संपादकीय

राष्ट्र और समाज के कल्याण के लिए युवाओं का योगदान जरूरी

youth for nation and society

राजनीति में युवाओं की अहम भूमिका है। युवा अपने विचारों से हर क्षेत्र को प्रभावित करते हैं। वे जिन विचारों की ओर बढ़ते हैं उनसे समाज निश्चित रूप से प्रभावित होता है। आज दुनिया में युवाओं की सबसे ज्यादा मांग है। भारतीय राजनीति में सबसे ज्यादा मांग युवा विचारों वाले युवाओं की बनी हुई है। यह युवा ही थे जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को धार दी। राजनीति युवाओं के लिए आकर्षण का केंद्र है। वह राजनीति उन्हें आकर्षित करती है। भारतीय राजनीति ने युवा मन को निराश किया है। राजनीति युवाओं में बड़े लक्ष्य नहीं देखती। राजनीतिक पार्टियों से जुड़े युवा कभी इस पार्टी तो कभी उस पार्टी के आलाकमान की तारीफ करते हैं। ऐसा करके वे एक तरह से अपना ही श्रम और समय बर्बाद करते हैं। युवा सपने देखें और सफल हों। वे असफल भी होते हैं। आज युवा बेरोजगारी से जूझ रहे हैं। युवाओं को पढ़ाई के साथ-साथ परिवार वालों का भी कुछ करने का दबाव रहता है। अनेक युवाओं ने भारतीय राजनीति में प्रवेश किया। उन्होंने समाज के वंचितों के लिए लगातार काम किया। समाज और राष्ट्र की समस्याओं के समाधान को अपने जीवन का मिशन बनाया। एक बड़े राजनेता बने। पत्रकार बन गये। अफसर बन गये। बड़ी संख्या में ऐसे युवा हैं जो पहली बार प्रशासनिक अधिकारी बने हैं। बाद में वे सीधे राजनीति में कूद पड़े। कुछ को सरकारों ने स्वयं पुरस्कृत किया। कुछ ने जीवन भर संघर्ष किया। युवा नीति को लेकर सरकारों ने अब तक क्या किया है, यह भी समझना जरूरी है।

 केंद्र सरकार ने मांगे सुझाव

भारत में पहली बार युवा नीति 1988 में संसद के दोनों सदनों में पेश की गई थी। इसके कार्यान्वयन की जिम्मेदारी युवा मामले और खेल विभाग को सौंपी गई थी। उद्देश्य था कि युवा नीति उनके व्यक्तित्व एवं कार्य क्षमता को सुदृढ़ बनाये। वर्ष 2003 में युवा राष्ट्रीय नीति पर पुनः चर्चा हुई। 2003 में, युवा को 13 से 35 वर्ष की आयु के व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया था। वर्ष 2014 में भाजपा सरकार ने युवाओं के समग्र विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। केंद्र सरकार ने वर्ष 2023 में युवाओं के लिए उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा की आवश्यकता बताई है और कहा है कि यह शिक्षा व्यावसायिक कौशल सिखाती है और समग्र विकास में सहायक है। इस नीति का उद्देश्य युवाओं को आत्मविश्वास से मजबूत करना है। उन्हें आर्थिक मजबूती देनी है और शारीरिक व मानसिक रूप से मजबूत बनाना है। उनका समग्र विकास करना है। वर्ष 2023 से 2032 तक के लिए युवा नेतृत्व और विकास, स्वास्थ्य, फिटनेस और खेल आदि पर एक मसौदा है और यह मसौदा वर्तमान में युवा मामले और खेल मंत्रालय के तहत विचाराधीन है। केंद्र सरकार ने ड्राफ्ट पॉलिसी पर सुझाव मांगे हैं।

 गांधी और अम्बेडकर के विचारों में युवा सोच

संयुक्त राष्ट्र की दृष्टि में युवावस्था को सामान्यतः परिवर्तन का काल माना जाता है। युवा वयस्कता, रोजगार, परिवार और एक उत्पादक नागरिक होने के सामाजिक मानदंडों को पार करने का प्रयास कर रहे हैं। युवा परिवर्तन के वाहक हैं। युवाओं के लिए अंग्रेजी शब्द जियोंग है। इसका अर्थ है यौवन, नवयौवन है जबकि संस्कृत शब्द है युवान। इसका अर्थ है युवावस्था। भारतीय राजनीति तीन नेताओं महात्मा गांधी, डॉ . राम मनोहर लोहिया और अंबेडकर से सबसे अधिक प्रभावित रही है। तीनों महापुरुष अलग-अलग विचारधाराओं का पालन करते थे। दक्षिण अफ्रीका में प्रिटोरिया से डरबन की यात्रा के दौरान युवा गांधी ट्रेन में रंगभेद का शिकार हो गये। गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में इंडियन ओपिनियन समाचार पत्र प्रकाशित किया। भारतीयों की ज्वलंत समस्याओं को उठाया। पूरी दुनिया में रंगभेद के खिलाफ माहौल बनाने में लगे रहे। गांधी जी भारत आये। भारत में ब्रिटिश शासन की गुलामी के विरुद्ध बिगुल बजाया। लाखों युवा उनके साथ खड़े थे। लड़ाई बढ़ गई। फिर आंदोलन का दौर चला।

 गांधीजी के आह्वान पर भारतीय युवा छात्र जिस तरह एकत्रित हुए, वह विश्व इतिहास में उत्तर-औपनिवेशिक भारत में पहली बार हुआ था। गांधी जी एक बैरिस्टर से महात्मा बनने तक के सफर पर निकल पड़े। उन्होंने नमक आंदोलन, असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, दांडी मार्च जैसे बड़े आंदोलन किये। इन सबके पीछे युवा शक्ति थी। वह युवा शक्ति अपने राष्ट्र के लिए जाग चुकी थी। आज कोई कुछ भी कहे, बैरिस्टर से महात्मा गांधी तक का सफर युवाओं के कारण ही अद्भुत और अकल्पनीय बन गया। वह दुनिया भर के युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत रहेंगे।' डॉ. भीमराव अम्बेडकर की पढ़ाई सबसे पहले भारत में हुई। जब वे विदेश से अपनी पढ़ाई पूरी करके लौटे तो भारतीय समाज में व्याप्त ऊंच-नीच की सड़ी-गली व्यवस्था देखकर हैरान रह गये। बचपन में वे अपने गांव से लेकर पूरे भारत में जाति-विभाजित समाज को देख रहे थे। उन्होंने इस व्यवस्था से संघर्ष किया। लोगों से कहा कि शिक्षित बनो, संगठित होओ, संघर्ष करो, यह मंत्र किसी भी समाज के लिए शुभ ही है। डॉ. अम्बेडकर के विचार आज छात्रों और युवाओं को प्रभावित कर रहे हैं। आजादी के बाद संविधान सभा का गठन किया गया। संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष बने।

 बाजारवाद में फंस रहा युवा

स्वामी विवेकानन्द भी युवा थे। नरेन्द्र से स्वामी विवेकानन्द तक का सफर रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात के साथ शुरू हुआ। भारतीय संस्कृति को विश्व में स्थापित करने का सपना लेकर वे अमेरिका गये। इस उद्देश्य से कई देशों का दौरा भी किया। वहां उन्होंने भारत के अपने वैदिक सांस्कृतिक अनुभव को पूरी दुनिया के सामने रखा। अरविन्द घोष भी युवा थे। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता, योग और संस्कृति के लिए भी असाधारण काम किया। सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद, रामप्रसाद बिस्मिल, खुदीराम बोस, गणेश शंकर विद्यार्थी, राजगुरु युवा ही थे। ये सबसे प्रेरित और उग्र युवा ही थे जिन्होंने अपने देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। हजारों भारतीय युवा विदेश यात्रा करते हैं लेकिन वे केवल नौकरी के लिए विदेश जाते हैं। कुछ युवा पर्यटन और मनोरंजन के लिए जाते हैं। भारतीय युवाओं के विदेश में नौकरी करने जाने का कारण देश की कृषि और संयुक्त परिवार संरचना का टूटना है।

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भारत में बाज़ारवाद युवाओं को यह समझाने में सफल रहा कि मकान, गाड़ियाँ और आधुनिक सामग्रियाँ व्यक्ति को श्रेष्ठ और महान बनाती हैं। कुछ हद तक ये बात सही भी है। दूसरी ओर परंपराएं भी हैं। वह क्षीण होती जा रही है। वह अब बासी हो चुकी है। परंपराएं अब युवाओं को नहीं रोक पा रही हैं। पहले भी बहस हुई थी। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के बीच का समय अंतराल। आधुनिकता के नाम पर युवा सारे बंधन तोड़ रहे हैं। आधुनिकता के सामने परंपराएं धूमिल हो गई हैं। संस्कृति और परंपरा दोनों अलग-अलग हैं। जीवन शैली बदल गई है। अब हमारी जीवनशैली का अधिकांश हिस्सा बाजार तय करता है। युवा वर्ग बाजार की चपेट में है। आज युवा क्या कर रहे हैं? राजनीतिक भागीदारी क्या है? युवा सवाल नहीं उठा रहे? उन देशों और समाजों का नेतृत्व क्या होगा जिनके युवा सवालों से अलग हैं? ये अपने आप में एक बड़ा सवाल है। भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए युवाओं को ही आगे आना होगा, तभी देश व समाज का कल्याण होगा।

 अरुण कुमार दीक्षित