लखनऊः आखिर वही हुआ, जिसकी शहर में मांग चल रही थी। यहां की सफाई व्यवस्था की जिम्मेदारी निभा रही कंपनी को बॉय-बॉय कह दिया गया है। अब नगर निगम के कर्मी ही शहर को स्वच्छ रखने में अपना योगदान देंगे। इस बार कंपनी की एक भी नहीं चली और नगर आयुक्त ने भी किसी दबाव की परवाह किए बिना शहर वालों की मांग को स्वीकार कर लिया है।
पिछले तीन महीने से शहर में सफाई व्यवस्था ध्वस्त है। कभी कंपनी के वाहन खराब बताए जाते हैं तो कभी कर्मी कूड़ा उठाने नहीं आते हैं। शहर से अलग-अलग कई छोरों से लोग नगर निगम से मिलते रहे हैं और उनकी यही मांग रही है कि मेसर्स ग्रीन कंपनी को सफाई व्यवस्था संभालने से मना कर देना चाहिए। इस बार एक सप्ताह में ग्रीन कंपनी के खिलाफ पार्षदों ने भी आवाज बुलंद की है। प्रदूषण के मामले में शहर की साख गिरी है। राष्ट्रीय स्तर के सर्वेक्षण में लखनऊ बीस अंक पीछे छूट गया, जबकि यह पिछले साल पहले नंबर पर था। जबसे सर्वेक्षण का रिजल्ट आया है, तब से महापौर और नगर आयुक्त इकोग्रीन के पक्षकार और कंपनी के व्यवहार पर काफी खफा हैं।
नगर आयुक्त ने शहर की सफाई का जिम्मा अब खुद के कर्मचारियों पर छोड़ दिया है। इस दौरान पुराना कूड़ा भी हटाया जा रहा है। कंपनी के खिलाफ कोई कानूनी नोटिस तो नहीं दी गई, लेकिन निगम की ओर से काम करने वालों को रोका भी नहीं जा रहा है। पहले जो कामगार इकोग्रीन की ओर से काम कर रहे थे, वह अब निगम की ओर आ गए हैं। कुछ कर्मी ही काम नहीं कर रहे हैं लेकिन इस संकट की घड़ी में महापौर भी नगर आयुक्त इंद्रजीत सिंह के साथ खड़ी हैं। उन्होंने पूर्व में कम किए गए 25 फीसदी कर्मियों को फिर रखने के लिए भी हामी भर दी है। अभी तक इकोग्रीन बड़ी चालाकी से निगम के पैसे लगाकर कमाई कर रही थी यानी निगम के वाहन, उनके ही कर्मचारी और काम भी वर्तमान से काफी कम था।
अब जो काम निगम के मार्फत कराया जा रहा है, उसमें कर्मी को निगम के जरिए ही वेतन दिया जाएगा। हाथ चलाने वाली गाड़ी भी निगम ने नई मंगाई हैं। छोटा हाथी तो पहले से ही निगम के पास हैं। जेसीबी और हाईवा भी पर्याप्त मात्रा में हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो मौके का फायदा उठाना चाह रहे हैं यानी वह चाह रहे हैं कि इकोग्रीन को साफ मना कर दिया जाए और उनको काम के लिए ठेका दे दिया जाए। यही कारण है कि नगर निगम के अधिकारियों ने कई ट्रांसपोर्ट कंपनियों से वाहन किराए पर मांगे, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। ऐसी भी कंपनियां हैं, जो आज-कल कहकर समय खींच रही हैं यानी यदि नगर निगम की अपनी व्यवस्था न हो तो शहर कूड़े से पट जाएगा।
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उठाए जा रहे हैं सख्त कदम
कूड़ा उठाने का विवाद कोई नया नहीं है इसीलिए महापौर ने अभी दो दिन पहले ही निगम के अधिकारियों को ही कठघरे में खड़ा कर दिया। अब पूरे मामले की जांच भी की जाएगी। मजेदार बात यह है कि पैसा निगम का, लेकिन काम नहीं करने वाली कंपनी को भुगतान कर दिया जबकि काम किसी और कंपनी ने किया था। इस विवाद में एक नहीं तीन कंपनियों के नाम हैं। इनमें शाही इंटरप्राइजेज, इकोग्रीन और गुडलक के नाम हैं। महापौर सुषमा खर्कवाल भी अब नगर निगम को वाहनों से लैस करना चाह रही हैं।
निगम के पास करीब 40 ट्रक हैं। यदि यह कूड़ा उठाएंगे तो पर्याप्त नहीं हैं क्योंकि 88 गांवों को छोड़कर करीब 200 चक्कर कूड़ा शहर में रोज निकलता है। यदि शिवरी प्लांट तक इसे ले जाने के लिए 40 ट्रक भी लग जाएं, तो जाम और संकरे मार्ग के कारण पूरा कचरा उठाना संभव नहीं होगा। अब इकोग्रीन अलग-थलग होने के कारण कानूनी पैंतरेबाजी में भले ही पड़े, लेकिन नगर आयुक्त और पार्षद एक स्वर में इस कंपनी को टाटा बॉय-बॉय कह चुके हैं यानी अब इस कंपनी से कूड़ा नहीं उठवाया जाएगा।
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