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भारत की इस सीक्रेट सेना से थर-थर कांपती है चीनी फौज

लखनऊः भारत में एक ऐसी सीक्रेट सेना है, जिसकी शौर्य की कहानियां हर भारतीय के जेहन में है। चीन को दुबकने और पाक को पीछे जाने के लिए मजबूर कर देने वाली इस सेना के बारे में लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं है। इस सेना में सेवाएं देने वालों में ज्यादा लोग लेह के गांव आंगलिंग के निवासी हैं। यहां के हर घर से कम से कम एक सदस्य स्पेशल फ्रंटियर फोर्स में अपनी सेवाएं दे रहा है या दे चुका है। भारत के ब्लैक टॉप पर कब्जे में अहम भूमिका निभाने वाले एसएफएफ के जांबाजों की कहानियां अब भारतीयों की जुबान पर है।

दरसअल, 29 अगस्त की रात को पैंगॉन्ग के दक्षिणी किनारे पर घुसपैठ करने की कोशिश कर रहे चीनी सैनिकों को स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के जवानों ने पीछे खदेड़ दिया था और ब्लैक टॉप पर कब्जा कर लिया था। इससे पहले सीक्रेट फोर्स के बारे में लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं थी। इस गांव में पीढ़ियों से भारतीय सेना की सेवा करने वाले तिब्बती रहते हैं। स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के पूर्व सैनिकों ने मीडिया को बताया कि वह कई सीक्रेट मिलिट्री ऑपरेशन्स में शामिल रहे हैं। एसएसएफ के एक पूर्व जवान ने बताया कि हमारा काम भारतीय सेना को लड़ाई में मदद करना है। भारत में सीक्रेट फोर्सेज का गठन 1962 चीन से युद्ध के दौरान किया गया था। एसएफएफ के जवान पहाड़ियों पर ऊंचे स्थानों पर लड़ाई में माहिर होते हैं। दुश्मन के इलाके में घुसकर हमला करने में इन्हें महारत हासिल है। ये जेनेटिक रूप से एथलेटिक और मजबूत होते हैं।

50 के दशक से लेकर आज तक चाइनीज आर्मी इससे उलझने से दूरी ही बनाए रखना प्रेफर करती है। एसएफएफ की पहली बड़ी भूमिका 1971 की लड़ाई में रही, एसएफएफ ने उस वक्त के ईस्ट पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के चटगांव हिल्स के करीब भारतीय सेना की बड़ी मदद की थी। इसके अलावा ऑपरेशन ब्लू स्टार, कारगिल युद्ध में भी एसएफएफ की अहम भूमिका रही। कारगिल में भी करीब 14 हजार फुट की ऊंचाई पर जीरो डिग्री से भी कम तापमान में एसएफएफ ने मोर्चा संभाला था।

दुश्मनों के लिए काल हैं मार्कोस कमांडो

मार्कोस का गठन वर्ष 1985 में किया गया था। दो साल बाद इसका नाम बदलकर मरीन कमांडो फोर्स कर दिया गया। मार्कोस (मरीन कमांडो) एक स्पेशल फोर्स यूनिट है। यह भारतीय वायुसेना के अंतर्गत कार्य करती है। मार्कोस का उपयोग समुद्री डाकुओं के खिलाफ ऑपरेशन और आतंक विरोधी कार्रवाईयों में किया जाता है। इस यूनिट में 1200 कमांडो होते है। यूएस नेवी सील के बाद यह विश्व की दूसरी सबसे घातक स्पेशल फोर्स है, जो पूरे हथियारों के साथ पानी में भी दुश्मन का मुकाबला कर सकती है, ये इंडियन नेवी की स्पेशल फोर्स होती है। इस परीक्षा को केवल 20 प्रतिशत कैंडिडेट ही पास कर पाते हैं। मार्कोस कमांडो हाथ-पैर बंधे होने पर भी तैर सकते है।

पलक झपकते दुश्मनों का खात्मा कर देते हैं पैरा कमांडोज

पैरा कमांडोज का गठन वर्ष 1966 में हुआ था। भारतीय पैरा कमांडोज सेना की सबसे ज्यादा प्रशिक्षित स्पेशल फोर्स है। 1965 में भारत-पाक युद्ध के दौरान इसका गठन हुआ था। वर्ष 1971 और 1999 कारगिल युद्ध के दौरान इसी पैरा कमांडोज ने पाकिस्तान को धूला चटा दी थी। पैराशूट यूनिट का कार्य दुश्मन के इलाके में धीरे से लैंड करना और दुश्मन की पहली रक्षा पंक्ति को ध्वस्त करना होता है।

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वर्ष 1971 की भारत-पाक जंग में 700 पैरा कमांडो ने लड़ाई का रुख बदल दिया था। पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक के वक्त भी इनका उपयोग किया गया था। पैरा कमांडो को आसमान में 5 हजार से लेकर 30 हजार फिट तक की ऊंचाई से छलांग लगाकर दुश्मन का खात्मा करने की ट्रेनिंग मिली होती है।

ब्लैक कैट कमांडो से कांपते हैं आतंकी

एनएसजी का गठन वर्ष 1984 में हुआ था। एनएसजी भारत की सबसे प्रमुख सिक्योरिटी फोर्स है। इसका इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों को रोकने और देश में आंतरिक व्यवधान को संभालने के लिए किया जाता है। इसे आम भाषा में एनएसजी, ब्लैक कैट कमांडो के नाम से जाना जाता है। 1984 के ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद इसकी स्थापना की गई थी। एनएसजी कमांडो गृह मंत्रालय के अंतर्गत आते है।