वायुसेना ने आधी कर दी विदेशी लड़ाकू विमानों की खरीद, अब ये है प्लान

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नई दिल्लीः वायुसेना ने अपनी जरूरतों के लिहाज से लड़ाकू विमानों को खरीदने की योजनाओं में बदलाव करके आधा कर दिया है। अब वायुसेना ने 114 के बजाय 57 मल्टी रोल फाइटर एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) खरीदने का फैसला लिया है। इस कटौती का मुख्य कारण ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल के तहत रक्षा आयात कम करने और घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा देना है। वायु सेना के लिए 57 एमएमआरसीए लड़ाकू विमान ‘मेक इन इंडिया’ के तहत भारत में ही बनाये जाएंगे।

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दरअसल, भारतीय वायुसेना ने 2007 में ही अपने लड़ाकू बेड़े में 126 मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) की कमी होने की जानकारी देकर रक्षा मंत्रालय के सामने खरीद का प्रस्ताव रखा था। इस पर फ्रांसीसी कंपनी दसॉल्ट एविएशन से 126 राफेल फाइटर जेट का सौदा किया जा रहा था। बाद में यह प्रक्रिया रद्द करके नए सिरे से सिर्फ 36 राफेल विमानों का सौदा किया गया। इस तरह 126 के बजाय 36 विमानों का सौदा होने से वायुसेना के बेड़े में 90 विमानों की कमी बरकरार रही। इस बीच भारतीय वायुसेना के लिए 83 लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) तेजस एमके-1ए की डील पिछले साल एयरो इंडिया के दौरान पूरी की गई।

वायु सेना ने राफेल और तेजस खरीदने के बाद 1.3 लाख करोड़ से 114 और लड़ाकू विमान खरीदने की योजना पर ध्यान केंद्रित करके नए प्रकार के सिंगल इंजन वाले 114 एमएमआरसीए खरीदने का प्रस्ताव सरकार के सामने रखा। दुनियाभर की कई बड़ी रक्षा कंपनियों ने इस सौदे के लिए दिलचस्पी भी दिखाई, जिनमें अमेरिका, फ्रांस, रूस और स्वीडन की कंपनियां शामिल हैं। इस बीच सरकार ने देश को रक्षा क्षेत्र में ‘आत्मनिर्भर’ बनाने के लिए रक्षा आयात कम करने और घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने की पहल की है। इसे देखते हुए भारतीय वायु सेना ने 114 विमानों की जरूरत के स्थान पर 57 विमानों को शामिल करने का निर्णय लिया है। इस बारे में 2022 के अंत तक औपचारिक रूप से नई निविदा जारी की जाएगी।

वायु सेना के लिए लड़ाकू विमान खरीदने की योजनाओं में बदलाव होने से महत्वाकांक्षी रणनीतिक साझेदारी (एसपी) मॉडल के तहत भारत में इन जेट्स को बनाने का मूल प्रस्ताव डंप किया जाना तय है। सभी 57 लड़ाकू विमान विदेशी ओईएम से एक भारतीय कंपनी को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के साथ भारत में बनाए जाएंगे। रक्षा आधुनिकीकरण के लिए अधिकांश पूंजीगत बजट घरेलू स्रोतों के लिए प्रतिबद्ध करने के लिए एक नए सिरे से अभियान चलाया जा रहा है।

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