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ठाकरे सरकार को सीधी चेतावनी

मुंबई: महाराष्ट्र की महाविकास आघाडी की सरकार के लिए संकटों का दौर कम होता नहीं दिखायी दे रहा है। पहले कोरोना, फिर कुछ दिनों तक कंगना, फिर प्याज को लेकर आंदोलन और अब मराठा आरक्षण को लेकर ठाकरे सरकार को सीधी चेतावनी दी गई है और कहा गया है कि सरकार मराठा समाज का एंत न देखें। अगर राज्य सरकार ने मराठा आरक्षण की पूर्ववत स्थिति बरकरार नहीं रखी तो इसके भयंकर परिणाम होंगे।

सरकार इस संदर्भ में जरूरी कदम उठाए, ऐसी चेतावनी देते हुए एक मराठा, लाख मराठा का उद्घोष करने वाले मराठा समाज ने 10 अक्टूबर को महाराष्ट्र बंद का ऐलान किया है। मराठा समाज के गोलमेज परिषद में महाराष्ट्र बंद का ऐलान किया गया। मराठा आरक्षण को स्थगन मिलने के बाद पूरे महाराष्ट्र में मराठा समाज के लोगों में भयंकर गुस्सा है और इस गुस्से को राज्यव्यापी आंदोलन के रूप में सामने लाने का निश्चय किया गया।

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कोल्हापुर से राज्यव्यापी आंदोलन की रूपरेखा तय की गई और यह तय किया गया कि यदि सरकार ने 9 अक्टूबर तक मराठा आरक्षण की पूर्ववत स्थिति बहाल नहीं की तो 10 अक्टूबर महाराष्ट्र बंद करके पूरे राज्य में विरोध प्रदर्शन किया जाएगा। मराठा आरक्षण संघर्ष समिति के अध्यक्ष सुरेश पाटिल ने सवाल उठाया है कि राज्य सरकार ने मराठा समाज के लिए अनेक योजनाओं का ऐलान तो किया है, लेकिन उसे साकार करने के लिए आर्थिक व्यवस्था कैसे की जाएगी। कोल्हापुर में हुई गोलमेज परिषद में यह भी निर्णय लिया गया कि अब एक मराठा, लाख मराठा के घोष वाक्य के आधार पर ही आंदोलन किया जाएगा।

कोल्हापुर के सानाजी वसाहत परिसर में आयोजित गोलमेज परिषद् में राज्य के विभिन्न क्षेत्रों से आए 50 प्रतिनिधियों ने शिरकत की। गोलमेज परिषद् में 10 अक्टूबर होने वाले महाराष्ट्र बंद के बारे में रणनीति भी बनायी गई। इस दौरान जानकारी मिली कि मराठा समाज की नक्सली संगठन की स्थापना शीघ्र ही की जाएगी। गोलमेज परिषद् में यह भी निर्णय लिया गया कि इस बार मूक मोर्चे के स्थान पर गर्जना मोर्चा निकाला जाएगा। साथ ही सरकार को यह भी संदेश दिया गया कि जब तक आरक्षण देने  की विधिवत घोषणा नहीं हो जाती, मराठा समाज की ओर से इसकी पुष्टि नहीं हो जाती। तब तक आंदोलन जारी रहेगा। गोलमेज परिषद में जिन बिंदुओं पर विशेष रूप से ध्यान दिया गया, उनमें आरक्षण के लिए जो स्थगन दिया गया है, उसे न्यायालय के माध्यम से हटाया जाए। इस वित्त वर्ष का शिक्षा शुल्क वापस किया जाए।

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केंद्र सरकार की ओर से आर्थिक रूप से दुर्बल घटकों को आरक्षण का लाभ दिया जाए। सभी तरह की नौकरी को स्थगित किया जाए, इतना ही नहीं सारथी के साथ-साथ अण्णा साहेब पाटिल महामंडल के लिए एक हजार करोड़ रूपए देने के मुद्दे पर गोलमेज परिषद् में विस्तार से बातचीत हुई। मराठा समाज के विद्यार्थियों के छात्रावास का निर्माण करने तथा आंदोलनकारियों पर दर्ज किए गए सभी आपराधिक मामले वापस लेने की मांग भी परिषद् में जोरशोर से उठायी गई। किसानों के लिए स्वाभिमान आयोग की सिफारिशें लागू करने की मांग भी गोलमेज परिषद में की गई। कोल्हापुर में सरकार को घेरने के लिए मराठा आरक्षण संघर्ष समिति की ओर से जो प्रस्ताव तय किए गए हैं, उससे यह बात को साफ तौर पर दिखायी दे रही है कि मराठा समाज ने सरकार पर दबाव बनाने की पूरी कोशिश कर रखी है। सरकार मराठा समाज के आरक्षण को लेकर कितनी गंभीर है।

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आरक्षण कानूनी तौर पर कितना टिक पएगा, यह तो समय बताएगा, लेकिन इतना तो तय है कि मराठा आरक्षण राज्य सरकार के लिए गले की हड्डी बना हुआ है। कोल्हापुर में हुए गोलमेज परिषद में सुरेश पटिल ने इस बात का दुख जताया कि लंबे संघर्ष के मराठा समाज को आरक्षण मिला था, लेकिन वह टिक नहीं पाया। पाटिल ने कहा कि एर बार स्थगन मिलने का यह अर्थ नहॆं कि हमारी लड़ाई समाप्त हो गई है। सुरेश पाटिल के कथन से इस बात की पुष्टि होती है कि मराठा समाज अब सरकार के सामने और आक्रामक तरीके से सामने आएगा। मराठा सामाज का कहना है कि उनकी ओर से आरक्षण मांगने का अर्थ राजनीतिक स्वार्थ की सिद्धि नहीं है।

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इस समाज के लोगों का कहना कि उनके बच्चों की शिक्षा तथा रोजगार की समस्या इतनी बड़ी है कि आरक्षण के लिए आवाज उठानी पड़ रही है। संघर्ष समिति का यह भी दावा है कि हम किसी को परेशानी में नहीं डालना चाहते, इसलिए सरकार से गुजारिश है कि वह इस मुद्दे पर गंभीरता से ध्यान दे और आरक्षण मिलने के लिए क्या-क्या किया जा सकता है, वह सब कुछ करे। परिषद में राज्य सरकार की ओर से मराठा समाज को दी गई सहुलियतों को वास्तविकता की कसौटी पर कसा गया और सरकार से पूछा गया कि उसने जो घोषणाएं की हैं, उसे वास्तविकता का जामा कैसे पहनाया जाएगा।राज्य की महाविकास आघाडी सरकार ने मराठा समाज के विद्यार्थियों तथा युवकों के हितों के लिए 9 महत्वपूर्ण निर्णय लिए, लेकिन क्या सरकार ने जो महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं, वे सचमुच अमल में लाए जाएंगे, इसे लेकर मराठा आरक्षण संघर्ष समिति आश्वस्त नहीं है, वस यही कारण है कि मराठा आरक्षण संघर्ष समिति को सरकार पर भरोसा नहीं है।

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हालांकि राज्य सरकार ने मराठा समाज के आर्थिक रूप से दुर्बल घटक के लोगों के लिए एसईबीसी प्रवर्ग के उम्मीदवारों को विशेष लाभ दिलाने की बात कही है, इसके अलावा सरकार ने राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज शिक्षा शुल्क छात्रवृत्ति योजना (एसईबीसी) की तरह ही आर्थिक रूप से दुर्बल विद्यार्थियों (ईडब्ल्यूएस) के रूप  में आए विद्यार्थियों के लिए लागू करने की योजना बनायी है, इसके लिए 600 करोड़ रूपए मंजूर भी किए गए हैं। इसके अलावा पंजाब राव देशमुख छात्रावास निर्वाह भत्ता योजना को भी ईडब्ल्यूएस के विद्यार्थियों को देने की योजना बनायी है, इसके लिए भी 80 करोड़ का बजट तय किया गया है। इसके अलावा छत्रपति शाहु महाराज संशोधन, प्रशिक्षण तथा मानव विकास संस्था (सारथी) के लिए इस वर्ष 130 करोड़ रूपए खर्च करने का लक्ष्य रखा गया है, इतना ही नहीं अगर सारथी के तहत ज्यादा निधि की जरूरत पड़ेगी तो उसकी व्यवस्था करने की तैयारी सरकार न दिखायी है।

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इन सब सुविधाओं के साथ-साथ अण्णा साहेब पाटिल आर्थिक रुप से पिछड़े विकास महामंडल के खर्च में 400 करोड़ की वृद्धि भी सरकार की ओर से की गई है। मराठा क्रांति मोर्चा में मारे गए लोगों के परिजनों को एसटी में नौकरी देने की बात भी सरकार की ओर से स्वीकार की गई है। इस तरह देखा जाए तो सरकार ने मराठा समाज के लिए कागज बहुत कुछ दिया है, लेकिन हकीकत में मराठा समाज के विदद्यार्थियों को कुछ मिला है और यही कारण है कि सरकार को मराठा आरक्षण संघर्ष समिति की ओर से चेतावनी दी है कि सरकार अपना पक्ष न्यायालय में इतनी अच्छी तरह से रखे कि मराठा समाज के लिए जितना आरक्षण देने की मांग की जा रही है, वह उसे मिल जाए।