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जीत कर भी हार गई तृणमूल !

West Bengal Chief minister Mamta  Banerjee during administration meeting

नई दिल्लीः ‘2 मई दीदी गई‘ का नारा देने वाली बीजेपी का ऐसा सूपड़ा साफ हुआ कि 100 के आंकड़े से कोसों दूर नजर आई, रह-रह कर जीत का दावा ठोकने वाली बीजेपी आज चुनाव के नतीजे आने के साथ ही ममता बनर्जी के सामने पानी मांगती नजर आई पूरे बंगाल की विधानसभा की सारी सीटों में से एक नंदीग्राम पर जो सुवेन्दु अधिकारी और ममता बनर्जी के बीच खेला देखने को मिला वो किसी अन्य सीट पर देखने को नहीं मिला। पूरे दिन भर ममता बनर्जी और सुवेन्द अधिकारी में से किसकी जीत होगी या अटकलें लगाना चुनाव मतगणना के अंत समय तक जारी रहा, लेकिन नतीजा क्या रहा है यह बात किसी से छुपी नहीं, बंगाल विधानसभा की 294 सीटों में से सबसे महत्वपूर्ण नंदीग्राम की सीट पर सुवेन्दु अधिकारी ने ममता बनर्जी को 1956 वोटो से ममता को हरा दिया हार के अंतर का आंकड़ा भले ही बहुत कम हो, लेकिन हार-हार होती है और जीत-जीत।

जहां एक ओर बंगाल में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का दावा ठोकने वाली बीजेपी पूरी बहुमत की सरकार बनाने की आवश्यकता से अधिक विश्वास के नशे में डूबी हुई नजर आई, वहीं दूसरी ओर प्रतीत होता है कि कहीं ना कहीं बनर्जी भी अपनी विधानसभा सीट के जीत के दावे को लेकर भी नशे में चूर हाथी की तरह की आवश्यकता से अधिक मदमस्त नजर आईं। एक मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार का अपनी ही विधानसभा सीट से हार जाना कहीं ना कहीं जनता के बीच विकास, गरीबी, भूख, शिक्षा तथा बेरोजगारी जैसे विशेष सवाल पैदा करती है? और ऐसे तमाम विशेष सवालों का विशेष स्थान जनता के हृदय में कूट-कूट कर भरा हुआ दिखाई पड़ता हैं, वैसे पर विकास, गरीबी, भूख, शिक्षा तथा बेरोजगारी जैसे सवाल आजकल की राजनीतिक रैलियों से गायब ही नजर आते हैं।

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वैसे पर यह सर्वविदित है कि चुनाव में खड़े होने वाले हर एक उम्मीदवार के पास एक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने का विकल्प उपलब्ध होता है, अगर उम्मीदवार चाहे तो वह एक से अधिक विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ सकता है, यदि अभी 2019 के लोकसभा चुनाव पर नजर डालें तो ऐसा ही राहुल गांधी ने भी किया था। उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में 2 लोकसभा सीटों उत्तर प्रदेश की अमेठी तथा केरल की वायनाड सीट से चुनाव लड़ा था, जिसमें से उन्हें उत्तर प्रदेश की पुश्तैनी अमेठी की सीट से स्मृति जुबिन ईरानी से हार का सामना करना पड़ा, लेकिन वह केरल की वायनाड सीट को बचाने में जरूर सफल हो गया और केरल की मुस्लिम बाहुल्य वायनाड सीट से चुनाव जीतकर संसद में पहुंचे तो ऐसा ही विकल्प ममता बनर्जी के पास भी उपलब्ध था, अगर वह चाहतीं तो भी नंदीग्राम के अलावा किसी एक और सीट से चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंच सकती थीं, लेकिन ऐसे किसी विकल्प का उन्होंने इस्तेमाल नहीं किया वैसे आपको यह बताते चलें कि किसी भी व्यक्ति के मुख्यमंत्री होने के लिए उसका उस राज्य की विधानसभा का सदस्य होना बहुत जरूरी है।