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पितृ विसर्जनी अमावस्या पर बन रहा गजछाया योग, श्राद्ध-दान से पितरों की आत्मा होगी तृप्त

वाराणसीः आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की आज अमावस्या तिथि है। पितृ पक्ष के अन्तिम दिन अमावस्या तिथि पर लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध और तर्पण विधि विधान से करते हैं। इस वर्ष सर्व पितृ अमावस्या पर पूरे 11 साल बाद गजछाया योग का खास संयोग भी हैं। वर्ष 2010 में ये संयोग बना था। इस योग में परिजनों के निमित्त श्राद्ध और तर्पण करना बेहद महत्वपूर्ण है। इस योग में श्राद्ध और दान करने से मान्यता है कि पितरों की आत्मा अगले 12 सालों के लिए तृप्त हो जाती है। अमावस्या पर उन सभी पितरों का भी श्राद्ध किया जाता है जिनके मृत्यु की तिथि परिजनों को ज्ञात नहीं होती है।

गजछाया योग में श्राद्ध और तर्पण करने से पूर्वज भी प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते है। अमावस्या पर ये सुखद संयोग शाम 4.34 तक रहेगा। गजछाया योग में पूर्वजों को श्राद्ध करने के बाद जरुरतमंदों में खाने पीने की वस्तुओं के साथ अन्न और वस्त्र दान भी करना चाहिए। इस दिन गंगा स्नान के समय तिल को भी शरीर से स्पर्श कर प्रवाहित करना चाहिए। घर में नहाते समय पानी में तिल मिलाकर नहाने के बाद गरीबों में दान पुण्य करना चाहिए।

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भोजन में सबसे पहले गाय, श्वान, कौवे और चीटियों के निमित्त भी ग्रास निकाले। ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद उन्हें दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए। इसके बाद ही भोजन गृहस्थ और उसका परिवार ग्रहण करें। पितृ पक्ष में 15 दिन के लिए धरती पर आए पितर श्राद्ध कर्म करने से प्रसन्न होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। अमावस्या के दिन प्रसन्न होकर अपने लोक के लिए विदा होते हैं। शाम को घर के दरवाजे या छत पर दो, पांच या सोलह दीपक भी जलाना चाहिए।

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