Tuesday, November 19, 2024
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किसानों को बड़ी राहत, पट्टे की जमीन पर खेती करने वालों के लिए खुशखबरी

चंडीगढ़ः हरियाणा में पट्टे पर जमीन लेकर खेती करने वाले किसान अब फसली ऋण ले सकेंगे। यदि पट्टे पर ली गई जमीन पर उगाई गई फसल प्राकृतिक आपदा के कारण खराब होती है तो सरकार या बीमा कंपनी जमीन मालिक की बजाय पट्टेदार को मुआवजा देगी। गिरदावरी में पट्टेदार किसान को जमीन मालिक के रूप में नहीं बल्कि अलग कॉलम में पट्टेदार के रूप में दर्शाया जाएगा, ताकि भविष्य में विवाद की कोई गुंजाइश न रहे। कृषि भूमि के पट्टे को कानूनी बनाने के लिए मंगलवार को राजस्व एवं आपदा प्रबंधन मंत्री विपुल गोयल ने सदन में कृषि भूमि पट्टा विधेयक पेश किया, जिसे सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया।

पूर्व मुख्यमंत्री ने की तारीफ

पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी इस नए कानून की तारीफ की। विधेयक पर चर्चा के दौरान विपुल गोयल ने कहा कि कृषि भूमि के पट्टे को मान्यता देने, कृषि भूमि के पट्टे की अनुमति देने, इसे आसान बनाने, जमीन मालिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक तंत्र बनाने के लिए यह कानून जरूरी था। आमतौर पर जमीन को जमीन मालिक खुद ही पट्टे पर देता है। इस डर से कि कहीं पट्टेदार कब्जा अधिकार न मांग ले, भूमि मालिक अक्सर हर साल पट्टेदार बदल देते हैं या भूमि को परती ही छोड़ देते हैं। इससे कृषि उत्पादन को नुकसान पहुंचता है। इतना ही नहीं, पट्टेदार अपनी भूमि को लिखित रूप में पट्टे पर देने में हिचकिचाते हैं और पट्टेदार के साथ अलिखित समझौते को प्राथमिकता देते हैं।

प्रकृतिक आपदा में बड़ी राहत

परिणामस्वरूप, पट्टेदार प्राकृतिक आपदा के समय केंद्र या राज्य सरकार से मिलने वाली किसी भी राहत राशि से वंचित रह जाते हैं और फसली ऋण भी नहीं ले पाते हैं। भूमि संसाधनों का अधिकतम उपयोग करने तथा पट्टेदार और पट्टेदार दोनों के हितों की रक्षा के लिए भूमि को पट्टे की राशि पर देने की कानूनी व्यवस्था की गई है। कृषि भूमि पट्टा विधेयक पर चर्चा के दौरान रोहतक के कांग्रेस विधायक बीबी बत्रा और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कुछ आपत्तियां उठाईं, जिस पर स्वयं मुख्यमंत्री नायब सैनी ने स्थिति स्पष्ट की।

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राजस्व एवं आपदा प्रबंधन मंत्री विपुल गोयल ने कहा कि पट्टेदार और भूमि मालिक के बीच समझौता तहसीलदार के समक्ष होगा, जिससे विवाद की कोई गुंजाइश नहीं रहेगी। इसके लिए दोनों पक्षों को कोई शुल्क नहीं देना होगा। विवादों का निपटारा भी स्थानीय स्तर पर हो जाएगा, इसलिए अदालत जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

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