Monday, December 16, 2024
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नहाय-खाय के साथ कल से शुरू होगा छठ महापर्व, यहां जानें पूजा से संबंधित अहम जानकारियां

लखनऊः छठ पर्व की तैयारियां लखनऊ सहित पूरे देश में शुरू हो गई हैं। यह पर्व दीपावली के बाद कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देने की परम्परा इस पर्व की विशेषता है। हालांकि इसमें उदय होते सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है। यह मुख्यतः व्रत पर्व है। छठ का मुख्य पर्व 10 नवम्बर को है। छठ पर्व को लेकर भक्तों में उत्साह झलक रहा है।

आठ नवम्बर को नहाय-खाय से पर्व की शुरुआत होगी। इसके बाद 11 नवम्बर को उदय होते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत का पारण किया जाएगा। चार दिवसीय यह बड़ा तप साध्य व्रत है। यह मुख्यतः बिहार प्रान्त का पर्व है, लेकिन अब यह उत्तर प्रदेश में भी पूरे भक्तिभाव से मनाया जाता है।

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यहां के निशातगंज गोमती पर बनाए गए छठ घाट पर शनिवार को साफ-सफाई की गई। यहां छठ पर्व पर अखिल भारतीय भोजपुरी समाज की ओर से एक बृहद अर्घ्य पूजन एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम किया जाता है। भोजपरी समाज के अध्यक्ष प्रभुनाथ राय ने बताया कि घाट पर तैयारियां शुरू हो गई हैं। शनिवार को समाज के सदस्यों ने घाट पर सफाई की। रविवार से टेंट और सांस्कृतिक मंच बनना शुरू हो जाएगा। प्रभुनाथ राय ने बताया कि आठ नवम्बर को नहाय-खाय से पर्व की शुरुआत हो जाएगी। नौ नवम्बर को खरना होगा और मुख्य पूजा 10 नवम्बर को होगी। इस दिन शाम को अस्त होते सूर्य को व्रती महिलाएं अर्घ्य देती हैं। इसके दूसरे दिन 11 नवम्बर को उदय होते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया जाएगा।

पहला दिन नहाय-खाय

छठ पूजा के प्रथम दिन नहाय-खाय से इसकी शुरुआत होती है। व्रती इस दिन जलाशयों व घरों में स्नान के बाद भगवान भास्कर को जल अर्पण करने के उपरांत भोजन ग्रहण करते हैं। इस दिन व्रत करने वाले लोग भोजन में अरवा चावल, अरहर की दाल, कद्दू की सब्जी, सेंधा नमक लेते हैं। वहीं रात के समय भी व्रती यही भोजन ग्रहण करते हैं।

दूसरा दिन खरना

इस दिन साफ-सफाई और स्नान के बाद सूर्य देव को साक्षी मानकर व्रती महिलाएं व्रत का संकल्प लेती हैं। चने की सब्जी, चावल और साग का सेवन करने के बाद व्रत की शुरुआत करती हैं। छठ पर्व का दूसरा दिन खरना कहलाता है। पूरे दिन महिलाएं व्रत रखती हैं। शाम को मुख्य रूप से गुड़ की खीर बनाई जाती है।

तीसरा दिन खास छठ, इस अस्त होते सूर्य को देते हैं अर्घ्य

छठ पूजा का तीसरा दिन खास छठ कहलाता है। इस दिन शाम के समय महिलाएं किसी तालाब या नदी के घाट पर जाती हैं। यहां छठ पूजा बेदी पर छठी मैया की पूजा-अर्चना करने के बाद पानी में खड़े होकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देती हैं। अर्घ्य देने के बाद घाट से वापस जाकर घर पर कोसी भरने की परंपरा है। मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति मन्नत मांगता है और वह पूरी हो जाती है तो वह कोसी भरता है।

चौथा होता है पारण, इस दिन उगते हुए सूर्य को देते हैं अर्घ्य

छठ पूजा के चौथे दिन व्रत का पारण किया जाता है। इसके बाद छठ पर्व का समापन होता है। इस दिन सुबह के समय महिलाएं घाट पर जाकर उगते हुए सूर्य की पूजा करती हैं और फिर पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य अर्पित करती हैं। इसके बाद घर आकर प्रसाद खाकर व्रत का पारण करती हैं।

पौराणिक कथा

छठ पूजा करने की कहानी राजा प्रियंवद से सम्बंधित है। राजा के कोई संतान नहीं थी। तब महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए राजा से यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। यज्ञ से पुत्र तो प्राप्ति हुआ, लेकिन वह मरा हुआ था। प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान मानस की पुत्री देवसेना प्रकट हुई और उन्होंने राजा से कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई है। इसी कारण यह षष्ठी कहलाती है।

एक कथा भगवान श्री राम-सीता से जुड़ी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार 14 वर्ष के वनवास के बाद जब राम अयोध्या लौटे थे, तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया। इस दौरान मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगाजल छिड़क कर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने को कहा। सीता जी ने छह दिनों तक मुग्दल ऋषि के आश्रम में रह कर सूर्यदेव की पूजा की। तभी से भी छठ पूजा शुरू होने की परम्परा बताई जाती है।

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