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दुनिया में बढ़ती अमीरी-गरीबी की खाई

दुनियाभर में अमीरी और गरीबी के बीच खाई निरन्तर बढ़ती जा रही है। कोरोना काल में इसमें ज्यादा इजाफा देखा गया। इसी बढ़ती खाई को लेकर पूरी दुनिया में नई बहस छिड़ी है। गरीबी उन्मूलन के लिए कार्यरत संस्था ऑक्सफैम इंटरनेशनल की वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की बैठक से ठीक पहले आई रिपोर्ट ‘सर्वाइवल ऑफ द रिचेस्ट: द इंडिया स्टोरी’ में इसे लेकर कई चौंका देने वाले खुलासे किए गए हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत के 21 सबसे अमीर अरबपतियों के पास इस समय देश के 70 करोड़ लोगों से भी ज्यादा दौलत है और वर्ष 2021 में भारत की कुल संपत्ति में से 62 फीसदी हिस्से पर देश के केवल 5 प्रतिशत लोगों का ही कब्जा था जबकि भारत की निचले तबके की बहुत बड़ी आबादी का देश की केवल तीन फीसदी सम्पत्ति पर ही कब्जा रहा।

इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2020 में अरबपतियों की संख्या 102 थी, जो 2022 में 166 पर पहुंच गई पिछले साल नवम्बर तक भारतीय अरबपतियों की सम्पत्ति में 121 फीसदी तक बढ़ोतरी देखी गई। कोरोना महामारी के दौर में भारत के अरबपतियों की दौलत में प्रतिदिन 3608 करोड़ रुपये बढ़े। ऑक्सफैम की इस रिपोर्ट के अनुसार भारत के 100 सबसे अमीर लोगों की सम्पत्ति 54.12 लाख करोड़ रुपये के पार जा चुकी है, जिससे 18 महीनों तक देश का पूरा बजट चलाया जा सकता है। संस्था ने सरकार को सलाह दी है कि यदि भारतीय अरबपतियों की कुल सम्पत्ति पर महज दो फीसदी टैक्स लगा दिया जाए तो उसी से आगामी तीन वर्षों तक कुपोषण के शिकार बच्चों की सभी जरूरतों को बहुत आसानी से पूरा किया जा सकता है।

ऑक्सफैम की एक रिपोर्ट में पहले भी कहा जा चुका है कि अमीर लोग महामारी के समय में आरामदायक जिंदगी का आनंद ले रहे थे जबकि स्वास्थ्य कर्मचारी, दुकानों में काम करने वाले और विक्रेता जरूरी भुगतान करने में असमर्थ थे।ऑक्सफैम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ बेहर के मुताबिक रिपोर्ट से स्पष्ट है कि अन्यायपूर्ण आर्थिक व्यवस्था से किस तरह सबसे बड़े आर्थिक संकट के दौरान सबसे धनी लोगों ने बहुत अधिक सम्पत्ति अर्जित की जबकि करोड़ों लोग बेहद मुश्किल से गुजर-बसर कर रहे हैं। ऑक्सफैम की पिछले साल की रिपोर्ट में भी कहा गया था कि यदि कोरोना के कुबेरों से वसूली होती तो देश में आर्थिक असमानता को लेकर स्थिति इतनी खराब नहीं होती।

इससे पूर्व ‘रिफ्यूजी इंटरनेशनल’ की एक रिपोर्ट में भी खुलासा हुआ था कि कोरोना महामारी ने दुनियाभर में 16 करोड़ से भी ज्यादा ऐसे लोगों के रहने का ठिकाना छीन लिया, जो भुखमरी, बेरोजगारी तथा आतंकवाद के कारण अपने घर या देश छोड़कर दूसरी जगहों पर बस गए थे। रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना महामारी सामाजिक असमानताओं को और उभार रही है। संयुक्त राष्ट्र और डेनवर विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में भी कहा जा चुका है कि महामारी के दीर्घकालिक परिणामों के चलते वर्ष 2030 तक 20.7 करोड़ और लोग बेहद गरीबी की ओर जा सकते हैं और यदि ऐसा हुआ तो दुनियाभर में बेहद गरीब लोगों की संख्या एक अरब को पार कर जाएगी।

विश्व खाद्य कार्यक्रम के एक आकलन के अनुसार दुनियाभर में 82 करोड़ से भी ज्यादा लोग हर रात भूखे सोते हैं और बहुत जल्द 13 करोड़ और लोग भुखमरी तक पहुंच सकते हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की ‘स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरनमेंट इन फिगर्स 2020’ रिपोर्ट में कहा गया था कि कोरोना से वैश्विक गरीबी दर में 22 वर्षों में पहली बार बढ़ोतरी होगी और भारत की गरीब आबादी में 1.2 करोड़ लोग और जुड़ जाएंगे। विश्व के कई अन्य देशों के साथ भारत में भी बढ़ती आर्थिक असमानता बेहद चिंताजनक है क्योंकि बढ़ती विषमता का दुष्प्रभाव देश के विकास और समाज पर दिखाई देता है और इससे कई तरह की सामाजिक और राजनीतिक विसंगतियां भी पैदा होती हैं।

करीब दो वर्ष पहले भी यह तथ्य सामने आया था कि भारत के केवल एक फीसदी सर्वाधिक अमीर लोगों के पास ही देश की कम आय वाली 70 फीसदी आबादी की तुलना में चार गुना से ज्यादा और देश के अरबपतियों के पास देश के कुल बजट से भी ज्यादा सम्पत्ति है। विश्व आर्थिक पत्रिका ‘फोर्ब्स’ की अरबपतियों की सूची में सौ से भी ज्यादा भारतीय हैं जबकि तीन दशक पहले तक इस सूची में एक भी भारतीय नाम नहीं होता था। हालांकि देश में अरबपतियों की संख्या बढ़ना हर भारतीय के लिए गर्व की बात होनी चाहिए लेकिन गर्व भी तभी हो सकता है, जब इसी अनुपात में गरीबों की आर्थिक सेहत में भी सुधार हो।

ऑक्सफैम की हालिया रिपोर्ट में मांग की गई है कि धनी लोगों पर उच्च सम्पत्ति कर लगाते हुए श्रमिकों के लिए मजबूत संरक्षण का प्रबंध किया जाए। दरअसल बड़े औद्योगिक घरानों पर टैक्स लगाकर सार्वजनिक सेवाओं के लिए आवश्यक संसाधन जुटाए जा सकते हैं। कुछ विशेषज्ञों का मत है कि देश के शीर्ष धनकुबेरों पर महज डेढ़ फीसदी सम्पत्ति कर लगाकर ही देश के कई करोड़ लोगों की गरीबी दूर की जा सकती है लेकिन किसी भी सरकार के लिए यह कार्य इतना सहज नहीं है। दरअसल यह जगजाहिर है कि बहुत से राजनीतिक फैसलों पर भी इन धन कुबेरों का ही नियंत्रण होता है। आर्थिक विषमता आर्थिक विकास दर की राह में बहुत बड़ी बाधा बनती है। दरअसल जब आम आदमी की जेब में पैसा होगा, उसकी क्रय शक्ति बढ़ेगी, आर्थिक विकास दर भी तभी बढ़ेगी। यदि ग्रामीण आबादी के अलावा निम्न वर्ग की आय नहीं बढ़ती तो मांग में तो कमी आएगी ही, इससे विकास दर भी प्रभावित होगी।

योगेश कुमार गोयल

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