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लखनऊः अवैध ऑटो संचालन का हब बना अवध चौराहा, आधा दर्जन मार्गों पर संचालित हो रहे गैर-जनपदों के ऑटो

लखनऊः राजधानी में रोक के बावजूद गैर-जनपदों के ऑटो का संचालन धड़ल्ले से हो रहा है। शहर का अवध चौराहा (बाराबिरवा चौराहा) अवैध ऑटो संचालन का हब बन गया है। अवध चौराहे से करीब आधा दर्जन मार्गों पर गैर-जनपदों के ऑटो धड़ल्ले से संचालित हो रहे हैं। रोजाना हो रहे वीआईपी मूवमेंट के बावजूद वसूली की आड़ में जिम्मेदार इन पर कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। इसके चलते अवैध ऑटो संचालकों के हौसले बुलंद हैं। जिम्मेदार विभागों द्वारा किसी प्रकार की कार्रवाई न किए जाने से इनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इससे राजधानी की सड़कों पर वाहनों का बोझ तो बढ़ ही रहा है, साथ ही हवा भी प्रदूषित हो रही है। वहीं अवैध ऑटो के संचालन पर अंकुश लगाने की बजाय जिम्मेदार अफसर सिर्फ उगाही पर ध्यान लगाए हुए हैं।

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अवध चौराहे से गैर-जनपदों के ऑटो राजधानी के कई मार्गों पर संचालित हो रहे हैं। इन मार्गों पर संचालित हो रहे गैर-जनपदों के ऑटो की संख्या भी सैकड़ों में है, बावजूद इसके स्थानीय पुलिस, ट्रैफिक पुलिस और आरटीओ प्रवर्तन अफसरों को यह दिखायी नहीं पड़ रहे हैं। गैर-जनपदों के ऑटो के संचालन से राजधानी में पंजीकृत ऑटो मालिकों को खासा नुकसान उठाना पड़ रहा है। अवध चौराहे से आधा दर्जन मार्गों पर गैर-जनपद के सैकड़ों ऑटो संचालित हो रहे हैं। इनमें अवध चौराहे से दुबग्गा तक करीब 200 की संख्या में गैर-जनपद के ऑटो चलते हैं। इसी प्रकार अवध चौराहे से तेलीबाग मार्ग पर और पिकैडली के पास से रजनीखंड (आशियाना) मार्ग पर करीब 100-100 की संख्या में दूसरे जनपदों के ऑटो बेरोकटोक चल रहे हैं, बावजूद इसके जिम्मेदार कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।

ऑटो डीलर, स्टैंड माफिया चलवा रहे ऑटो

राजधानी के अवध चौराहे से गैर-जनपदों के ऑटो संचालन में सबसे अहम रोल ऑटो डीलर व स्टैंड माफिया अदा कर रहे हैं। सूत्रों की मानें तो स्थानीय पुलिस, ट्रैफिक पुलिस व आरटीओ प्रवर्तन अफसरों से सांठ-गांठ कर अवैध ऑटो का संचालन बेधड़क कराया जा रहा है। ऑटो डीलर और स्टैंड माफिया को वसूली के चलते स्थानीय पुलिस, टैªफिक और प्रवर्तन अफसरों का संरक्षण प्राप्त है। इसके चलते ही गैर-जनपदों के ऑटो की धरपकड़ की कार्रवाई ठप है।

परिवहन विभाग पर भारी ऑटो डीलर का खेल

अवध चौराहे से संचालित हो रहे गैर-जनपदों के ऑटो बगैर परमिट संचालित किए जा रहे हैं। इसके साथ ही परिवहन विभाग के नियमों को भी दरकिनार कर इनका संचालन किया जा रहा है। नियम के तहत ऑटो की उम्र 15 साल निर्धारित है। इसके बाद परमिट सरेंडर कर उक्त ऑटो को कटवाकर उसकी चेचिस आरटीओ कार्यालय में जमा कर उसकी जगह दूसरी गाड़ी लेने का नियम है, लेकिन ऑटो मालिक चेचिस तो जमा कर दे रहे हैं लेकिन ऑटो नहीं कटवा रहे हैं और उस ऑटो का ही संचालन सड़क पर कर रहे हैं। इसके अलावा बहुत सारे ऑटो मालिक आरटीओ से एनओसी ले रहे हैं लेकिन जिस जनपद के लिए एनओसी ली है, वहां पर गाड़ी दोबारा पंजीकृत नहीं करा रहे हैं। एनओसी की आड़ में राजधानी की सड़कों पर सुविधा शुल्क अदा कर बेरोकटोक ऑटो संचालित कर रहे हैं। इसके पीछे का सारा खेल ऑटो डीलर का है। मिलीभगत से हो रहे इस खेल पर अंकुश भी नहीं लगाया जा रहा है।

14 साल से नहीं जारी हुए नए परमिट

राजधानी में वर्ष 2006 के बाद ऑटो के परमिट नहीं जारी किए गए हैं। 14 साल पूर्व 4,343 की संख्या में ऑटो के परमिट जारी किए गए थे। वर्तमान में इनमें करीब 500 की संख्या में परमिट विभिन्न कारणों से निरस्त भी हो चुके हैं। ऐसे में राजधानी में परमिट धारक ऑटो की संख्या 4 हजार से भी कम है, वहीं राजधानी में संचालित हो रहे अवैध ऑटो की संख्या हजारों में है। वर्तमान में जहां शहर का विकास तेजी से हो रहा है, तो वहीं सार्वजनिक परिवहन के साधन नहीं बढ़ रहे हैं। इसके चलते राजधानी से सटे उन्नाव, रायबरेली, सीतापुर, बाराबंकी, हरदोई में पंजीकृत बड़ी संख्या में ऑटो राजधानी की सड़कों पर संचालित हो रहे हैं।

वर्जन

वर्तमान समय में प्रवर्तन अफसरों को वीआईपी प्रोटोकॉल के कार्य संपादित करने पड़ रहे हैं। इसके चलते प्रवर्तन कार्य संपादित नहीं किए जा रहे हैं। प्रोटोकॉल संबंधी कार्य समाप्त हो जाएं तो आगे गैर-जनपदों के ऑटो के खिलाफ लगातार कार्रवाई कर इनका संचालन बंद कराया जाएगा।

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