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छिनी नौकरी तो खोल ली खुद की नर्सरी, दूसरों के लिए बने प्रेरणास्रोत

लखनऊः तीन हजार वर्ग फुट की जमीन पर हर माह डेढ़ लाख रुपये के पौधे बेच लेना मामूली बात नहीं है। वह भी उस आदमी के लिए जो इस क्षेत्र में नया है। जमीन को छोड़कर सभी वस्तुएं खरीदी गई हैं। इसके बाद भी अभी संभावनाएं अपार हैं। अभी तक नर्सरी का नाम लेने वाले यहां आकर फार्म हाउस कह रहे हैं। इसे चलाने वाला भी स्वभाव से फक्कड़ है। लोगों को नसीहत देते हुए कहते हैं कि जहां चाह है, वहां राह है।

शहर से करीब 20 किलोमीटर दूर ग्रामीण क्षेत्र में रिंकू फार्म हाउस है। फैजाबाद रोड पर सफेदाबाद क्षेत्र में इसी फार्म हाउस से सबसे ज्यादा पौधे बिकने का अनुमान है। पिछले साल लॉकडाउन में रिंकू की नौकरी छूट गई थी। वह इंदौर शहर में एक टेलीकॉम कंपनी में काम करता था। रिंकू का बीएससी की पढ़ाई करने के बाद गांव से चला गया था। जब उसका काम छूटा तो वह काफी परेशान था। सफेदाबाद आने के अलावा उसे दूसरा रास्ता नहीं सूझा। उसने यहां आकर कई लोगों से काम की मांग की, लेकिन उसको मनमुताबिक काम नहीं मिला। उस दौरान काम मिलना काफी कठिन भी था।

अचानक अखबार में उसने पर्यावरण से जुड़ी खबरें पढ़ीं। जो बता रही थी कि लॉकडाउन में प्रकृति काफी महफूज है। प्रदूषण भी कम हो रहा था। रिंकू के पास जमीन का एक टुकड़ा था, उसका ध्यान उसकी ओर गया। इंदौर में वह जहां रहता था, उसके करीब एक नर्सरी थी। वह वहां जाता रहता था। फोन के जरिए उसने इंदौर की नर्सरी से संपर्क किया तो उसका उत्साह और बढ़ गया। लॉकडाउन खुलते ही उसने ठान लिया कि अब कहीं नौकरी नहीं करनी है। वर्तमान में लगभग वह सारे पौधे इस नर्सरी में हैं, जो लखनऊ में मिलते हैं। उसने इंदौर, गुजरात, कोलकाता, हल़्द्वानी, काशीपुर के अलावा तमाम शहरों के पौधे यहां की डिमांड के अनुरूप लाए। वह लोगों के पास जाता है और पूछता है कि अगर आपको पौधे लगाना हो तो कौन से पसंद करेंगे? इस तरह लोगों की पसंद और बजट से संबंधित जानकारी भी मिल जाती है। पीपल, बरगद, नीम जैसे पेड़ भी यहां मिल जाते हैं। खास बात यह है कि यह ज्यादा बड़े भी नहीं होते हैं। फूलों के लिए तो यहां खान है। एक से बढ़कर एक वैरायिटी मिल जाती है। दक्षिण भारत के तमाम मसालों वाले पौधे भी यहां हैं।

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इतने कम समय में नर्सरी की अच्छी पहचान बन गई है। रिंकू इसे गर्व से फार्म हाउस कहता है। वह कहता है कि अभी चार आदमी रखने पड़ते हैं। इसलिए कमाई कम है। बारिश से पहले काम बढ़ जाएगा और कमाई भी। लोगों में पकड़ बनानी है, इसलिए अन्य नर्सरी से सस्ते पौधे भी दिए जाते हैं। शहर से बाहर होने के कारण फल वाले पेड़ यहां से ज्यादा बिकते हैं। इस साल आम और अमरूद की बंपर बिक्री होने का अनुमान है। जब उनसे पूछा गया कि अगर बाहर इतना ही पैसा मिले तो जाएगा ? जवाब देते हुए बोला कभी नहीं। एक दिन वह इस काम को कंपनी की तरह चलाएगा। खुद के रोपे पौधे बेचेगा।

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