संपादकीय

लोकसभा में मायावती पर सबसे ज्यादा संकट !

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लोकसभा चुनाव की घोषणा होने वाली है। सीटों की संख्या के हिसाब से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में सभी पार्टियां ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर चल रही हैं। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए राज्य में विपक्ष का एक स्वतंत्र गठबंधन बनाया गया है, जिसमें काफी अनिच्छा के बाद समाजवादी पार्टी और कांग्रेस एक साथ आये हैं। भारतीय जनता पार्टी सभी 80 सीटें जीतने के लिए तैयार है। बसपा अभी भी अकेले चुनाव लड़ने की बात कर रही है। वह भी तब जब उसे अपने ही सांसदों पर भरोसा नहीं है। कहा जा रहा है कि वह अपने सभी 10 सांसदों के टिकट रद्द करने जा रही है। ऐसे में टिकट कटने के डर से और अपनी राजनीति सुधारने के लिए कई सांसद पाला बदलने की तैयारी में हैं। कुछ ने पाला भी बदल लिया है।

एक के बाद एक कई झटके

त्रिकोणीय संघर्ष में मायावती (Mayawati) के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने पिछले प्रदर्शन को बचाने की है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी ने एसपी-आरएलडी गठबंधन के साथ लड़कर 10 लोकसभा सीटें जीतीं। अब समीकरण और गठबंधन दोनों ही काफी बदल गए हैं। एक के बाद एक बसपा सांसद मायावती का साथ छोड़ रहे हैं। अब तक जिन बसपा सांसदों ने पाला बदला है, उनमें जेल में बंद माफिया मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी सपा में शामिल हो गए हैं, जबकि बसपा का एक और प्रसिद्ध मुस्लिम चेहरा दानिश अली कांग्रेस में शामिल हो गए हैं और एक अन्य सांसद श्याम सिंह, इससे पहले यह भारतीय थे। वह जनता पार्टी के संपर्क में थे, लेकिन टिकट नहीं मिलने के कारण वह कांग्रेस में शामिल हो गये। बसपा को सबसे बड़ा झटका उसके एकमात्र ब्राह्मण सांसद रितेश पांडे ने दिया है जो अब भारतीय जतना पार्टी में शामिल हो गए हैं।

श्रीराम मंदिर के उद्घाटन में न शामिल होना उल्टा दांव

संसद के बजट सत्र के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिन सांसदों को भोज के लिए आमंत्रित किया था, उनमें बसपा सांसद रितेश पांडे भी शामिल थे। अंबेडकर नगर से बसपा सांसद रितेश पांडे ने पार्टी पर उपेक्षा का आरोप लगाते हुए उसी दिन बसपा से इस्तीफा दे दिया था। कुछ देर बाद बीजेपी में शामिल हो गए। 2019 के लोकसभा चुनाव में रितेश पांडे ने योगी सरकार के सहकारिता मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा को हराया था। उनके पिता राकेश पांडे भी 2009 से 2014 तक बसपा के सांसद रहे हैं और इस परिवार का क्षेत्र में गहरा प्रभाव माना जाता है। रितेश पांडे बसपा के सबसे पढ़े-लिखे सांसद थे। उन्होंने 2005 में लंदन के यूरोपियन बिजनेस स्कूल से इंटरनेशनल बिजनेस मैनेजमेंट में ग्रेजुएशन किया। ब्रिटिश लड़की कैटरीना से लव मैरिज के बाद रितेश ने अपना घर बसाया है। सांसद बनने के बाद 2020 में मायावती ने उन्हें लोकसभा में पार्टी का नेता भी बनाया। इसके बावजूद उनका कहना है कि बसपा में उनकी उपेक्षा की जा रही थी। जिस तरह से मायावती ने श्रीराम मंदिर के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार किया, उससे उनकी लोकप्रियता का बचा-खुचा किला भी ढह गया।

कहा जा रहा है कि बसपा की एक और सांसद संगीता आजाद कभी भी पाला बदल सकती हैं। यही हाल बसपा के मुस्लिम सांसद गुडडू जमाली का भी है। वर्ष 2007 में बसपा को उत्तर प्रदेश में 30 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि 2022 के विधानसभा चुनाव में उसे केवल 12 प्रतिशत वोट मिले। सिर्फ एक विधायक ही विधानसभा पहुंच सके। मायावती के शासनकाल में हुए घोटालों की बाढ़ से हर कोई वाकिफ है। उनकी मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति भी जगजाहिर है।

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बसपा नेता मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को अपनी पार्टी का नया उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है, लेकिन उनकी पार्टी के वफादार कार्यकर्ता उनके इस फैसले को पूरी तरह से पचा नहीं पा रहे हैं। मायावती राजनीतिक भ्रम की शिकार हैं। कभी वह ब्राह्मणों पर हो रहे अत्याचार को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ती है तो कभी अल्पसंख्यक तुष्टिकरण को हवा देती है। मायावती ने मुस्लिम समुदाय से अयोध्या में बाबरी मस्जिद बनाने का वादा किया था और 50 पेज की एक पुस्तिका भी छपवाई थी। हिंदू सनातन विरोधी बयान अभी भी बीएसपी की वेबसाइट पर देखे जा सकते हैं। बसपा ने तिलक, तराजू और तलवार का नारा बुलंद किया है। 2022 के विधानसभा चुनाव में अपनी जमीन सुधारने के लिए उसने जय श्री राम भी कहा है। लोग कह रहे हैं कि बसपा ने अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार कर अपना राजनीतिक अंत कर लिया है।

मृत्युंजय दीक्षित

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