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मां विशालाक्षी शक्तिपीठः यहां गिरा था माता सती का कर्ण और कुंडल, दर्शन मात्र से पूरी होती हैं मनोकामनाएं

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वाराणसीः काशीपुराधिपति की नगरी में मां विशालाक्षी शक्तिपीठ शक्ति और सौभाग्य का प्रतीक है। नौ गौरियों में पंचम विशालाक्षी का चैत्र नवरात्र में दर्शन पूजन का खास विधान है। माता रानी का दरबार हिन्दू धर्म में मान्य 51 शक्तिपीठों में से एक है। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के समीप मीरघाट स्थित मंदिर में वर्ष पर्यंत श्रद्धालु दर्शन पूजन के लिए आते है। लेकिन चैत्र नवरात्रि के पांचवे दिन श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है।

गौरवर्णा हैं मां विशालाक्षी

मां विशालाक्षी गौरवर्णा हैं। उनके दिव्य विग्रह से तप्त स्वर्ण सदृश्य कांति प्रवाहित होती है। वह अत्यंत रूपवती हैं तथा सदैव षोडशवर्षीया दिखती हैं। शास्त्रों में लिखा है कि बाबा विश्वनाथ भी यहां आकर विश्राम करते हैं। पौराणिक मान्यता है कि काशी में मां सती के दाहिने कान की मणि का निपात हुआ था। इसी स्थान पर उनका कर्ण और कुंडल गिरा था। पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। सनातन धर्म में ये स्थान तीर्थस्थान कहलाते हैं। ’देवीपुराण’ में भी 51 शक्तिपीठों का उल्लेख है। कथा में उल्लेख है कि राजा दक्ष प्रजापति पुत्री दाक्षायनी मां ने जब अपने शरीर को सती के रूप में त्यागने का निर्णय किया और भगवान शिव माता के पार्थिव शरीर को लेकर घूम रहे थे। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता के शरीर को एक-एक खंड करके गिराया था। उस समय जहां-जहां भी खंड गिरा वहां-वहां स्वयंभू शक्तिपीठ हुआ। जहां बाद में मंदिर का निर्माण कराया गया। काशी खंड में मां सती का मुख गिरा था। इस मंदिर में माता की दो विग्रह हैं। जिसमें से एक मूर्ति स्वयंभू है जो अनादिकाल से यहां विद्यमान है।

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मां विशालाक्षी के दर्शन से सुख, समृद्धि व यश की प्राप्ति

एक अन्य कथा में उल्लेख है कि जब ऋषि व्यास को वाराणसी में कोई भी भोजन अर्पण नहीं कर रहा था। तब मां विशालाक्षी एक गृहिणी की भूमिका में प्रकट हुईं और ऋषि व्यास को भोजन दिया था। पौराणिक मान्यता है कि गंगा स्नान के बाद विशालाक्षी देवी को धूप, दीप, सुगंधित हार व मोतियों के आभूषण, नवीन वस्त्र आदि चढ़ाए जाते हैं। देवी विशालाक्षी की पूजा-उपासना से सौंदर्य और धन की प्राप्ति हो जाती है। इस स्थान पर दान जाप और यज्ञ करने पर मुक्ति प्राप्त होती है। ऐसा माना जाता है कि यदि यहां 41 मंगलवार कुमकुम का प्रसाद चढ़ाया जाए तो इससे देवी मां प्रसन्न होकर सभी मनोकामनाएं पूरी कर देती हैं।

दक्षिण भारतीय शैली में बना है मंदिर

मंदिर का जीर्णोद्धार सन् 1908 में कराया गया था। गर्भगृह को छोड़कर मंदिर का अन्य भाग दक्षिण भारतीय मंदिर शैली का बना हुआ है। मंदिर के बाहरी भाग पर रंग-बिरंगे रूप में भगवान गणेश, शंकर समेत कई अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां बनी हुई हैं। मंदिर में भादो मास में भव्य आयोजन किया जाता है। भादो माह की कृष्ण पक्ष तृतीया को मां विशालाक्षी का जन्म दिन धूमधाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर मां का भव्य श्रृंगार किया जाता है। इस दिन दर्शन करने के लिए काशी के श्रद्धालुओं के अलावा बड़ी संख्या में दक्षिण भारतीय भी आते हैं। उन्होंने बताया कि चैत्र नवरात्र की पंचमी तिथि को नौ गौरी स्वरूप में भी मां विशालाक्षी का दर्शन होता है। मां विशालाक्षी के दर्शन से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं और सुख, समृद्धि व यश बढ़ता है।

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