Sunday, December 22, 2024
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मध्यप्रदेश में मवेशियों की बनाई जा रही यूनिक आईडी, बना देश में पहला राज्‍य

भोपाल: एक ओर केंद्र सरकार आधार और वोटर आईडी के माध्‍यम से देश के हर निवासी की पुख्‍ता पहचान तैयार करने में लगी है दूसरी ओर मध्‍य प्रदेश में इंसानों के साथ ही मवेशियों की भी पहचान पक्‍की की जा रही है ताकि किसी का कोई मवेशी खो भी जाए तो उसे नम्‍बर के आधार पर आसानी से ढूंढ़ा जा सके। दरअसल इस मामले में अब मध्‍य प्रदेश देश में पहला ऐसा राज्‍य बन गया है जहां सबसे ज्‍यादा गौ-भैंस वंशीय पशुओं को यूनिक आईडी दी जा चुकी है। इस संबंध में जनसंपर्क अधिकारी संदीप कपूर कहते हैं कि सरकार का प्रयास यह है कि  राज्य में हर मवेशी का अपना यूनिक आईडी होग। इसीलिए इस योजना के तहत गौ-भैंस वंशीय पशुओं के कान में टैग लगाया जा रहा है। टैग पर बारह अंकों का आधार नम्बर अंकित है, जिसे इनॉफ साफ्टवेयर में अपडेट किया जा रहा है। साफ्टवेयर में मवेशियों का लेखा-जोखा होगा, जो ऑनलाईन भी उपलब्ध होगा। उन्‍होंने हिस को बताया कि मध्‍य प्रदेश में अब तक दो करोड़ 45 लाख गौ-भैंस वंशीय पशुओं की टैगिंग की जा चुकी है। इस योजना में मध्यप्रदेश पूरे देश में प्रथम स्थान पर है। 

एग्रीक्लचर इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड स्कीम में भी मध्यप्रदेश प्रथम

उन्‍होंने इस दौरान यह भी बताया कि एग्रीक्लचर इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड स्कीम में भी मध्यप्रदेश देश में प्रथम है। इस योजना में कृषि से जुड़े उद्यमी, एफपीओ, स्टार्टअप, स्व-सहायता समूह इत्यादि जो भी लोग कृषि अद्योसंरचना निर्माण के लिए बैंक से ऋण लेना चाहते हैं, उन्हें दो करोड़ की सीमा तक ऋण उपलब्ध कराया जाता है। यह वित्तीय सहायता कोल्ड स्टोरेज, कोल्ड चैन, वेयरहाउस, साइलो, पैक हाउस, ग्रेडिंग एवं पेकेजिंग यूनिट, लाजिस्टिक सुविधा, ई-राइपनिंग चेम्बर आदि के लिए प्रदान की जा रही है। 

कपूर ने प्रदेश की राजधानी भोपाल के भदभदा में स्थापित सेक्स सॉर्टेड सीमन प्रोडक्शन फेसलिटी से उच्च अनुवांशिकता के देशी साण्डों जैसे गिर, साहीवाल, थारपारकर और भैंस की मुर्रा नस्लों का सेक्स सॉर्टेड उत्पादन करने के संबंध में भी बताया । इनका कहना है कि यहां के सेक्स सॉर्टेड उत्पादन उपयोग से 90 प्रतिशत बछिया ही पैदा होगी, जिससे उच्च अनुवांशिक गुणवत्ता की मादाओं की बढ़ोतरी होने से दुग्ध उत्पादन में वृद्धि होगी। बछड़ों के लालन-पालन में अनावश्यक व्यय की बचत होगी। निराश्रित पशुओं की संख्या को भी सीमित किया जा सकेगा।
संदीप कपूर का कहना है कि प्रदेश में बड़े स्‍तर पर एग्रीक्लचर इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड की स्कीम से एफपीओ को लाभान्वित कराने का कार्य किया जा रहा है। इस समय प्रदेश के 418 एफपीओ विभिन्न व्यवसायिक क्षेत्रों जैसे बीज उत्पादन, उपार्जन, प्रोसेसिंग, दूध उत्पादन, मुर्गी पालन, शहद उत्पादन और विपणन आदि कार्य कर रहे हैं। उल्‍लेखनीय है कि  एफपीओ के गठन के लिए न्यूनतम 300 से 500 किसान सदस्यों को शामिल किया जाता है। 

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