नई दिल्लीः भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को कजरी तीज का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और खुशहाल वैवाहिक जीवन की कामना के लिए व्रत करती हैं। वहीं कुंवारी कन्याएं मनवांछित वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत करती है। कजरी तीज पर महिलाएं व्रत कर माता पार्वती की पूजा करती हैं। सुहागिन महिलाएं इस दिन सोलह श्रृंगार करती हैं। कजरी तीज सावन माह में पड़ने वाली हरियाली तीज के 15 दिन बाद मनायी जाती है। कजरी तीज को सातुड़ी तीज भी कहा जाता है। आइए जानते हैं कजरी तीज का शुभ मुहूर्त और व्रत कथा।
कजरी तीज की तिथि और शुभ मुहूर्त
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि प्रारंभ- 13 अगस्त की रात 12 बजकर 53 मिनट से शुरू।
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि समाप्त- 14 अगस्त की रात 10 बजकर 35 मिनट तक।
सुकर्मा योग- प्रातःकाल से लेकर देर रात 1 बजकर 38 मिनट तक
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कजरी तीज की व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक गांव में एक ब्राह्मण रहता था। भाद्रपद माह में जब कजरी तीज का त्योहार आया तो ब्राह्मण की पत्नी ने तीज माता का व्रत रखा। लेकिन पूजा करने के लिए ब्राह्मणी के पास सामग्री नहीं थी। तब ब्राह्मण की पत्नी ने कहा-स्वामी आज मैंने कजरी तीज का व्रत रखा है। इसलिए पूजा करने के लिए कहीं से थोड़ा सा चने का सत्तू ले आइए। इस पर ब्राह्मण ने कहा कि मैं कहां से सत्तू ले आंऊ। तब उसकी पत्नी ने कहा कि यह मैं नहीं जानती। मुझे पूजा करने के लिए सत्तू चाहिए। पत्नी के हठ और भक्तिभावना को देख ब्राह्मण सत्तू लेने के लिए बाजार गया। लेकिन ब्राह्मण के पास पैसे नहीं थे कि वह सत्तू खरीद सके। इसलिए उस ब्राह्मण ने साहूकार की दुकान से चोरी करने का मन बनाया और रात्रि में साहूकार की दुकान में घुस गया। उसे दुकान से सत्तू की एक पोटली बनाई और दुकान से निकलने लगा। तभी कुछ सामान गिरने के चलते साहूकार के नौकर जाग गये और ब्राह्मण को पकड़ लिया। नौकरों ने ब्राह्मणों को साहूकार के सामने पेश किया। तब ब्राह्मण ने कहा कि मैं गरीब ब्राह्मण हूं, चोर नहीं हूं। यह कहते हुए उन्होंने पूरी बात साहूकार को बता दी। इस पर साहूकार ने नौकरों से ब्राह्मण की पोटली देखने को बोला। पोटली में केवल थोड़ा सा सत्तू ही निकला। इस पर साहूकार ने ब्राह्मण से क्षमा मांगी और कहा कि आज से तुम्हारी पत्नी को मै अपनी बहन मानूंगा। यह कहकर साहूकार ने ब्राह्मण को सत्तू, पूजा का सामान, पैसे और गहने देकर विदा कर दिया। वहीं चांद निकल जाने पर ब्राह्मण की पत्नी उसका इंतजार कर रही थी। तभी ब्राह्मण सभी सामान लेकर घर पहुंचा तो वह ब्राह्मणी बेहद प्रसन्न हुई और फिर दोनों ने मिलकर तीज माता की विधि-विधान से पूजा की।
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