Ujjain: नागपंचमी पर खुलेंगे नागचंद्रश्वर मंदिर के कपाट, दर्शन करने जुटेंगे श्रद्धालु

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उज्जैन : उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मन्दिर (Mahakaleshwar temple) के शीर्ष शिखर पर नागचंद्रेश्वर मन्दिर के पट वर्ष में एक बार 24 घंटे के लिए सिर्फ नागपंचमी (Nagpanchami) के दिन खुलते हैं। इस बार नागपंचमी (Nagpanchami) का पर्व 2 अगस्त को मनाया जाएगा। इसके लिए सोमवार 1 अगस्त की मध्यरात्रि से मंदिर के कपाट खुल जाएंगे। इस मौके पर मन्दिर में विशेष पूजा अर्चना की जाएगी और श्रद्धालु लगातार 24 घंटे तक भगवान नागचंद्रेश्वर महादेव के दर्शन कर सकेंगे। मन्दिर के पट मंगलवार 2 अगस्त की रात्रि 12 बजे बन्द होंगे। इस दौरान लाखों श्रद्धालुओं भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन करने की संभावना है। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को नियंत्रित करने के लिए स्थानीय प्रशासन ने व्यापक व्यवस्थाएं सुनिश्चित की हैं।

नागचन्द्रेश्वर भगवान की होगी त्रिकाल पूजा –

महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति के प्रशासक गणेश कुमार धाकड़ ने रविवार को बताया कि नागपंचमी पर्व (Nagpanchami) पर भगवान नागचन्द्रेश्वर की त्रिकाल पूजा होगी, जिसमें 01 अगस्त रात्रि 12 बजे पट खुलने के पश्चात पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े के महंत विनित गिरी महाराज भगवान नागचंद्रेश्वर का पूजन करेंगे। शासकीय पूजन 2 अगस्त दोपहर 12 बजे होगा।

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लाखों श्रद्धालु लेंगे दर्शन-लाभ-

उन्होंने बताया कि नागपंचमी पर्व (Nagpanchami) पर महाकालेश्वर मन्दिर परिसर में महाकाल मन्दिर के शीर्ष शिखर पर स्थित नागचंद्रेश्वर भगवान के पूजन-अर्चन के लिये लाखों श्रद्धालु उज्जैन पहुंचेंगे। दरअसल, हिंदू धर्म में सदियों से नागों की पूजा करने की परंपरा रही है। हिंदू परंपरा में नागों को भगवान का आभूषण भी माना गया है। भारत में नागों के अनेक मंदिर स्थित हैं, इन्हीं में से एक मंदिर है, उज्जैन स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर। यहां 11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है। प्रतिमा में फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं। माना जाता है कि पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें भगवान विष्णु की जगह भगवान भोलेनाथ सर्पशय्या पर विराजमान हैं। इस प्राचीन मूर्ति में सप्तमुखी सर्पशय्या पर शिवजी, मां पार्वती गणेशजी के साथ विराजित हैं। साथ में दोनों के वाहन नंदी एवं सिंह भी विराजित हैं। शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं। कहा जाता है कि यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है।

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