मोदी राज में हो रहा भारत का सांस्कृतिक पुनरोदय

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सैकड़ों सालों की गुलामी से मुक्ति के बाद होना तो यह चाहिए था कि स्वाधीन भारत की सरकारें विदेशी आक्रांताओं द्वारा नष्ट-भ्रष्ट किए गए भारत के सांस्कृतिक गौरव को प्रमुखता से सुरक्षित व संरक्षित करतीं, मगर हुआ बिल्कुल इसके विपरीत। आजाद भारत की वामपंथी विचारधारा से पोषित पाश्चात्य मानसिकता वाली सरकारें भारत की सनातन संस्कृति के गौरव के प्रतीक पौराणिक महत्व वाले हिंदू मंदिरों और तीर्थस्थलों के पुनरुत्थान के प्रति पूरी तरह उदासीन बनी रहीं। इस सरकारी उदासीनता की मुख्य वजह थी तुष्टिकरण की राजनीति और भारतीय पुरा इतिहास के श्रीराम व श्रीकृष्ण सरीखे महानतम राष्ट्रनायकों को कपोल कल्पना और सनातन संस्कृति की वैदिक ज्ञान सम्पदा को आधारहीन गल्प मानने की मानसिकता। इसी कारण सनातनधर्मियों की आस्था के केन्द्र दशकों तक उपेक्षित बने रहे, लेकिन बीते नौ सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से भारत की प्राचीन गौरवशाली पृष्ठभूमि वाले मंदिर तीर्थों का जीर्णोद्धार कर उन्हें उनकी पुरानी गरिमा वापस दिलाने को प्रतिबद्धता व तत्परता दिखाई है, देश की बहुसंख्यक सनातनधर्मी जनता राष्ट्र के इस सांस्कृतिक व आध्यात्मिक पुनरोदय को एक सुखद दैवीय संयोग मान रही है। तमाम पौराणिक उद्धरण और ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि प्राचीन भारत में तीर्थक्षेत्र राष्ट्र की अर्थव्यवस्था के प्रमुख केंद्र हुआ करते थे।

प्राचीनकाल की इसी सांस्कृतिक अर्थव्यवस्था ने हमारे देश को ‘विश्वगुरु’ के साथ ‘सोने की चिड़िया’ का तमगा दिलाया था, मगर आजादी के बाद देश पर 60 सालों तक शासन करने वाली कांग्रेसी सरकारों ने प्राचीन भारत की समृद्धि और सुसंस्कृति के इस मूल मंत्र को पूरी तरह भुला दिया और अंग्रेजों की मानसिकता के साथ देश पर शासन करती रही। एक सुप्रसिद्ध उक्ति है ‘जैसा राजा वैसी प्रजा’। संभवतः इसी कारण भारत का अस्सी फीसद सनातनधर्मी समाज इतनी सुदीर्घ अवधि तक अपनी पुरातन गौरवशाली संस्कृति और राष्ट्रबोध के प्रति निष्क्रिय व उदासीन बना रहा लेकिन वर्ष 2014 में जब भारत की राजसत्ता की बागडोर नरेंद्र मोदी के रूप में मां भारती के एक अनन्य साधक ने संभाली तो देखते ही देखते समूचा परिदृश्य बदलता चला गया। राजसत्ता बदली तो जनमानस भी बदल गया। मोदी सरकार ने पिछले नौ साल के कार्यकाल में देश में अनेक पुरातन तीर्थक्षेत्रों का अभूतपूर्व विकास किया है। आध्यात्मिकता भारतीय संस्कृति का मूल आधार है। यह वह धुरी है, जिसकी बदौलत सदियों से भारत के व्यक्तिगत, सामाजिक, राष्ट्रीय और आर्थिक जीवन के मध्य एक संतुलित सामंजस्य कायम रहा है। मोदी जी की गहन दृष्टि से हमारे शक्तिपीठों, मंदिरों, पुण्यस्थलों की सांस्कृतिक विरासत पर विगत छह दशकों से जमी धूल हट रही है और भारत अपनी प्राणशक्ति की ओर जा रहा है। इस शक्ति की जागृति से भारत की सांस्कृतिक अस्मिता का पुनर्जागरण हो रहा है और विश्व कल्याण के लिए भारत के आध्यात्मिक अभ्युदय का नया दौर शुरू हो चुका है।

कॉरिडोर सांस्कृतिक वैभव को दे रहे नया आयाम

जानना दिलचस्प हो कि सनातन संस्कृति के इस पुनरोदय से न केवल सनातनधर्मियों का भारत बोध जागृत हुआ है, वरन पर्यटन उद्योग को नई ताकत मिलने से देश की अर्थव्यवस्था को भी गति मिल रही है। पिछले कुछ सालों में तीर्थक्षेत्रों के सौंदर्यीकरण और सुविधाओं में बढ़ोत्तरी से इन तीर्थों में आने वाले श्रद्धालु भक्तों की संख्या में इतनी अधिक बढ़ोत्तरी हो रही है कि अब पर्यटन से इतर हिंदू तीर्थ क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था में एक अलग आर्थिक क्षेत्र बनता दिख रहा है। अयोध्या में राम मंदिर, काशी में बाबा विश्वनाथ धाम कॉरिडोर, उज्जैन में महालोक कॉरिडोर, केदारनाथ धाम का पुनर्विकास, कोणार्क का सूर्य मंदिर, मदुराई का मीनाक्षी मंदिर, एलोरा का कैलाश मंदिर, कांचीपुरम में वरद राजा मंदिर, गुजरात में मोढेरा के सूर्य मंदिर और करतारपुर साहिब कॉरिडोर के रूप में भारत के सांस्कृतिक वैभव को एक नया आयाम दे रहे हैं। इसके अतिरिक्त रामायण सर्किट, बौद्ध सर्किट, तीर्थंकर सर्किट समेत अन्य पर्यटन सर्किट भी विकसित किए जा रहे हैं। इस परिप्रेक्ष्य में यह कहना जरा भी अनुपयुक्त नहीं होगा कि पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत की सनातन संस्कृति को दुनियाभर में अभूतपूर्व पहचान मिल रही है। भारत के संस्कृति पुरुष मर्यादा पुरुषोत्तम की जन्मभूमि पर 500 वर्षों से विवादित श्रीराम मंदिर के निर्माण का मार्ग मोदी राज में ही प्रशस्त हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 05 अगस्त 2020 को विधि-विधान के साथ अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर की नींव रखी थी। इस मंदिर का निर्माण अब अपने अंतिम चरण में है। श्रीराम मंदिर के निर्माण के साथ अयोध्या को वैश्विक सुविधाओं वाला महानगर बनाने का कार्य तीव्र गति से चल रहा है। पीएम मोदी ने नींव रखते समय कहा था कि इस राम मंदिर के रूप में भारत के गौरव का प्रतिबिंब खड़ा हुआ है। इतिहास से सीखकर, वर्तमान को सुधारने की एक नया भविष्य बनाने की कहानी है। यह केवल भौगोलिक एवं वैचारिक निर्माण नहीं है। यह हमारे अतीत से जोड़ने का प्रकल्प है। हमने अतीत के खंडहरों पर आधुनिक गौरव का निर्माण किया है।

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इसी तरह प्रधानमंत्री ने 13 दिसंबर 2021 को 500 साधु-संतों के साथ मंत्रोच्चार के बीच काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण किया था। भारत की आध्यात्मिक राजधानी काशी का पुनरुद्धार नरेंद्र मोदी के हाथों से ही संभव होना दैवीय संयोग ही है। काशी उनका संसदीय क्षेत्र है इसलिए काशी का ऐसा विकास हुआ, ऐसा नहीं है। पहले भी अनेक बड़े नेता इस संसदीय क्षेत्र का नेतृत्व कर चुके हैं लेकिन किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि काशी की संकरी गलियों में बाबा विश्वनाथ के लिए इतना भव्य कॉरिडोर बन सकता है। इस भव्य कॉरिडोर में छोटी-बड़ी 23 इमारतें और 27 मंदिर हैं। अब काशी विश्वनाथ आने वाले श्रद्धालुओं को गलियों और तंग संकरे रास्तों से नहीं गुजरना पड़ता। अब गंगा घाट से सीधे कॉरिडोर के रास्ते बाबा विश्वनाथ के दर्शन किए जा सकते हैं। आज काशी अपने नए रंग-रूप में अपनी आध्यात्मिक पहचान के साथ चमचमा रही है। काशी न्यारी हो गई है, जहां दुनिया भर के लोग आकर वास्तविक भारत और उसकी आध्यात्मिक राजधानी को प्रमुदित दृष्टि से निहार कर आनंदित होते हैं। इसी क्रम में 11 अक्टूबर 2022 को पीएम मोदी ने मध्य प्रदेश के उज्जैन में ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर के नवविस्तारित क्षेत्र ‘श्री महाकाल लोक’ को लोकार्पित कर महाकाल मंदिर को पुरानी गौरवशाली पहचान वापस दिलाने का स्तुत्य प्रयास किया है। ज्ञात हो कि महाकाल की नगरी विश्व भर में विशेष धार्मिक महत्व रखती है, जहां प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु आते हैं। उज्जैन राज्य सरकार द्वारा 856 करोड़ रुपए से किए गए महाकाल मंदिर क्षेत्र के भव्य नवनिर्माण से भारत की आध्यात्मिक यात्रा में नया अध्याय जुड़ा है। इस महाकाल कॉरिडोर में भगवान शिव से जुड़ी कई भव्य मूर्तियां लगाई गई हैं, जो भक्तों को भगवान शिव के जीवन और आध्यात्मिक तत्वदर्शन से जोड़ती हैं।

ज्ञात हो कि काशी कॉरिडोर की तर्ज पर मोदी-योगी सरकार ने मिलकर पांच सौ करोड़ से ज्यादा की लागत से मथुरा व वृन्दावन को सजाने-संवारने की योजना बनाई है। देश-विदेश में विख्यात बांके बिहारी मंदिर के लिए कॉरिडोर बनाने के लिए ब्रज तीर्थ विकास परिषद ने कार्ययोजना की विस्तृत रूपरेखा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने पेश की है। इस कॉरिडोर में चार और प्राचीन मंदिरों को शामिल किया जाएगा। 22,800 वर्ग मीटर में प्रस्तावित इस कॉरिडोर से बांके बिहारी के दर्शन में कम समय लगेगा। भीड़ प्रबंधन में सहूलियत होगी। अभी एक बार में 800 श्रद्धालु ही दर्शन कर पाते हैं। ज्ञात हो कि मथुरा-वृंदावन से लेकर गोकुल-नंदगांव और गोवर्धन-बरसाना तक लाखों श्रद्धालु हर साल दर्शनार्थ यहां आते हैं। बीते साल जन्माष्टमी पर भक्तों की बहुत भारी भीड़ के चलते बांके बिहारी मंदिर में दबने से दो श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी। राज्य सरकार के निर्देश पर अधिकारियों ने कॉरिडोर की योजना बना ली है। हालांकि, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसमें कुछ और सुधार के निर्देश दिए हैं। कॉरिडोर बनने के बाद यह क्षमता बढ़कर पांच हजार हो जाएगी। काशी में जिस तरह से गंगा को शिव के साथ जोड़ा गया है, उसी तरह यहां कॉरिडोर का डिजाइन इस तरह बनाया गया है कि योगीराज कृष्ण और यमुना नदी आपस में जुड़ जाएं। बता दें कि द्वापर युग में कृष्ण कन्हैया ने यमुना नदी के किनारे कई बाल लीलाएं की थीं। काशी की तर्ज पर मंदिर को यमुना नदी से जोड़ने के साथ ही यहां के चार अन्य प्राचीन और प्रख्यात मंदिरों को भी कॉरिडोर से जोड़ा जाएगा। ये कॉरिडोर मंदिर और यमुना नदी को जोड़ेगा। ठीक वैसे ही जैसे काशी विश्वनाथ कॉरिडोर मंदिर और गंगा नदी से जुड़ा है यानी भक्त यमुना में डुबकी लगाने के बाद सीधे मंदिर में पहुंच सकेंगे। सरकार की योजना के मुताबिक, वृंदावन में बांके बिहारी मंदिर के चारों ओर 09 मीटर का बफर जोन बनाया जाएगा, जिसमें ग्रीन बेल्ट भी होगी। 750 वर्ग मीटर में परिक्रमा मार्ग से मंदिर के लिए चैड़े मार्ग का निर्माण करने के साथ 18,400 वर्ग मीटर का खुला क्षेत्र होगा। मंदिर के सामने दो तलों के परिसर में प्रतीक्षालय बनाया जाएगा। पूजा सामग्री की दुकानें, चिकित्सा व पुलिस सुविधा की व्यवस्था होगी। श्रद्धालु बांके बिहारी मंदिर के साथ-साथ चार और प्राचीन मंदिर के दर्शन कर सकेंगे। इसमें मदन मोहन और राधा वल्लभ जैसे प्राचीन मंदिर शामिल हैं।

देवभूमि उत्तराखण्ड का हो रहा कायाकल्प

हर्ष का विषय है कि भारी प्राकृतिक आपदा झेल चुके हमारे चारधाम में एक केदारनाथ धाम का कायाकल्प भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इच्छाशक्ति से सम्पन्न हो चुका है। मोदी सरकार ने देवभूमि उत्तराखण्ड के लिए चार धाम परियोजना शुरू की है। रणनीतिक रूप से बेहद अहम माने जाने वाली 900 किलोमीटर लंबी इस सड़क परियोजना का उद्देश्य उत्तराखण्ड के चारों धामों के लिए हर मौसम में सुलभ और सुविधाजनक रास्ता देना है। चारधाम परियोजना एक तरह से ऑल वेदर रोड परियोजना है, जो उत्तराखण्ड में केवल चार धामों को जोड़ने की परियोजना भर नहीं है बल्कि यह राष्ट्रीय महत्व की परियोजना है। इसके जरिए उत्तराखण्ड के गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ को जोडकर पर्यटन को बढ़ावा तो मिलेगा ही, साथ ही पड़ोसी चालबाज देश चीन को चुनौती देने के लिहाज से भी यह महत्वपूर्ण है। इसके अलावा ऋषिकेश को रेल मार्ग से कर्णप्रयाग से जोड़ने का काम चल रहा है। गुजरात के सोमनाथ मंदिर, शक्तिपीठ अंबाजी मंदिर और मोढेरा के सूर्य मंदिर का भी पुनरुद्धार कर कई परियोजनाओं का शुभारंभ किया गया है। इन परियोजनाओं में सोमपुरा सलात शैली में मंदिर निर्माण, गर्भ गृह और नृत्य मंडप का विकास शामिल है। इन परियोजनाओं के अंतर्गत मंदिर के पीछे समुद्र तट पर 49 करोड़ रुपए की लागत से बना एक किलोमीटर लम्बा समुद्र दर्शन मार्ग, पुरानी कलाकृतियों से युक्त नवनिर्मित सभागार और मुख्य मंदिर के सामने बने नवीनीकृत अहिल्याबाई होल्कर मंदिर यानी पुराना सोमनाथ मंदिर को भी शामिल किया गया है।

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इससे यहां का पर्यटन बढ़ा है और समृद्धि आई है। बताते हैं कि 18 जून, 2022 को देश के हिंदू समाज ने तब स्वयं को अत्यंत गर्वान्वित महसूस किया था, जब 500 साल बाद प्रधानमंत्री मोदी ने गुजरात के पावागढ़ पहाड़ी पर स्थित महाकाली मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद उसके शिखर पर ध्वज पताका फहराई थी। बताते चलें कि कश्मीर में 05 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 हटाने के बाद मोदी सरकार के नेतृत्व में श्रीनगर में कई पुराने मंदिरों के पुनरुद्धार का काम शुरू हुआ है। कश्मीर में 2,300 साल पुराने शारदा पीठ मंदिर, श्रीनगर स्थित रघुनाथ मंदिर हो या माता हिंगलाज का मंदिर, सभी प्रमुख मंदिरों के स्वरूप को नवजीवन दिया जा रहा है। ज्ञात हो कि शारदा पीठ मंदिर कश्मीरी पंडितों की आस्था का बड़ा प्रतीक रहा है, लेकिन सदियों पुराना ये मंदिर खंडहर में बदल चुका था। जानकार सूत्रों के मुताबिक पुराने समय में कश्मीर में कुल 1,842 हिंदू मंदिर व पूजास्थल थे। आजादी के समय इनमें से 952 मंदिर बचे थे, जिनमें आज सिर्फ 212 में ही पूजा चल रही है जबकि 740 जीर्ण-शीर्ण हालत में हैं। मोदी सरकार हिन्दू आस्था के इन केन्द्रों के जीर्णोद्धार को संकल्पित है। उनकी इस पहल के तहत सबसे पहले झेलम नदी के किनारे बने रघुनाथ मंदिर का फिर से निर्माण किया गया है। भगवान राम का ये मंदिर महाराजा गुलाब सिंह ने 1835 में बनवाया था। इसके अलावा अनंतनाग का मार्तंड मंदिर, पाटन का शंकरगौरीश्वर मंदिर, श्रीनगर के पांद्रेथन मंदिर, अवंतिपोरा के अवंतिस्वामी और अवंतिस्ववरा मंदिर के पुनरोद्धार का काम चल रहा है। अनंतनाग जिले में एएसआई द्वारा संरक्षित मार्तंड सूर्य मंदिर में मई 2022 में सुबह 100 से अधिक तीर्थयात्रियों ने कुछ घंटों तक पूजा-अर्चना की थी। इस कार्यक्रम के जरिए सूर्य मंदिर में पहली बार शंकराचार्य जयंती मनाई गई थी। कहा जाता है कि 8वीं शताब्दी के इस मंदिर को सिकंदर शाह मिरी के शासन के दौरान 1389 और 1413 के बीच नष्ट कर दिया गया था।

सनातन संस्कृति की पुनप्र्रतिष्ठा के इस क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 05 फरवरी 2022 को हैदराबाद में 11वीं सदी के हिंदू संत रामानुजाचार्य के सम्मान में बनी 216 फीट ऊंची स्टैच्यू ऑफ इक्वेलिटी का उद्घाटन किया था। ज्ञात हो कि इस प्रतिमा में 120 किलो सोने का इस्तेमाल किया गया है, जिसकी लागत करीब 400 करोड़ रुपए है। यह 45 एकड़ जमीन पर बना है। मंदिर परिसर में करीब 25 करोड़ की लागत से एक म्यूजिकल फाउंटेन का निर्माण भी कराया गया है। इसी क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 जून 2022 को महाराष्ट्र में संत तुकाराम शिला मंदिर का उद्घाटन किया। पीएम मोदी ने विकास योजनाओं की जानकारी देते हुए कहा कि संत ज्ञानेश्वर पालखी मार्ग का निर्माण 05 चरणों में होगा और संत तुकाराम पालखी मार्ग का निर्माण 03 चरणों में होगा। 350 किलोमीटर से ज्यादा बड़े हाइवे बनेंगे, इसमें 11,000 करोड़ का खर्च होगा। संत तुकाराम एक वारकरी संत और कवि थे। उन्हें अभंग भक्ति कविता और कीर्तन के माध्यम से समुदाय-उन्मुख पूजा के लिए जाना जाता है। गौरतलब हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जितना ध्यान देश के मंदिरों के पुनरुद्धार पर है, उतना ही विदेशों में भी जीर्ण-शीर्ण हालत में पड़े पुराने मंदिरों के पुनर्निर्माण को पर भी है। इस दिशा में सबसे पहले बहरीन स्थित 200 साल पुराने श्रीनाथ जी के मंदिर के लिए 4.2 मिलियन डाॅलर खर्च किए जाने की योजना है। इसके अलावा जेबेली अली अमीरात के कॉरीडोर ऑफ चॉलरेस में विशाल मंदिर के बनने से वहां के हिंदुओं का दशकों पुराना सपना पूरा हुआ है। इसी तरह पीएम मोदी ने 16 मई 2022 को नेपाल के लुंबिनी में नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के साथ भारत अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध संस्कृति और विरासत केंद्र का शिलान्यास किया था। यही नहीं, पीएम मोदी के व्यक्तिगत प्रयासों से ऐसे सैकड़ों प्राचीन वस्तुओं एवं मूर्तियों को विदेशों से वापस लाने में सफलता मिली है, जिन्हें दशकों पहले चोरी और तस्करी के जरिए विदेश भेज दिया गया था।

तीर्थस्थलों में सुविधाओं का हो रहा विस्तार

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भारत सरकार के आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, देश के हिन्दू तीर्थस्थलों के विकास के लिए शुरू की गई प्रसाद योजना का विस्तार किया है। फिलहाल इस योजना से 12 तीर्थस्थलों को जोड़ा गया है। इनमें कामाख्या (असम), अमरावती (आंध्र प्रदेश), द्वारका (गुजरात), गया (बिहार), अमृतसर (पंजाब), अजमेर (राजस्थान), पुरी (ओडिशा), केदारनाथ (उत्तराखंड), कांचीपुरम (तमिलनाडु), वेलनकन्नी (तमिलनाडु), वाराणसी (उत्तर प्रदेश), मथुरा (उत्तर प्रदेश) शामिल हैं। इन 12 स्थलों के अलावा प्रसाद योजना का दायरा और बढ़ा दिया गया है। योजना के तहत स्थलों की संख्या बढ़कर लगभग 41 हो गयी है। इसी तरह बौद्ध तीर्थ यात्रा के लिए कुशीनगर के अलावा झारखंड स्थित देवघर समेत कई तीर्थ स्थलों का प्रसाद योजना के तहत बुनियादी सुविधाओं का निर्माण कराया जा रहा है। इस योजना का मकसद बुनियादी सुविधाओं का विकास किया जाना है। प्रवेश स्थल (सड़क, रेल और जल परिवहन), आखिरी छोर तक कनेक्टिविटी, पर्यटन की बुनियादी सुविधाएं जैसे सूचना केंद्र, एटीएम, मनी एक्सचेंज, पर्यावरण अनुकूल परिवहन के साधन, क्षेत्र में प्रकाश की सुविधा और नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत से रोशनी, पार्किंग, पीने का पानी, शौचालय, अमानती सामान घर, प्रतीक्षालय, प्राथमिक चिकित्सा केंद्र, शिल्प बाजार, हाट, दुकानें, कैफेटेरिया, मौसम से बचने के उपाय, दूरसंचार सुविधाएं, इंटरनेट, कनेक्टिविटी आदि शामिल हैं। इसी तरह रामायण सर्किट और बुद्ध सर्किट को भी जोड़ने का काम चल रहा है। देश में कोरोना की रफ्तार में कमी होने के बाद घरेलू पर्यटन में बढोतरी हुई है। पर्यटन मंत्रालय की माने तो दुर्गम इलाकों में कनेक्टिविटी में सुधार तथा पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कई विकास कार्य तेज कर दिया गया है, जिससे आने वाले यात्रियों को असुविधा न हो।

विकास का नया मॉडल बन रहे धर्मस्थल

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हिंदू श्रद्धास्थल हर सनातनधर्मी के लिए प्रेरणा केंद्र हैं, जो आस्था के साथ-साथ नई संभावनाओं का स्रोत भी बन रहे हैं, इस बात के गहरे अर्थ हैं। कारण कि जिन मंदिरों या आस्था केंद्रों का पुनरुद्धार हो रहा है, उससे वहां केवल मंदिर परिसर का ही कायाकल्प नहीं होता, बल्कि उसके साथ उस क्षेत्र का समग्र विकास भी होता है। स्थलों पर पुनरुद्धार कार्य के साथ-साथ अनेक जरूरी विकास और रोजगारपरक योजनाओं को भी अमलीजामा पहनाया जाता है। करोड़ों की परियोजनाओं को जमीन पर उतारा जाता है, जिससे नई संभावनाओं के द्वार खुलते हैं। निःसंदेह ऐसे सभी क्षेत्रों में आध्यात्म-संस्कृति का नया सवेरा हुआ है, तो विकास की नई गंगा भी प्रवाहित हुई है। सबसे बड़े लोकतीर्थ अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण के साथ-साथ लाखों करोड़ की परियोजनाओं पर काम हो रहा है। इंटरनेशनल एयरपोर्ट से लेकर एक्सप्रेसवे तक बन रहा है और अयोध्या को वैश्विक सुविधाओं वाला महानगर बनाने का कार्य तीव्र गति से चल रहा है। काशी, सोमनाथ, केदारनाथ सहित सभी स्थानों पर यही स्थिति है, इसलिए प्रधानमंत्री मोदी द्वारा उद्घाटित धार्मिक-आस्था स्थलों को विकास के एक नए मॉडल के रूप में भी देखा जाना चाहिए। इन स्थलों पर यात्रियों की संख्या बढ़ेगी, तो रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे और राजस्व में भी वृद्धि होगी। देश की अर्थव्यवस्था को भी इससे नई उड़ान मिलेगी। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के किसी भी हिस्से में जाते हैं, तो वहां के प्रसिद्ध देवालयों में दर्शन-पूजन अवश्य करते हैं अथवा उनता पुण्य स्मरण करते हैं। यही वजह है कि आज देश का हर सनातनधर्मी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को हिंदू स्वाभिमान का अप्रतिम प्रतीक मानता है।

पूनम नेगी