लखनऊ: अनिल कुंबले की गिनती विश्व के दिग्गज क्रिकेटरों में होती है। भारत की तरफ से सर्वाधिक विकेट लेने वाले कुंबले टेस्ट क्रिकेट में सर्वाधिक विकेट लेने के मामले में दुनिया के चौथे गेंदबाज हैं। टेस्ट क्रिकेट में 619 विकेट चटकाने वाले कुंबले मुथैया मुरलीधरन और शेन वॉर्न के बाद विश्व के तीसरे सबसे बड़े स्पिन गेंदबाज हैं। वहीं कुंबले इंग्लैंड के जिम लेकर के बाद टेस्ट की एक पारी में 10 विकेट लेने वाले दुनिया के दूसरे गेंदबाज हैं। उन्होंने ये कारनामा भारत के चिरप्रतिद्वंदी पाकिस्तान के खिलाफ किया था।
कुंबले की सबसे बड़ी खासियत थी कि उनकी गेंद ज्यादा टर्न नहीं होती थी, फिर भी उन्होंने स्पिन की दुनिया में अपना झंडा गाड़ा। कुंबले की ताकत स्पिन नहीं उनकी वैरिएशन और रफ्तार थी। गेंद टप्पा खाने के बाद इतनी तेजी से अंदर आती थी कि बल्लेबाज को संभलने का मौका ही नहीं मिलता था। कुंबले ने कई मौकों पर टीम को अपने प्रदर्शन से जीत दिलाई। उनकी अनोखी स्पिन और लंबे कद के चलते साथी खिलाड़ी उन्हें ‘जंबो’ के नाम से बुलाते थे। भारत का यह जंबो देश ही नहीं बल्कि दुनिया का एक महान गेंदबाज रहा।
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कुंबले ने अपने 18 साल लंबे इंटरनेशनल करियर में 401 मैचों में 3.11 के बेहद कम इकनॉमी से 953 विकेट अपने नाम किए। जिसके चलते वो भारत के सर्वाधिक इंटरनेशनल विकेट लेने वाले गेंदबाज बने। नवंबर 2008 को कुंबले ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया। फरवरी 2015 को कुंबले ‘आईसीसी हॉल ऑफ फेम’ में शामिल होने वाले चौथे भारतीय बने। कुंबले भारत सरकार ने देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया। 17 अक्टूबर 2021 को कुंबले अपना 51वां जन्मदिन मना रहे हैं। जानते हैं उनके सफर के बारे में।
पेशे से हैं मैकेनिकल इंजीनियर
17 अक्टूबर 1970 को कर्नाटक के बेंगलूरू में जन्में कुंबले पेशे से इंजीनियर हैं। उन्होंने राष्ट्रीय विद्यालय कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की है। कुंबले को बचपन से ही क्रिकेट के प्रति काफी लगाव था। जिसके चलते वो स्कूल और गली क्रिकेट खेला करते थे। धीरे-धीरे उनकी रुचि क्रिकेट में बढ़ती गई और उन्होने महज़ 13 साल की उम्र में ‘यंग क्रिकेटर्स’ ज्वॉइन कर लिया। कुंबले शुरुआत में तेज गेंदबाजी किया करते थे, लेकिन बाद में उन्होंने स्पिन को अपना हथियार बना लिया।
1990 में किया अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में डेब्यू
अनिल कुंबले ने अपने फर्स्ट क्लास क्रिकेट की शुरूआत कर्नाटक की तरफ से खेलते हुए हैदराबाद के खिलाफ 1989 में की, जिसमें उन्होंने चार विकेट लिए। उनके बेहतरीन प्रदर्शन को देखते हुए उन्हें पाकिस्तान के खिलाफ अंडर-19 टीम में चुन लिया गया। यहां कुंबले ने बल्ले से बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए पहली पारी में शानदार शतक जड़ते हुए 113 रनों की पारी खेली। वहीं दूसरी पारी में भी कुंबले ने 76 रन बनाए। शानदार प्रदर्शन का ईनाम कुंबले को जल्द ही मिला और उन्हें राष्ट्रीय टीम में चुना गया। जिसके बाद कुंबले ने एकदिवसीय क्रिकेट में अपना पदार्पण साल 1990 में श्रीलंका के खिलाफ किया। इसी साल अगस्त में कुंबले ने इंग्लैंड के खिलाफ अपना टेस्ट डेब्यू भी किया। कुंबले वनडे और टेस्ट दोनों में भारत के दिग्गज खिलाड़ी रहे। उन्होंने कई मौकों पर टीम की डूबती नैया पार लगाई।
वनडे में सर्वाधिक विकेट लेने वाले गेंदबाज
एकदिवसीय क्रिकेट में कुंबले ने 271 मैचों में 237 विकेट अपने नाम किए। इस दौरान उनका इकॉनमी महज 4.30 का रहा। कुंबले ने अपनी करिश्माई गेंदबाजी के दम पर कई बार टीम को जीत की दहलीज तक पहुंचाया। साल 1993 में खेले गए हीरो कप के मुकाबले में कुंबले ने वेस्टइंडीज के खिलाफ जबर्दस्त गेंदबाजी करते हुए 6 विकेट अपने नाम किए। कुंबले के इस प्रदर्शन ने उनको इंटरनेशनल क्रिकेट में पहचान दिलाई और फिर आगे जो हुआ वो सब इतिहास बना गया।
कुंबले ने अपने करियर में काफी किफायती गेंदबाजी की। साल 1996 में कुंबले ने जबरदस्त प्रदर्शन किया। उन्होंने 20.24 के औसत से 60 वनडे विकेट अपने नाम किए। वहीं वो साल में 90 विकेट लेकर साल में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज रहे। इसी साल खेले जाने वाले वर्ल्डकप में भी कुंबले को टीम में शामिल किया गया और 15 विकेट के साथ वो टूर्नामेंट के लीडिंग विकेट टेकर रहे। कुंबले वनडे में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले भारतीय गेंदबाज हैं।
टेस्ट में बने बेस्ट
कुंबले वनडे में जितने कामयाब रहे उससे कई गुना ज्यादा कामयाबी उनको टेस्ट क्रिकेट में मिली। यही वजह थी कि कुंबले का सामना करने से हर बल्लेबाज डरता था। क्रिकेट के इस सबसे लंबे फॉर्मेट में जंबो ने भारत को कई यादगार जीत दिलाई। साल 1999 में फिरोजशाह कोटला के मैदान पाकिस्तान के खिलाफ खेले गए टेस्ट मैच की दूसरी पारी में सभी 10 विकेट लेकर कुंबले ने इतिहास रच दिया, और भारत को 212 रनों से जीत दिलाई। इसी उपलब्धि के कारण कुंबले क्रिकेट के हॉल ऑफ फेम में अपना नाम दर्ज करवा सके। इसके अवाला 2002 में इंग्लैंड के खिलाफ हेडिंग्ले टेस्ट में उन्होंने सात विकेट लेकर भारत को जीत दिलाई।
2004-05 में कुंबले कपिल देव के बाद 400 विकेट लेने वाले दूसरे भारतीय गेंदबाज बने। वहीं दुनिया के वो तीसरे गेंदबाज बने। 2007 में लंदन के द ओवल मैदान पर उन्होंने अपने 117वें टेस्ट में अपना पहला टेस्ट शतक लगाया। कुंबले ने 132 टेस्ट में 29.65 के औसत से 619 विकेट अपने नाम किए। इस दौरान उन्होंने 35 बार एक पारी में 5 या उससे ज्यादा विकेट झटके। साल 2021 तक वो टेस्ट में सर्वाधिक विकेट लेने के मामले में तीसरे नंबर पर रहे। वहीं वो मुथैया मुरलीधरन और शेन वॉर्न के बाद 600 विकेट लेने वाले दुनिया के तीसरे स्पिनर हैं।
टूटे जबड़े के साथ की गेंदबाजी
कुंबले एक टीम मैन थे, जो टीम के लिए हर परिस्थिती में खेलने के लिए तैयार रहते थे और टीम की जीत में योगदान देते थे। साल 2002 में एंटिगा में वेस्टइंडीज के खिलाफ खेले गए टेस्ट मैच में बल्लेबाजी के दौरान गेंद उनके मुंह पर लगी थी और उनका जबड़ा टूट गया था, ऐसे में हर किसी ने यह मान लिया था कि कुंबले दूसरी पारी में गेंदबाज नहीं कर सकेंगे। कुंबले हर किसी को हैरत में डालते हुए दूसरी पारी में गेंदबाजी करने उतरे और उन्होंने 14 ओवर का स्पेल फेंक कर ब्रायन लारा का विकेट भी चटकाया। क्रिकेट और टीम के प्रति उनके इस लगाव को देखकर हर कोई उनका फैन हो गया था।
कप्तान के रूप में
2007 में अनिल कुंबले को टेस्ट टीम की कमान सौंपी गई। बतौर कप्तान कुंबले ने अपनी पहली सीरीज में पाकिस्तान को 1-0 से हराया। कुंबले ने अपनी कप्तानी में कुल 14 मैचों में टीम का नेतृत्व किया। इसमें से 3 में भारत को जीत मिली, जबकि 5 में हार और 6 मैच ड्रॉ रहे। इसके बाद नवंबर 2008 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ दिल्ली टेस्ट के बाद कुंबले ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया।
कोहली से विवाद के चलते छोड़ा कोच पद
क्रिकेट से सन्यास लेने के बाद 24 जून 2016 को अनिल कुंबले को एक वर्ष के लिए भारतीय क्रिकेट टीम का कोच नियुक्त किया गया, लेकिन कप्तान कोहली से मतभेदों के सामने आने के बाद उन्होंने समय से पहले ही इस्तीफा दे दिया। कड़े नियम और अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर के फैसले शायद विराट को पसंद नहीं आए। नतीजतन मतभेद बढ़ने पर 21 जून 2017 को आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी के बाद कुंबले ने इस्तीफा दे दिया। कुंबले के कोचिंग कार्यकाल में टीम ने खेले 17 टेस्ट मैचों में 12 जीते और केवल 1 मैच गंवाया था।
टीम ने कोई सीरीज नहीं हारी। वहीं वन-डे मुकाबलों में भी टीम का प्रदर्शन शानदार रहा। उनके कार्यकाल के दौरान भारत ने 13 वन-डे मैच में आठ जीते, जबकि पांच मैच गंवाए। वहीं पांच टी-20 मैचों में भारत ने दो मैच जीते, दो मैच हारे और एक का कोई नतीजा नहीं निकला। इस दौरान टीम टेस्ट में नंबर वन की पोजीशन पर भी रही। इतना ही नहीं उनके 1 साल के कार्यकाल के अंतिम टूर्नामेंट (चैंपियंस ट्रॉफी) में भी टीम का रिकॉर्ड शानदार रहा। वह इस टूर्नमेंट के फाइनल में पाकिस्तान से हारकर उपविजेता बनी।
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