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कोरोना ने इंसान ही नहीं इंसानियत को भी मारा, अर्थी-कंधा का तय है रेट

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लखनऊः कोरोना की दूसरी लहर ने हर किसी को बेबस कर दिया है। अस्पतालों में पसरी अव्यवस्था और तेजी से हो रही मौतों ने हर किसी को झकझोर दिया है। स्थिति ऐसी आ गयी है कि कोरोना ने सिर्फ इंसान को ही नही इंसानियत को भी मार दिया है। श्मशान घाटों पर अर्थी, कंधा से लेकर जलाने तक के रेट तय हैं। कोरोनाकाल में हो रही मौतों ने ऐसा तांडव मचाया कि पराए तो पराए, अपने भी पराए हो गए। तमाम लोगों को कोरोना से मौत के बाद चार कंधे भी नसीब नही हुए तो कई लोगों को अपनों की मुखाग्नि भी नही मिल सकी। ऐसे में इंसान ने अर्थी, कंधा और जलाने का दाम तय कर दिया है और अभी भी श्मशान घाटों पर यह खेल खेला जा रहा है। डालीगंज पुल के पास अंतिम क्रिया का सामान बेच रहे एक दुकानदार ने बताया कि उनकी दुकार दादा परदारा के समय की है। इस कोरोनाकाल ने जो मौत का दौर दिखाया, वह इससे पहले कभी नही देखा। बताया कि एक दिन में 20 से 25 लोगों के क्रिया कर्म के लिए सामान बेचा, जबकि सामान्य दिनों में यह महज 2-3 की संख्या ही रहती है। अप्रैल का महीना बेहद खतरनाक गुजरा।

महामारी के दौरान तय हैं सबके दाम
अंतिम संस्कार के लिए पैकेज तक बन गए हैं। डालीगंज स्थित अंतिम क्रिया का सामान बेचने वाली दुकानों पर बैठे लोगों ने पैकेज के बारे में विस्तार से बताया। राजू नाम के एक लड़के ने बताया कि नॉन कोविड शवों के अंतिम संस्कार का 20 हजार रुपये तक का पैकेज ऑफर हो रहा है। बताया कि कोविड शवों का चार्ज अलग होता है।

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ये हैं पैकेज

  • फ्रीजर का रेट 24 घंटे के लिए 4,500 रुपये और इसके बाद 3,000 रुपये प्रतिदिन (डाला का भाड़ा व लाने ले जाने वाले लडकों की मजदूरी समेत)
  • अस्पताल से घर के लिए वाहन 1,500 रुपये
  • घर से शमशान घाट के लिए 2,500 रुपये

इन चीजों का ये है भाव

  • अंतिम संस्कार का सामान 4,000 रुपये में।
    (अप्रैल में यही भाव करीब 6,000 थे)
  • बांस की अर्थी बनाने का खर्च करीब 1,100 से 2,000
  • लकड़ी और अर्थी जलाने का चार्ज 4,000 रुपये।
  • कंधा देकर श्मशान तक ले जाने तक का 2,000 रूपये