Home फीचर्ड टीके के ‘ग्रीन पास’ पर रंग ला रही भारतीय रणनीति

टीके के ‘ग्रीन पास’ पर रंग ला रही भारतीय रणनीति

एक हाथ से ताली कभी नहीं बजती। संबंध तभी कायम रहते हैं,जब दोनों पक्ष उसे अहमियत दें। वैदेशिक संबंधों की मधुरता के लिए तो ऐसा करना बहुत जरूरी है। रही बात भारत की, तो उसके लिए दुनिया एक परिवार है। वह सबसे आत्मवत व्यवहार करने का सदियों से पक्षधर रहा है। कोई जरा सी संवेदना दिखाता है तो वह अपना दिल खोलकर रख देता है। वह संपूर्ण पारदर्शिता के साथ मित्रता करता है। इतना ही नहीं, शत्रु देश के प्रति भी वह दुराव नहीं करता अपितु उसके मंगल की कामना करता है। उसकी सुख-शांति की अभिलाषा करता है। भारत लड़ने और तोड़ने में नहीं, मिलने और जोड़ने में यकीन रखता है।

भारत की अपनी आबादी 1.38 अरब की है लेकिन इसके बाद भी कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए उसने दुनिया के 90 देशों को कोविशील्ड और कोवैक्सीन मुहैया कराई थी। भारतीय मलेरियारोधर दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की आपूर्ति को लेकर तो तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप धमकी तक पर उतर आए थे। जिन टीकों से दुनिया के 90 देशों में कोरोना संक्रमित लोगों के प्राण बचे, उन्हीं टीकों को संदिग्ध ठहराने की कोशिश भी कुछ यूरोपीय देशों में हुई। इसे व्यापारिक षड़यंत्र कहें या कुछ और यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन भारतीय नागरिकों को टीके के नाम पर अपने यहां आने से रोकना किसी दुरभिसंधि का ही हिस्सा हो सकता है। इसे भारत के प्रतिरोध की ही परिणिति कहेंगे कि यूरोपीय संघ के नौ देशों को भारत में निर्मित कोविशील्ड वैक्सीन को मान्यता देनी पड़ी है। एस्टोनिया ने तो कोवैक्सीन सहित सभी भारतीय टीकों को मान्यता देने की घोषणा कर दी है।

जाहिर तौर पर यूरोपीय देशों ने यह कदम भारत सरकार के आग्रह और तल्ख चेतावनी के बाद उठाया है। भारत ने यूरोपीय संघ के सदस्य देशों से कहा था कि भारतीय कोरोना रोधी टीकों एवं कोविन प्रमाणपत्र को अगर यात्रा पास के तौर पर यूरोपीय देश मान्यता नहीं देंगे तो भारत में यूरोपीय संघ के डिजिटल कोविड प्रमाणपत्र को मान्यता नहीं दी जाएगी और उनके नागरिकों को भारत में क्वारंटीन किया जाएगा।

भारत के इस आग्रह के बाद ऑस्ट्रिया, जर्मनी, स्लोवेनिया, आइसलैंड, यूनान, आयरलैंड और स्पेन ने ईयू डिजिटल कोविड प्रमाणपत्र में कोविशील्ड को भी शामिल कर लिया है जबकि शेनजेन समूह के देश स्विट्जरलैंड ने भी कोविशील्ड को मान्यता प्रदान की है। एस्टोनिया ने पुष्टि की है कि वह भारत सरकार द्वारा अधिकृत सभी टीकाें को मान्यता देगा और टीका लगा कर आने वाले भारतीय नागरिकों को यात्रा की अनुमति प्रदान करेगा। भारत ने एक जुलाई से प्रभावी ईयू डिजिटल कोविड प्रमाणपत्र फ्रेमवर्क में भारतीय टीकों को सम्मिलित न करने पर ऐतराज जाहिर किया था। यूरोपीय संघ ने इस फ्रेमवर्क के तहत यूरोपीय मेडिकल एजेंसी द्वारा अधिकृत टीके लगवाने वाले लोगों को यूरोपीय संघ के देशों में यात्रा प्रतिबंधों से छूट देने और मुक्त आवाजाही सहज-सुलभ करने की घोषणा की थी। वैक्सीन के ग्रीन पास को लेकर भारत ने यूरोपीय संघ के देशों से कहा था कि भारत में यूरोपीय संघ डिजिटल कोविड प्रमाणपत्र को मान्यता देने की नीति पारस्परिकता पर आधारित होगी। इसमें शक नहीं कि यूरोपीय संघ के बहुत सारे देश अभी भी कोरोना वैक्सीन के ग्रीन पास को लेकर चुप्पी साधे हुए हैं और अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं। केवल 8 देशों में ग्रीन पास मिलने से तो बात बनने से रही। 21 देश और हैं जिन्हें भारत के आग्रह पर विचार करना है कि वे कोविशील्ड और कोवैक्सिन के टीके लगवा चुके भारतीयों को यूरोप की यात्रा करने की अनुमति दें या न दें। चूंकि यूरोपीय संघ की डिजिटल कोविड सर्टिफिकेट योजना ‘ग्रीन पास’ 1 जुलाई से लागू हो गई है। ऐसे में भारत वेट एंड वाच की स्थिति में है। वह तेल भी देख रहा है और तेल की धार भी।

उसने यूरोपीय देशों की तरह यह तो नहीं कहा है कि वह अन्य टीके की दोनों डोज लेने वालों को अपने देश में घुसने नहीं देगा लेकिन उन्हें क्वारंटीन करने की बात भी यूरोपीय देशों के लिए किसी झटके से कम नहीं है। व्यवहार का सामान्य सिद्धांत भी यही है कि जो जिस भाषा में समझे, उसे उसी भाषा में जवाब दिया जाना चाहिए। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, उसकी सदाशयता को यूरोपीय देश उसकी कमजोरी न मान बैठें, इसलिए भी उसे उनके समक्ष अपना पक्ष मजबूती से रखना चाहिए। यह सच है कि भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर यूरोपीय संघ के प्रतिनिधि जोसेफ बोरेल फोंटेलेस के साथ बैठक कर कोविशील्ड को यूरोपीय यूनियन की डिजिटल कोविड सर्टिफिकेट स्कीम में शामिल करने का मुद्दा उठा चुके हैं। यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी ने अभी तक केवल 4 वैक्सीन बायोएनटेक-फाइजर की कॉमिरनटी, मॉडर्ना, ऑक्सफोर्ड-एस्ट्रेजेनेका की वैक्सजेवरिया और जॉनसन एंड जॉनसन की जानसेन को ग्रीन पास की मंजूरी दी थी।उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत ने बांग्लादेश, म्यांमार,नेपाल, भूटान, मालदीव, मॉरिशस, सेशल्स , श्रीलंका, बहरीन, ब्राजील , मोरेक्को, ओमान, इजिप्ट, एल्जीरिया, साउथ कोरिया, कुबैत , यूएई, अफगानिस्तान, बारबाडोस, डोमिनिका, मैक्सिको, डोमिनिकन रिपब्लिक , सऊदी अरब , यूक्रेन , कनाडा, माली, सूडान, यूके, बहामास समेत 90 देशों में वैक्सीन की डोज भेजी हैं। इनमें से कई देश ऐसे हैं जिनकी आबादी से दोगुना अधिक कोरोनारोधी वैक्सीन भारत सरकार ने या तो उन्हें दान दी है या व्यापारिक शर्तों पर दी है। 16 प्रतिशत वैक्सीन तो निश्चित तौर पर भारत सरकार ने दान में ही दी है, इसके बाद भी अगर दुनिया के कुछ देश कोविशील्ड और कोवैक्सीन की दोनों डोज ले चुके नागरिकों को वैक्सीन का ग्रीन पास देने में आनाकानी करें तो इसे कृतघ्नता नहीं तो और क्या कहा जाएगा?

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विकथ्य है कि भले ही दुनिया भर में 181 वैक्सीन प्रीक्लिनिकल स्टेज पर, 28 वैक्सीन प्रथम और 21 तृतीय चरण में हों, चार वैक्सीन का चौथे चरण में ट्रायल हो रहा हो लेकिन इन सबके बीच 12 वैक्सीन ऐसी हैं जिन्हें वैश्विक स्तर पर मंजूरी मिल चुकी है। उनमें चीन की 4 , रूस की 2 , अमेरिका की 3 ,भारत की एक और यूके की 2 वैक्सीन शामिल हैं। चीन की वैक्सीन 25 देशों में,ब्रिटेन की वैक्सीन ऑक्सफोर्ड को 74 देशों में और फाइजर को 68 देशों में मंजूरी मिल चुकी है। अमेरिका की मॉडर्ना को 40 देशों ने मंजूरी दे रखी है लेकिन भारतीय वैक्सीन पर पूरी दुनिया भरोसा कर रही है। इसकी वजह इसका सस्ता होना तो है ही, 2 से 8 डिग्री तक के तापमान में स्टोर करने की इसकी क्षमता भी है। भारत ने हाल के दिनों में जिस तरह विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका पर सवाल उठाए हैं। उसमें व्यापक बदलाव की मांग की है,उसके पीछे विश्व स्वास्थ्य संगठन की भेदभावकारी रणनीति भी एक मुख्य कारण हैं। भारत के लिए ज्यादा मुफीद यही होगा कि वह नि:संकोच रूप से दुनिया के समक्ष अपना पक्ष रखे। अपेक्षा है, विश्व मंच पर उसकी बात सुनी जरूर जाएगी।

                                                                                                                   सियाराम पांडेय

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