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चीन की थ्री चाइल्ड पॉलिसी के मायने

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चीन दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश है। उसकी जनसंख्या एक अरब 44 करोड़ 44 लाख से भी अधिक हो गई लेकिन जिस तरह वहां आबादी घट रही है, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि वर्ष 2050 में भारत आबादी के मामले में चीन को पछाड़ देगा। वैसे भी भारत से उसकी प्रतिस्पर्धा बहुत पुरानी है। भारत जिस तरह उसे हर क्षेत्र में चुनौती दर चुनौती दे रहा है, वह भी कहीं न कहीं कहीं चीन के मानसिक उद्वेग को बढ़ा रहा है। आबादी का बोझ कम करने के लिए चीन ने सत्तर के दशक में जो एक बच्चे की नीति लागू की थी, वह नीति उसपर भारी पड़ने लगी है। हालत यह है कि चीन में बुजुर्गों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और कामकाजी युवाओं की तादाद में निरंतर गिरावट आ रही है। किसी भी राष्ट्र के लिए इससे अधिक चिंता की बात और क्या हो सकती है?

गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों से झड़प में कितने चीनी सैनिक मारे गए, भले ही चीन ने इसका खुलासा न किया हो लेकिन इस घटना के बाद उसे अपने नागरिकों के कितने विरोध का सामना करना पड़ा, इस बात को तो वही बेहतर समझ सकता है। भारत को चीन के इस मनोविज्ञान को समझना चाहिए। संघर्ष में चीनों सैनिकों की मौत वहां गृह कलह का सबब बन सकती है। इसलिए भी चीन से डरने की नहीं, उसे मुंह तोड़ जवाब देने की जरूरत है।

वह चाइल्ड पॉलिसी के तहत एक व्यक्ति एक ही बच्चे पैदा कर सकता है। जिसका एक ही बच्चा सेना में हो और वह संघर्ष में मारा जाए तो उन बुजुर्गों का जीवन कैसा होगा। इसकी कल्पना सहज की जा सकती है। चीन के सीधे युद्ध में न उतरने की वजह भी यही है। अब तो स्थिति यह है कि चीन को अपनी सेना में भर्ती करने के लिए भी युवाओं की कमी पड़ रही है। अन्य विभागों में भी कमोबेश यही माहौल है। उसे सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ानी पड़ रही है। तीसरे बच्चे को जन्म देने की अनुमति देकर भले ही उसने अपनी गलती सुधारी हो, लेकिन इसका विरोध भी होने लगा है।

लोग 70 के दशक की यातना को याद कर न केवल विकल हैं बल्कि सरकार से भारी भरकम मुआवजा भी मांगने लगे हैं। यह हालत चीन के लिए बहुत मुफीद नहीं है। वुहान में कोविड -19 वायरस के संक्रमण से कितनी मौत हुई, भले ही चीन इसका खुलासा न करे लेकिन वह अपने नागरिकों के दर्द का क्या करेगा। जिस तरह वहां के ग्रामीण इलाकों में संक्रमण बढ़ रहा है, वह बेहद खतरनाक है। उससे अपने नागरिकों खासकर युवाओं और बच्चों को बचाना चीन के लिए बड़ी चुनौती है।

किसी भी नीति का क्रियान्वयन हो, इसके लिए सख्ती जरूरी है और इसके लिए चीन का उद्धरण पेश किया जा सकता है लेकिन वह सख्ती तानाशाही की सीमा पार नहीं करनी चाहिए। अनुशासन मर्यादा में ही अच्छा लगता है।जिस देश में तानाशाही के समक्ष लोकतांत्रिक प्रतिरोध के स्वर मंद पड़ जाएं, वह देश किसी का भी प्रिय नहीं रह जाता। न अपनों का और न अन्य देशों का। वन चाइल्ड पॉलिसी को लागू करने की वजह से चीन की जनसंख्या घट रही है। बच्चों को पैदा करने के प्रति लोगों की रुचि घट गई है। खबर तो यहां तक आ रही है कि चीनी औरतें बच्चा पैदा ही नहीं करना चाहतीं। युवा प्रजनन इसलिए नहीं चाहते क्योंकि इससे उनके करियर पर विपरीत असर पड़ता है। चीन में जिस तरह सामान्य रहन-सहन खर्चीला हुआ है, उसी तरह एक बच्चे के पालन पर भारी खर्च आता है। चीनी युवा इस खर्च को वहन कर पाने की स्थिति में नहीं है।

देर से ही सही, चीन को अपनी गलती का अहसास हुआ है और उसने विगत मई माह में अपने नागरिकों को तीन बच्चे पैदा करने की अनुमति दे दी है। वर्ष 2016 में उसने दो बच्चों के जन्म की नीति को हरी झंडी दी थी। इसका उसे कुछ लाभ भी हुआ था लेकिन इतने भर से बात नहीं बनी। 70 के दशक में वन चाइल्ड पालिसी लागू होने के बाद सरकार ने जिस तरह की सख्ती बरती, उससे वहां का जनमानस कांप गया था। इस नीति के लागू होने के बाद जिन परिवारों ने नियमों का उल्लंघन किया, उन्हें जुर्माना भरना पड़ा, उन्हें रोज़गार का नुकसान हुआ और जबरन गर्भपात के लिए भी मजबूर होना पड़ा। वर्ष 2016 में जोड़ों को दो बच्चे पैदा करने की अनुमति देने के बाद वर्ष 2017 की एक रिपोर्ट में चीन की सरकार ने दावा किया था कि 'वन चाइल्ड पॉलिसी' ख़त्म किये जाने से वहां एक साल में 13 लाख ज़्यादा बच्चे पैदा हुए। वृद्धों की जनसंख्या बढ़ती देख और इस बुज़ुर्ग पीढ़ी को सहारा देने के लिए नौजवानों की आबादी में कमी के कारण ही शी जिनपिंग सरकार अब तीन बच्चों वाली नीति लेकर आई है। यह उसकी विवशता भी है।

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चीन सरकार को लगता है कि इस नीति के अमल में आने के बाद 2050 तक चीन में ऐसे तीन करोड़ अतिरिक्त लोग आ सकेंगे जो काम करने की उम्र के होंगे। वन चाइल्ड पालिसी में चीन का लिंगानुपात भी बिगड़ा है। जब लड़का-लड़की में एक को चुनना होता है तो लोग जाहिर तौर पर लड़के ही चुनते हैं। ऐसे में जनसंख्या का संतुलन बिगड़ना स्वाभाविक है। तीन बच्चों वाली इस पालिसी से चीन को कितना लाभ मिलेगा, यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन देर आयद दुरुस्त आयद की रीति-नीति पर चीन का बढ़ना भी कम आश्चर्यजनक नहीं है। सियाराम पांडेय