हिमाचल की कांगड़ा चाय को मिली विश्वस्तरीय पहचान, वरदान सबित होगा GI टैग

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शिमला: हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा चाय (Kangra tea) ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ी कामयाबी हासिल की है। कांगड़ा चाय को यूरोपीय संघ में पंजीकृत किया गया है। अब कांगड़ा चाय (Kangra tea) विदेशों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराएगी। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने गुरुवार को शिमला में कहा कि कांगड़ा चाय यूरोपीय संघ में संरक्षित भौगोलिक संकेतक (GI) के रूप में पंजीकृत होने वाला देश का दूसरा उत्पाद बन गया है। इससे कांगड़ा चाय (Kangra tea) के उत्पादकों के लिए यूरोपीय देशों में बिक्री का मार्ग प्रशस्त हुआ है।

उन्होंने कहा कि यूरोपीय बाजारों में उत्पाद की गुणवत्ता, असलियत और प्रतिष्ठा को पहचानने के लिए यूरोपीय संघ के तहत कांगड़ा चाय (Kangra tea) का पंजीकरण महत्वपूर्ण साबित होगा। उन्होंने कहा कि इसके पंजीकरण से कांगड़ा चाय को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है जो इसकी बिक्री के लिए वरदान साबित होगी। इस फैसले से कांगड़ा जिले के पालमपुर, बैजनाथ, कांगड़ा और धर्मशाला, मंडी जिले के जोगिंदरनगर और चंबा जिले के भटियात क्षेत्र के ‘कांगड़ा चाय’ उत्पादकों को लाभ होगा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि कुल्लू शॉल, चंबा रुमाल, किन्नौर शॉल, कांगड़ा पेंटिंग, लाहौल के ऊनी मोज़े और दस्ताने आदि सहित राज्य के 400 से अधिक पारंपरिक उत्पादों को आज GI का दर्जा प्राप्त है। इसके अलावा हिमाचली टोपी, सिरमौरी लोइया, मंडी की सेपुबाड़ी, चंबा मेटल क्राफ्ट, किन्नौरी सेब और किन्नौरी ज्वैलरी को GI दिया गया है। भौगोलिक संकेतक, चेन्नई के रजिस्ट्रार के साथ स्थिति का अनुदान विचाराधीन है।

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पूरी दुनिया में मशहूर है कांगड़ा चाय –

कांगड़ा चाय (Kangra tea) अपने अनोखे स्वाद के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। इसमें भरपूर मात्रा में मौजूद पाइराजिन इसे एक अलग ही सुगंध देता है। इसके अलावा, इसमें औषधीय गुण भी होते हैं, जो एंटीऑक्सिडेंट, फेनोलिक यौगिक, ट्रिप्टोफैन, अमीनो एसिड, थीनाइन, ग्लूटामाइन और कैटेचिन में पाए जाते हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि कांगड़ा चाय को वर्ष 2005 में चेन्नई के भौगोलिक संकेतक रजिस्ट्रार द्वारा GI का दर्जा दिया गया था और अब यूरोपीय संघ के साथ पंजीकरण के बाद कांगड़ा चाय की बिक्री की जा रही है।

कई पुरस्कार प्राप्त किये –

ब्रिटिश काल में कांगड़ा चाय (Kangra tea) का निर्यात यूरोपीय बाजारों में किया जाता था। इसकी गुणवत्ता के कारण, 1886 से 1895 के बीच एम्स्टर्डम और लंदन के बाजारों द्वारा कांगड़ा चाय को विभिन्न पुरस्कार दिए गए। आज से पहले यूरोपीय संघ में पंजीकरण न होने के कारण कांगड़ा चाय को यूरोपीय बाजारों में बेचना संभव नहीं था, लेकिन अब रजिस्ट्रेशन के बाद इस हिमाचली उत्पाद के लिए यूरोपीय देशों के बाजार भी खुल गए हैं।

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