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राजधानी लखनऊ में सांसों का टोटा, जरूरत 10 टन की मिल रही महज 7 टन

लखनऊः सरकार भले ही भरपूर ऑक्सीजन की आपूर्ति का खम ठोंक रही है, लेकिन शहर में हर दिन स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। हाल यह हो गया है कि निजी अस्पतालों में उन्हीं मरीजों को भर्ती किया जा रहा है, जो खुद से सिलेंडर की व्यवस्था कर रहे हैं। इसके अलावा रेमडेसिविर दवाइयों की कालाबाजारी भी चरम पर होने के चलते लोगों की जेबें कट रही हैं। कोरोना संक्रमितों के मामले में पूरे प्रदेश में नंबर-1 पर काबिज राजधानी में हर दिन हालात बिगड़ते जा रहे हैं। तेजी से बढ़ रही मरीजों की संख्या के चलते राजधानी के लगभग सभी अस्पतालों में बेड फुल हो चुके हैं तो अब सांसों का सौदा भी महंगा होता जा रहा है। एक अनुमान के मुताबिक, राजधानी के सरकारी और निजी अस्पतालों में रोजाना करीब 10 टन ऑक्सीजन की खपत बताई जा रही है, जबकि सप्लाई महज 6-7 टन ही हो पा रही है। जिस तेजी से संक्रमितों की संख्या में हर दिन इजाफा हो रहा है, उसे देखते हुए यह कहना मुश्किल नहीं है कि बीतते समय के साथ ऑक्सीजन की जरूरत और सप्लाई का अंतर बढ़ता जाएगा। ऐसे में ऑक्सीजन की कमी संक्रमितों पर आफत बनकर टूट पड़ी है।

निजी के साथ-साथ सरकारी अस्पतालों ने भी तीमारदारों को बोल दिया है कि ऑक्सीजन की व्यवस्था कीजिए, अन्यथा अपना मरीज घर ले जाइए। राजधानी में कोविड के मरीजों की संख्या करीब 50 हजार के पार बताई जा रही है। हालात बिगड़ने पर संक्रमित अस्पताल की ओर भाग रहा है, जहां पर उसको इलाज के लिए ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है, लेकिन ऑक्सीजन जरूरत के अनुसार नहीं मिल पा रही है। अब तो हालात ऐसे हो रहे कि अस्पतालों में बेड भी उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। होम आइसोलेशन में जो मरीज घर पर हैं, अब उन्हें भी ऑक्सीजन की जरूरत पड़ने लगी है। धीरे-धीरे ऑक्सीजन की कमी विकराल रूप धारण करती जा रही है।

राजधानी के 45 कोविड अस्पतालों में 963 आईसीयू बेड
राजधानी में मरीजों को भर्ती होने के लिए कई-कई दिनों का इंतजार करना पड़ रहा है। स्वास्थ्य विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक, राजधानी के विभिन्न अस्पतालों में कुल 963 आईसीयू बेड हैं, जबकि राजधानी में प्रतिदिन 5,000 से ऊपर संक्रमित पाए जा रहे है। इनमें से 20 से 25 प्रतिशत मरीज गंभीर होते हैं। ऐसी परिस्थिति में रोज ही करीब 500 से ज्यादा मरीजों को आईसीयू बेड की जरूरत पड़ती है, जिन्हें इंतजार करने के लिए कहा जाता है। इनमें से कुछ आईसीयू में आने से पहले ही दम तोड़ चुके होते हैं। मिली जानकारी के मुताबिक, सबसे ज्यादा आईसीयू बेड 427 केजीएमयू में हैं। इसके बाद पीजीआई में 102 आईसीयू बेड हैं। लोहिया में 30 बेड आईसीयू के हैं। आलम यह है कि सभी जगह सप्ताह-दस दिन तक आईसीयू बेड फुल है। सीएमओ से मिली जानकारी के अनुसार, अस्पतालों में बेड बढ़ाने से फायदा मिल रहा है। तीन और कोविड अस्पताल आईसीयू बेड के साथ शामिल हुए हैं।

राजधानी के अस्पतालों में रेमडेसिविर का टोटा
रेमडेसिविर इंजेक्शन के लिए राजधानी के अस्पतालों में मारामारी का आलम है। सरकारी अस्पताल छोडिए यहां पर नामी-गिरामी अस्पतालों में यह इंजेक्शन नहीं मिल रहा। कोरोना के गंभीर मरीजों के जीवन बचाने के लिए दिया जाने वाला रेमडेसिविर इंजेक्शन उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। केजीएमयू, लोहिया और पीजीआई में रेमडेसिविर इंजेक्शन जरूर मिल रहे हैं, लेकिन कोविड के 90 फीसदी से ज्यादा मरीजों के तीमारदारों को मेडिकल स्टोरों के चक्कर काटने पड रहे हैं।

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12 से 15 हजार में हो रही कालाबाजारी
केंद्र सरकार ने रेमडेसिविर इंजेक्शनों के दाम घटाने की घोषणा तो कर दी है, पर हकीकत इससे कहीं दूर है। न ही इस इंजेक्शन की उपलब्धता सुनिश्चित हो पा रही है और न जरूरत के मुताबिक मरीजों को यह मिल पा रहा है। जिससे एक इंजेक्षन की 12-15 हजार रूपये में कालाबाजारी की जा रही है, पर जिम्मेदार मौन हैं।