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इस महाद्वीप पर 3 महीने में आए 30 हजार से ज्यादा भूकंप, वैज्ञानिकों ने बताई ये खतरनाक वजह

नई दिल्लीः अगर अधिक तीव्रता से भूकंप का एक झटका आ जाए तो पूरे शहर को निस्तो नाबूद करने की ताकत रखता है, तो सोचिए अगर कहीं हर दिन हजारों भूकंप आते हो तो वहां की स्थिति कैसी होगी। चिली के वैज्ञानिकों ने ये दावा कि हमारी धरती के सात महाद्वीपों में से एक महाद्वीप पर रोजाना हजारों भूकंप आ रहे हैं। इस महाद्वीप पर पिछले 3 महीने में 30 हजार से भी अधिक भूकंप आ चुके हैं। इनमें से कई तो रिक्टर पैमाने पर 6 की तीव्रता के भी थे। वैज्ञानिकों ने इसके पीछे खतरनाक वजह बताई है।

इस महाद्वीप का नाम अंटार्कटिका है जिसने पिछले 3 महीनों में 30 हजार से ज्यादा भूकंप की मार झेली हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ चिली के भूगर्भ वैज्ञानिकों ने स्टडी कर यह खुलासा किया है। यूनिवर्सिटी में ही मौजूद नेशनल सीस्मोलॉजिकल सेंटर के साइंटिस्ट ने कहा कि अंटार्कटिका के ब्रैन्सफील्ड स्ट्रेट में 6 की तीव्रता वाला जोरदार भूकंप भी आया था।

ब्रैन्सफील्ड स्ट्रेट साउथ शेटलैंड आइलैंड्स और अंटार्कटिक प्रायद्वीप के बीच मौजूद 96 किलोमीटर चौड़ी समुद्री खाड़ी है। इस खाड़ी के पास कई बड़ी टेक्टोनिक प्लेटों और माइक्रोप्लेट्स का मिलन होता है। इनमें होने वाले टकराव, बिखराव और घर्षण की वजह से यहां पर पिछले तीन महीनों से भूकंप ज्यादा आ रहे हैं।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सदियों पहले ब्रैन्सफील्ड स्ट्रेट हर साल 7 से 8 मिलीमीटर फैल रहा था। अब यह हर साल 6 इंच यानी 15 सेंटीमीटर की गति से फैल रहा है। इसका मतलब ये है कि ब्रैन्सफील्ड स्ट्रेट के नीचे टेक्टोनिक प्लेटों में काफी ज्यादा गतिविधियां हो रही हैं

नेशनल सीस्मोलॉजिकल सेंटर के निदेशक सर्जियो बैरिनटोस ने बताया कि ब्रैन्सफील्ड स्ट्रेट के फैलाव में करीब 20 गुना का इजाफा हुआ है। इसका मतलब ये है कि शेटलैंड आइलैंड्स तेजी से अंटार्कटिका से अलग हो रहा है। इसी वजह से ब्रैन्सफील्ड स्ट्रेट की चौड़ाई भी बढ़ रही है।

अंटार्कटिका का यह इलाका धरती पर तेजी से गर्म होने वाला इलाका बन रहा है। इसलिए यहां पर वैज्ञानिकों की नजर लगातार बनी हुई है। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से यहां की बर्फ और ग्लेशियर पिघलकर टूट रहे हैं। हालांकि, सैंटियागो यूनिवर्सिटी के पर्यावरण वैज्ञानिक रॉल कॉर्डेरो ने कहा कि अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि भूकंप की वजह से भी ग्लेशियर टूटे हैं या बर्फ पिघली है।

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हलांकि अभी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो पाया है कि इससे कितना नुकसान हो रहा है या कितान नुकसान होगा। लेकिन यूरोपियन स्पेस एजेंसी के सेंटीनल-2 सैटेलाइट दो साल से अंटार्कटिका की तस्वीरें ले रहा है। जिसके आधार पर वैज्ञानिक अपनी आगे की तैयारी में लगे हैं और पूरी तरह से अपनी नजरे यहां पर होने वाले बदलाव पर लगाए हुए हैं ।