Thursday, November 21, 2024
spot_img
spot_img
spot_imgspot_imgspot_imgspot_img
Homeअन्यज्ञान अमृतभगवान श्रीकृष्ण का प्रादुर्भाव महोत्सव श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

भगवान श्रीकृष्ण का प्रादुर्भाव महोत्सव श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

भारत भूमि अनन्तानन्त तीर्थों की भूमि, मनुष्यों की कर्मभूमि, ऋषि-मुनियों की तपोभूमि, धर्माचार्यों की साधनाभूमि एवं भगवान श्रीहरि की अवतार लीला भूमि है। दिव्य लोकों में अवस्थित देववृंद भी भारत की महिमा गाते हैं। गायन्ति देवाः किल गीतकानि इत्यादि। यहां पर भगवान के विविध अवतारों में से श्रीकृष्णा अवतार अर्थात श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के संबंध में कुछ विचार प्रस्तुत है।

“कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्” इस शास्त्रीय वचन के अनुसार सच्चिदानंद परमब्रम्ह परमात्मा सर्वेश्वर भगवान श्रीकृष्ण समस्त अवतारों में परिपूर्णतम् अवतार माने गए हैं। अचिन्त्य गुण, शक्तियुक्त प्रभु दिव्यधाम से सांग सपरिकर भूतल पर अवतीर्ण होते हैं। जैसे एक दीपक से दूसरे दीपक को प्रज्वलित करने पर उसके प्रकाश में किसी प्रकार का न्यूनाधिक्य नहीं रहता, उसी प्रकार नित्य विभूति से लीला विभूति में अवतीर्ण होने पर प्रभु समस्त गुण शक्तियां यथावत रहती हैं। किसी को अजहद् गुण शक्ति कहा गया है। दे युग-युगांतरों, कल्प-कल्पांतरों के भक्तों की इच्छा पूर्ण करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण का यह अवतार है। अर्थात् भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को पूर्ण काल में स्वयं श्रीहरि ब्रम्हादि देवों की प्रार्थना पर दैत्यों के उदर से अनुग्रहपूर्वक प्रकट हुए। स्वयं प्रभु अपरिच्छिन्न होते हुए भी अपनी अद्भुत माया शक्ति का आश्रय लेकर परिच्छिन्न स्वरूप से सामान्य बालक की क्रीड़ा करने लगे। अतः ऐसे शुभ दिन में चारों वर्ण- ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्रों द्वारा अपनी शक्ति के अनुसार यत्नपूर्वक प्रभु का जन्म महोत्सव संपन्न करना चाहिए और उपवास रखना चाहिए।

जब तक उत्सव संपन्न न हो तब तक भोजन नहीं करना चाहिए। जो मनुष्य श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के अवसर पर भोजन करता है, वह नराधम कहलाता है। जब तक यह श्रृष्टि अवस्थित रहे, उतने समय तक उसे घोर नरक में निवास करना पड़ता है। अर्धरात्रि के समय यदि अष्टमी रोहिणी नक्षत्र से युक्त हो जाए तो उस तिथि में किया गया उपवास करोड़ों यज्ञों का फल देने वाला होता है। भाद्रपद कृष्णाष्टमी यदि रोहिणी नक्षत्र और सोम या बुधवार से संयुक्त हो जाए तो वह जयंती नाम से विख्यात होती जन्म-जन्मांतरों के पुण्य संचय से ऐसा योग प्राप्त होता है। इस प्रकार से जिस मनुष्य को जयंती उपवास का सौभाग्य मिलता है, उसके कोटि जन्म कृत पाप नष्ट हो जाते हैं तथा जन्म बंधन से मुक्त होकर वह परमदिव्य वैकुण्ठादि, भगवद्धाम में निवास करता है। वायु पुराण में कहा गया है- यदि समस्त पापों को समूल नष्ट करना चाहे तो उत्सवांत में भगवद् प्रसादान्न का भक्षण करें। उत्सव संपन्न करने के बाद विद्वानों का पारण करना चाहिए। परस्पर विनोद के साथ हरिद्रामिश्रित, दधि-तक्रादिका लेप करें और मक्खन-मिश्री, फल-प्रसाद, वस्त्रादि वस्तुओं के निक्षेपपूर्वक हर्ष मनाएं।

तदंतर वैष्णवजनों को भोजन कराकर स्वयं भोजन करें। इस विधि से जो नर-नारी जन्माष्टमी व्रत को संपन्न करते हैं, वे अपने कुल की 21 पीढ़ियों को उद्धार करते हैं। सब पुण्यों को देने वाला जन्माष्टमी व्रत करने के बाद कोई कर्तव्य अवशेष नही रहता। व्रतकर्ता अंत में अष्टमी व्रत के प्रभाव से भगवद्धाम को प्राप्त होता है। वर्षादृकालोद्भव पुष्पों से श्री सर्वेश्वर श्रीकृष्ण को जो अर्चन करते हैं वे मनुष्य नही देव हैं अर्थात् देवगण भी उनका वंदन करते हैं। जन्माष्टमी पर्व के संबंध में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा धर्मराज युधिष्ठिर को कथानक जो भविष्यपुराणान्तर्गत वर्णित हैं, उसका यहां संक्षेप में उल्लेख किया जा रहा है। महाराज युधिष्ठिर ने देवकीनंदन श्रीकृष्ण से पूछा- हे अच्युत! आप कृपा करके मुझे जन्माष्टमी व्रत के बारे में बताएं कि किस काल में उसका शुभारंभ हुआ और उसकी विधि क्या है तथा उसका पुण्य क्या है ?
धर्मराज की भावना के अनुसार प्रभु ने कहा- महाराज! मथुरा में रंग के मध्य मल्लयुद्ध जब हमने अनुयायियों सहित दुष्ट कंसासुर को मार गिराया, तब वहीं पर पुत्रवत्सला माता देवकी मुझे अपनी गोद में भरकर मुक्त कंठ से रोने लगीं। उस समय रंगमंच में विशाल जनसमूह उपस्थित था। मधु, वृष्णि, अंधकादि वंश के लोगों और उनकी स्त्रियों से माता देवकी जी घिरी हुई थीं। सब लोग अत्यंत स्नेह भरी दृष्टि से देख रहे थे, पिता श्री वसुदेव जी भी वहां पर उपस्थित होकर वात्सल्य भाव से विभोर होकर रोने लगे। वे बार-बार बलदाऊ सहित मुझे हृदय से लगाकर हे पुत्र हे पुत्र कहकर पुकारने लगे, उनके नेत्र आनंदाश्रुपूर्ण थे।

उनके कंठ से वाणी नहीं निकल पा रही थी। गदगद स्वर में अत्यंत दुखित भाव से कहने लगे आज मेरा जीवन सफल हो गया, मेरा जीवित रहना सार्थक हुआ जो कि दोनों पुत्रों से मेरा समागम हो गया। इस प्रकार परम हर्ष के द्य साथ उन दंपति के सौभाग्य की प्रशंसा करते हुए वहां उपस्थित यदुवंश के सभी महानुभाव प्रणति पूर्वक मुझसे कहने लगे- हे जनार्दन ! आज हमें महान हर्ष हो रहा है। मल्लयुद्ध द्वारा आप दोनों भाईयों ने दुष्ट कंस को उसके परिवार परिकरों सहित यमलोक पहुंचा दिया। हे मधुसूदन ! मधुपुरी में ही में क्या समस्त लोकों में महान उत्सव हो रहा है। प्रभु हमारे ऊपर आप और भी ऐसा अनुगृह कीजिए जिस तिथि, दिन, घड़ी, मुहूर्त में आपको माता देवकी ने जन्म दिया, उसे बताने की कृपा करें। उसमें हम सब आपका जन्मोत्सव मनाना चाहते हैं। हे केशव ! हे जनार्दन ! हम सब सम्यक भक्तिभाव से संवलित हैं, अवश्य कृपा करें। वहां समुपस्थित जनसमुदाय द्वारा इस प्रकार भाव व्यक्त करने पर पिता श्रीवसुदेव जी भी परम् विस्मित हो रहे थे। बार-बार श्रीबलभद्र को और मुझको देखते हुए उनके आनंद की कोई सीमा न थी, अंग-अंग पुलकायमान हो रहा था । पूज्य पिताश्री ने कहा- वत्स! समुपस्थित जनसमुदाय के प्रार्थनानुसार जन्माष्टमी वृत का यथावत निर्देश देकर सभी का मान रखो। तब मैंने पिताश्री की आज्ञा से मधुपुरी में जनसमूह के समक्ष जन्माष्टमी वृत का सम्यक प्रकार से वर्णन किया। हे पृथानंदन ! आप से भी वही सब कह रहा हूँ। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और अन्य सभीजन जो धर्म में आस्था रखने वाले हैं वे जन्माष्टमी व्रत का अनुष्ठान रखकर अपने अभीष्ट की सिद्धि प्राप्त कर लें, एतदर्थ, इसे प्रकाशित किया।

भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे- ‘हे भक्तवृंद! भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि बुधवार एवं रोहिणी नक्षत्र के शुभ योग में अर्धरात्रि के समय वसुदेव जी से देवकी में मैं प्रकट हुआ, उस समय चंद्रमा वृष राशि में अवस्थित थे, जो उनका उच्च स्थान है। माता देवकी के अंग में अवस्थित बाल स्वरूप का चिंतन करते हुए मेरा जन्म महोत्सव यथाविभव संपन्न करना चाहिए। हे धर्मनंदन! इस प्रकार मेरे कथनानुसार मथुरावासियों ने प्रथम बार जब महान समारोह के साथ जन्माष्टमी व्रत-उपवास आदि विधिवत संपन्न किया, तब आगे चलकर सर्वत्र जन्माष्टमी व्रत का प्रचार-प्रसार हुआ। भगवान का श्रीमुख से जन्माष्टमी व्रत की परंपरा एवं विधि श्रवण कर महाराज युधिष्ठिर कृत-कृत्य हो गए। उन्होंने हस्तिनापुर में यह महोत्सव प्रतिवर्ष सम्पादित किया। इस दिन भगवान का प्रादुर्भाव होने के कारण यह उत्सव मुख्यतः उपवास, जागरण एवं विशिष्ट रुप से श्रीभगवान की सेवा-श्रृंगारादि है। दिन में उपवास और रात्रि में जागरण एवं यथोपलब्ध उपचारों से भगवान का पूजन भगवद्कीर्तन इस उत्सव के प्रधान अंग हैं। श्रीनाथ द्वारा और व्रज (मथुरा-वृंदावन) में यह उत्सव बड़े विशिष्ट ढंग से मनाया जाता है। इस दिन समस्त भारत वर्ष के मंदिरों में विशिष्ट रुप से भगवान का श्रृंगार किया जाता है। कृष्णावतार के उपलक्ष्य में गली मुहल्लों एवं आस्तिक गृहस्थों के घरों में भी भगवान श्रीकृष्ण के लीला की झांकियां सजाई जाती हैं एवं श्रीकृष्ण की मूर्तियों का श्रृंगार करके झूला झुलाया जाता है। स्त्री-पुरुष रात्रि के 12 बजे तक उपवास रखते हैं एवं रात्रि के 12 बजे शंख तथा घंटों के निनाद से श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाता है। भक्तगण मंदिरों में सम्वेतस्वर से आरती करते हैं एवं भगवान का गुणगान करते हैं।

यह भी पढ़ेंः-शारदीय नवरात्र महिमा

इस दिन केले के खम्भे, आम अथवा अशोक के पल्लव आदि से घर का द्वार सजाया जाता है। दरवाजे पर मंगल कलश एवं मूसल स्थापित करें। रात्रि में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति अथवा शालिग्राम जी को विधिपूर्वक पंचामृत से स्नान कराकर षोडशोपचार से विष्णु पूजन करना चाहिए।‘ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नमः’ – इस मंत्र का उच्चारण तथा वस्त्रालंकार आदि से सुसज्जित करके भगवान को सुंदर सजे हुए हिंडोले में प्रतिष्ठित करें। धूप, दीप और अन्नरहित नैवेद्य तथा प्रसूति के समय सेवन होने वाले सुस्वादु मिष्ठान, जायकेदार नमकीन पदार्थों एवं उस समय उत्पन्न होने वाले विभिन्न प्रकार के फल, पुष्पों और नारियल तथा नाना प्रकार के मेवे का प्रसाद श्रीभगवान को अर्पण करें। दिन में भगवान की मूर्ति के सामने बैठकर कीर्तन करें तथा भगवान का गुणगान करें तथा रात्रि को 12 बजे गर्भ से जन्म लेने के प्रतीकस्वरुप खीरा फोड़कर भगवान का जन्म कराएं एवं जन्मोत्सव मनाएं। जन्मोत्सव के पश्चात कर्पूरादि प्रज्ज्वलित कर सम्वेत स्वर से भगवान आरती- स्तुति करें तत्पश्चात प्रसाद वितरण करें। जन्माष्टमी हमारे देश का अतिविशिष्ट और सर्वप्रमुख उत्सव है। देश के प्रत्येक अंचल में इसकी पूर्ण प्रतिष्ठा है। बहुधा लोग व्रत में फलाहार करते हैं किन्तु अधिकांश इस व्रत को पूर्ण उपवास मनाते हैं। जो मनुष्य जन्माष्टमी का व्रत करता है, वह विष्णु लोक को प्राप्त करता है।

लोकेंद्र चतुर्वेदी ज्योतिर्विद

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर  पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें…)

सम्बंधित खबरें
- Advertisment -spot_imgspot_img

सम्बंधित खबरें