लखनऊः राजधानी के कुछ इलाके ऐसे हैं, जहां के सभासद सरकारी बजट खर्च कर विकास करने में भी मेरा-तेरा करते हैं। एक ही बस्ती में कई मोहल्ले ऐसे मिलते हैं, जहां पर मूलभूत जरूरतें अधूरी और पूरी मिलती हैं। ऐसे में यहां के बाशिंदे करें भी तो क्या करें ?
इस बात का जीता-जागता उदाहरण आशियाना क्षेत्र का बंगला बाजार है। शारदानगर वार्ड में सभासद ने अपने क्षेत्र के विकास के लिए दोहरा मापदंड अपनाया है। उनकी कार्यशैली को लेकर स्थानीय लोग नाराज भी हैं। बंगला बाजार आशियाना कॉलोनी बनने के पहले से बसा हुआ था। यहां भदरुख गांव को हटाने के लिए करीब दो दशक पहले सरकारी स्तर पर तमाम प्रयास किए गए थे। स्थानीय लोगों ने इसका पुरजोर विरोध किया और जान देने तक उतारू हो गए। तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती को हस्तक्षेप कर गांव को याथवत रखने का निर्णय लेना पड़ा था। गांव के बगल में ही एक कॉलोनी भी बसाई गई थी। इसे एल्डिको की ओर से तैयार किया गया था। इसका काफी इलाका भी इसी भदरुख से जुड़ा हुआ है। ये क्षेत्र शारदा नगर वार्ड के अंतर्गत आते हैं। मायावती ने इस गांव के पास पुरानी जेल को तोड़वा दिया था। यहां वीआईपी मार्ग के अलावा नहर का सौंदर्यीकरण करते हुए कहा गया था कि आशियाना, बंगला बाजार और भदरुख का समग्र विकास किया जाएगा। आज गांव में सीवरलाइन है। नालियां हैं। बिजली और पानी है, लेकिन सब अव्यवस्थित है। सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि सभासद गांव के लोगों के साथ भेदभाव करते हैं। नगर निगम की ओर से दिए गए बजट को उन्होंने दोहरा मापदंड रख खर्च किया है।
मसलन, जहां पर उनके समर्थक ज्यादा रहते हैं, वहां पर टाइल्स लगवाई गई हैं। उसी एरिया में नालियां पक्की करा दी गई हैं। पूर्व के नगर आयुक्त इंद्रमणि त्रिपाठी के कार्यकाल में एक पार्क की बाउंड्री बनवाई गई थी, लेकिन आज तक इसका सौंदर्यीकरण नहीं किया गया है। कई मोहल्ले ऐसे हैं, जिनमें सालों से मुख्य सड़क तक जाने वाली गलियों पर पानी भरा रहता है। सब्जी मंडी या मुख्य बाजार को जाने वाले रास्ते पर दो साल से ज्यादा समय बीत गया है, जबकि यहां की पुलिया टूटी थी। एक दो नहीं, हजारों लोगों का दिन भर में इधर से वाहनों संग आना-जाना होता है, लेकिन सभासद ने इसको बनवाने की जरूरत नहीं समझी।
सरकारी जमीन पर गंदगी का ढेर है। यहां के लोगों का जीना दूभर हो गया है। न तो यहां का कूड़ा हटाया जाता है और न ही कोई सुनने वाला है। नजूल की जमीन पर भू-माफिया की नजर है। सड़कें टूटी-फूटी हैं। इसके बाद भी यहां के लोग इस विकराल स्थिति को झेलने के लिए मजबूर हैं। मोहल्लों में पार्क बनाए गए थे। सरकार की मंशा थी कि पार्क में हरियाली होगी और वातावरण स्वच्छ होगा, लेकिन लोगों ने इसे कबाड़घर बना रखा है। इस उदासीनता पर जब सभासद से बात करने की कोशिश की गई तो वह बचने की कोशिश करते रहे।
सभासद का नही कोई ठिकाना
विनोद कुमार मौर्या यहां के सभासद हैं, लेकिन उनका कोई स्थायी ठिकाना नहीं है। जब हमने उनसे आवास पर मिलने की कोशिश भी की, माननीय सभासद नदारद मिले।