लखनऊः शहर में सभी बड़े और छोटे अधिकारियों को नाले व नालियों को साफ कराने की जिम्मेदारी दी गई है। जो नाले साफ किए जाने हैं, उनमें सिल्ट कम गोबर ज्यादा है। नाली में बहाने के कारण नालियां जाम हो गई हैं। यह सिल्ट अभी सड़ा भी नहीं है, जिसे कहीं पर डंप किया जा सके। अब जिन जोनों में यह समस्या बढ़ी है, वहां के जोन प्रभारियों के साथ अभियंताओं की भी किरकिरी हो रही है। बताया जाता है कि असल में समस्या गोबर नहीं कुछ और है।
राजधानी में तमाम नियमावलियां कागजों पर बताई जाती हैं, तो इनका प्रैक्टिकल भी कागजों पर ही चलता रहता है। इसका एक जीता-जागता उदाहरण है यहां पशुपालन पर बनाया गया नियम। इस नियम के तहत गौपालक को भी तमाम नियमों से गुजरना होता है। किसी गौशाला से एक जानवर लेने पर यहां के संचालक तमाम नियमों का हवाला देते हैं, लेकिन असल में कार्यपालन है इसके विपरीत। पूरे शहर में अवैध रूप से डेयरियां संचालित की जा रही हैं। कोई ऐसा जोन नहीं है, जहां पर पशुपालन नियम के अनुसार चल रहे हों। सभी वार्ड में सफाई कर्मचारी हैं, बीट इंचार्ज हैं और पार्षद भी हैं। इसके बाद भी अवैध डेयरियों का पता सालों बाद चलता है।
अब यह बात खुद मुख्य अभियंता की समझ से परे है। जिन जोनों में नाली साफ की गईं, वहां पर असल में सिल्ट गोबर ही है। इसे किसान की मर्जी के बिना खेतों में भी नहीं पहुंचाया जा सकता है। अकेले कान्हा उपवन में ही सैकड़ों टन गोबर डंप है। भीषण गर्मी होने पर भी पूरी तरह से उपले नहीं बनाए जा रहे हैं। ऐसे में डंप गोबर को कहां डाला जाए ? यह एक बड़ी समस्या है। नालों से निकलने वाला सिल्ट बस्तियां में पहुंचाने पर लोग इससे बदबू की शिकायत करते हैं। लगातार अभियान के बाद भी अभी आशियाना, भदरूख और कनौसी में हजारों पशु हैं।
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केवल 31 मई को थाना चौक जोन-2 में यहियागंज, गुरुद्वारा रोड, बेगम नाला रोड मुख्य मार्ग तथा आस-पास क्षेत्र पर नगर निगम ने कई अवैध डेयरियां पकड़ीं। इनको हटाने में मशक्कत करनी पड़ी। पुलिस बल, प्रवर्तन दल और कैटल कैचिंग कर्मचारियों ने जब मिलकर अभियान चलाया तो 20 पशु मुक्त कराए गए। इनको नगर निगम द्वारा संचालित जारहरा स्थिति राधा उपवन गौशाला भेजा गया है। शहर में तमाम ऐसे स्थान हैं, जहां पर पशुआें को रोड पर बांधा जाता है। आलमबाग में तो सब्जी मंडी के पास सड़क पर तमाम पशु बंधे रहते हैं। इनसे निरंतर गोबर नाली में बहाने की शिकायत भी निगम तक पहंच रही हैं। जोन-5 के अधिकारियां ने स्वयंसेवियों को कार्रवाई के बारे में नहीं बताया तो उन्होंने सूचना के अधिकार का प्रयोग किया। इसके बाद अधिकारियों ने कार्रवाई की। माना जा रहा है कि निगम के कुछ लोग इन पशुपालकों से पैसे लेकर इनको छोड़ भी देते हैं। इससे पशुपालकों को कार्रवाई का खौफ नहीं है।
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