाली ‘रेटस’ की अध्यक्षता कर रहा है। भारत इन सभी मुद्दों पर व्यवहारिक सहयोग करने के प्रस्ताव तैयार किए हैं। मोदी ने कहा कि सीमा पार आतंकवाद और आतंकवादियों को धन मुहैया कराए जाने जैसी समस्या का सामना करने के लिए एक आचार संहिता बनाई जानी चाहिए। इस आचार संहिता को लागू कराने के लिए एक प्रणाली भी होनी चाहिए। उन्होंने सदस्य देशों से कहा कि सभी देश पहले भी आतंकवाद से पीड़ित रहे हैं। ऐसे में हमें सुनिश्चित करना चाहिए कि अफगानिस्तान की धरती का उपयोग किसी भी देश में आतंकवाद फैलाने के लिए नहीं हो।

उन्होंने एससीओ सदस्य देशों से कहा कि आतंकवाद के खतरे के बारे में उन्हें सख्त और साझा नियम-व्यवस्था अपनाना चाहिए। यह व्यवस्था आगे चलकर आतंकवाद विरोधी वैश्विक सहयोग का आधार बन सकती है। इस व्यवस्था का आधार आतंकवाद के प्रति ‘जीरो टॉलरेंस’ (न बर्दाश्त करने) का सिद्धांत होना चाहिए।

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प्रधानमंत्री ने करीब छह मिनट के अपने संबोधन में अफगानिस्तान के संबंध में चार बिन्दू उजागर किए। इनमें अंतिम अफगानिस्तान को मानवीय सहयता मुहैया कराने का था। उन्होंने कहा कि वित्तीय और व्यापारिक कार्यों में व्यवधान के कारण अफगान आवाम को आर्थिक संकट का सामना है। कोरोना महामारी के कारण और बढ़ गई है। अफगानिस्तान को भारत की विकास संबंधी मदद का उल्लेख करते हुए मोदी ने कहा कि विगत वर्षो में भारत ने विकास और मानवीय सहायता उपलब्ध कराई है। शिक्षा, स्वास्थ्य, क्षमता निर्माण सहित सभी क्षेत्रों में विकास और मानवीय सहायता उपलब्ध कराई है। अफगानिस्तान के सभी हितों के विकास में भारत ने योगदान किया है। आज भी भारत अपने अफगान मित्रों को खाद्यान और दवाईयां मुहैया कराने का इच्छुक है। उन्होंने विश्व बिरादरी से कहा कि हमें ऐसे उपाय करने चाहिए ताकि अफगान लोगों तक मानवीय सहायता बिना बाधा के पहुंच सके।

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