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Pitru Paksha 2022: पितृदोष शमन के लिए जरूर करें त्रिपिंडी श्राद्ध, मिलेगा पितरों का आशीर्वाद

वाराणसीः भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि के बाद से पितृ पक्ष की शुरुआत हो गई। श्राद्ध पूर्णिमा (प्रतिपदा का श्राद्ध) तिथि पर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए बड़ी संख्या में लोग गंगा तट और अनादि विमल तीर्थ पिशाचमोचन कुंड पर श्राद्ध कर्म के लिए उमड़ पड़े। पहले दिन लोगों ने त्रिपिंडी श्राद्ध, पिंडदान, तर्पण और विधि विधान से श्राद्ध कर्म किया। जिनके पूर्वजों की अकाल मृत्यु हुई थी उन्होंने श्रद्धापूर्वक कर्मकांडी ब्राम्हणों से त्रिपिंडी श्राद्ध कराया। गया जाने के पूर्व पिशाचमोचन कुंड पर अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा निवेदित करने के लिए श्राद्ध कर्म किया जाता है।

तर्पण से मिलती है पितृदोष से मुक्ति
माना जाता है कि तर्पण और श्राद्ध कर्म से पितृदोष से मुक्ति के साथ पितरों की आत्मा भी तृप्त होती है। तर्पण न करने से पितरों को मुक्ति नहीं मिलती और उनकी आत्मा भी मृत्यु लोक में भटकती है। ऐसे में पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण किया जाता है। पितृपक्ष में पूर्वजों का स्मरण और उनकी पूजा करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। पितृपक्ष में तीन पीढ़ियों तक के पिता पक्ष के तथा तीन पीढ़ियों तक माता पक्ष के पूर्वजों के लिए तर्पण किया जाता हैं। इन्हीं को पितर कहते हैं। दिव्य पितृ तर्पण, देव तर्पण, ऋषि तर्पण और दिव्य मनुष्य तर्पण के पश्चात् ही स्व.पितृ तर्पण किया जाता है। पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित्त जो अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, उसके जीवन में सभी कार्य सिद्ध होते हैं और घर, परिवार, वंश बेल की वृद्धि होती है।

पितृदोष शमन को किया जाता है कि त्रिपिंडी श्राद्ध
पितृदोष के शमन के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है। सनातन धर्म में ये श्राद्ध कर्म सबके लिए है। पूर्वजों की आत्मा की प्रसन्नता के लिए कम से कम तीन बार त्रिपिंडी श्राद्ध अवश्य वंशजों को करना चाहिए। इससे अधिक बार भी कर सकते है। विमल तीर्थ पर श्राद्ध कर्म का इतिहास हजारों साल पुराना है। इस कुंड पर श्राद्ध कर्म का उल्लेख स्कंद महापुराण में भी है। गरुड़ पुराण में भी लिखा हैं। पिशाचमोचन मोक्ष तीर्थ स्थल की उत्पत्ति गंगा के धरती पर आने से भी पहले से है। ये श्राद्ध कर्म काशी के अलावा कहीं और नहीं होता। पितृ पक्ष में पितरों के लिए 15 दिन स्वर्ग का दरवाजा खोल दिया जाता है।

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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी जब सूर्य नारायण कन्या राशि में विचरण करते हैं तब पितृलोक पृथ्वी लोक के सबसे अधिक नजदीक आता है। श्राद्ध का अर्थ पूर्वजों के प्रति श्रद्धा भाव से है। जो मनुष्य उनके प्रति उनकी तिथि पर अपनी सामर्थ्य के अनुसार फल-फूल, अन्न, मिष्ठान आदि से ब्राह्मण को भोजन कराते हैं। इससे प्रसन्न होकर पितर अपने वंशजों को आशीर्वाद देकर जाते हैं। पितरों के लिए किए जाने वाले श्राद्ध दो तिथियों पर किए जाते हैं। प्रथम मृत्यु तिथि पर और द्वितीय पितृ पक्ष में जिस मास और तिथि को पितर की मृत्यु हुई है अथवा जिस तिथि को उसका दाह संस्कार हुआ है। काशी को प्रथम पिंड कहते हैं। सबसे पहले लोग काशी में पिशाचमोचन कुंड पर आकर पिंड दान करते हैं। उसके बाद गया और फिर अंत में केदारनाथ जाते हैं। मान्यता यह भी है कि पिशाचमोचन कुंड में स्नान करने से तमाम तरीके की बाधाओं से मुक्ति मिलती है।

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