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भुवनेश्वर: जहां भगवान शिव, हमेशा करते हैं निवास

भुवनेश्वर नगर ओडिशा प्रदेश की राजधानी है, जिसे शिव मंदिरों का नगर कहा जाता है। माना जाता है कि पहले यहां लगभग 7,000 शिव मंदिर थे लेकिन अब इनकी संख्या लगभग 500 है। तीर्थों में ‘बिन्दु सरोवर’ और ‘ब्रह्मकुण्ड’ प्रमुख है, जहां स्नान करने का बड़ा महात्म्य है परंतु सरोवरों की जीर्ण अवस्था होने से इनका आकर्षण आहिस्ता-आहिस्ता घटता जा रहा है। बिन्दु सरोवर के संदर्भ में कहा जाता है कि इसमें सभी तीर्थों का जल समाहित किया गया था। सरोवर के मध्य में एक मंदिर है, जहां वैशाख माह में ‘चंदन यात्रा’ का उत्सव होता है।

कैसा है शिव का भव्य मंदिर

सरोवर के चारों ओर अनेक मंदिर हैं। इसी सरोवर के पास ही ब्रह्म कुण्ड है, जिसमें गौमुख से जल गिरकर बाहर जाता है। श्री लिंगराज मंदिर भुवनेश्वर का प्रमुख मंदिर है। श्री लिंगराज का नाम ही भुवनेश्वर है। इस मंदिर का निर्माण ललाटेन्दु केशरी द्वारा संवत् ई. 617-657 में कराया गया था। मंदिर की कलाकृति अत्यंत उच्च कोटि की है। मंदिर के सिंह द्वार से प्रवेश करने पर सबसे पहले गणेश जी का मंदिर मिलता है। आगे नंदी स्तम्भ है और फिर मुख्य मंदिर है, जिसकी निर्माण कला दर्शनीय है। मंदिर में प्रतिष्ठित श्री लिंगराज का चपटा अगढ़ित श्री विग्रह है। यह वास्तव में बुद-बुद लिंग है और एक बड़ी गोलाकार पीठिका के मध्य में स्थित है। यह चक्राकार होने से ‘हरि-हरात्मक’ लिंग माना जाता है और ऐसा मानकर ही इनकी पूजा ‘‘हरि हर’’ मंत्र से होती है। यहां त्रिशूल प्रधान आयुध नहीं है, बल्कि पिनाक यानी धनुष प्रधान आयुध माना जाता है। श्री लिंगराज मंदिर का शिखर लगभग 180 फीट ऊंचा ह। विमान से लगे हुए कार्तिकेय तथा पार्वती जी के मंदिर है। माता गौरी की प्रतिमा अत्यंत सुंदर तथा आभूषण धारण किए हुए है। संपूर्ण मंदिर के बाहरी भाग पर पशु-पक्षी तथा देवी-देवताओं की बड़ी तथा छोटी मूर्तियां बनी हुई हैं। हाथी, घोड़े, हिरन, सिंह आदि की मूर्तियां शिल्प कला की दृष्टि से अत्यंत उत्कृष्ट हैं। मंदिर के प्रांगण में अनेक छोटे मंदिर हैं, जिनमें भुवनेश्वरी तथा गौरी को लिंगराज जी की शक्ति माना जाता है। भुवनेश्वर में स्थित ‘मुक्तेश्वर मंदिर’ को प्रसिद्ध यात्री फर्गुसन ने ओडिशा की वास्तुशिला का हीरा कहा है। ऐसा लगता है कि कलाकार ने इसे सर्वांग संपूर्ण बनाने में अपना सभी कलाओं का कौशल प्रकट कर दिया हैं। इसमें उड़ते हुए गन्धर्व विमान व जगमोहन की शोभा दर्शनीय है। हाथियों को रौंदते हुए सिंह, बंदरों के फुदकते-उछलते दृश्य मन को लुभाते हैं। मृगया का एक अद्भुत दृश्य अत्यन्त आकर्षक है, जिसमें कुछ मृग पीछे घूमकर देखते जाते हैं कि व्याध कहां है। भुवनेश्वर में ब्रह्म कुण्ड के समीप ही ब्रह्मेश्वर मंदिर है, जिसमें शिव जी आदि की आकर्षक मूर्तियां हैं। bhubaneswar-lord-shiva-always-resides मंदिर के पश्चिम में मारीचि कुण्ड है, जिसका जल पवित्र माना जाता है। परशुरामेश्वर मंदिर का निर्माण पांचवी-छठवीं शताब्दी में हुआ था। यह मंदिर भी कला की दृष्टि से उत्कृष्ट है। भुवनेश्वर में राजारानी मंदिर पहले विष्णु मंदिर था परंतु अब यहां कोई आराध्य मूर्ति नहीं है। मंदिर कीे शिल्पकला दर्शनीय है। इस मंदिर का निर्माण राजारणिया पत्थर से हुआ है। इसी मंदिर की कलाकृति से प्रभावित होकर सेठ घनश्यामदास बिड़ला ने रेणुकूट पर भी शिव मंदिर इसी अनुकृति पर बनवाया है। प्रतिष्ठित भास्करेश्वर मंदिर शैव सम्प्रदायक है। यहां प्रतिष्ठित शिवलिंग की ऊंचाई नौ फुट और व्यास 12 फुट है। उनकी बनावट अनलंकृत है और पश्चिमाभिमुख है। भुवनेश्वर में बिन्दु सरोवर के ऊपरी भाग पर अनंत वासुदेव मंदिर स्थित है। यहां पर सुभद्रा, नारायण और लक्ष्मी जी के विग्रह हैं। भुवनेश्वर के यही अधिष्ठाता हैं। भगवान शंकर इन्हीं की अनुमति से इस क्षेत्र में पधारे थे।

गुड़ीचा मंदिर में प्रतिष्ठित है रामेश्वर शिवलिंग

रामेश्वर मंदिर अनंत वासुदेव मंदिर से लगभग एक किमी की दूरी पर स्टेशन जाने के राजमार्ग में स्थित ह। इसकी गुड़ीचा मंदिर भी कहते हैं। इसमें रामेश्वर नामक शिवलिंग प्रतिष्ठित है। चैत्र शुक्ल अष्टमी को श्री लिंगराज की यात्रा होती है और उनका रथ इसी मंदिर तक आता है। परशुरामेश्वर मंदिर लिंगराज मंदिर से लगभग एक किमी की दूरी पर स्थित है। इस क्षेत्र के समस्त मंदिरों में यही सबसे प्राचीन है। इसकी शिल्पकला देखने योग्य है। इस मंदिर के समीप ही नागेश्वर मंदिर है। इस क्षेत्र में पांच पवित्र कुण्ड हैं, प्रत्येक कुण्ड के समीप मंदिर भी है। लिंगराज मंदिर से लगभग एक किमी की दूरी पर दुग्ध कुण्ड है। यह अति पवित्र कुण्ड है, जिसमें स्नान नहीं किया जाता वरन यात्री इसका जल पीते हैं। कुण्ड के पास ही केदारेश्वर, पार्वती, हनुमान आदिदेव मंदिर हैं। इसी के पास गौरी कुण्ड नामक विशाल सरोवर है, जिसमें स्नान किया जाता है। इसका जल हमेशा स्वच्छ रहता है। इसी के सामने केदारकुण्ड है। दुग्ध कुण्ड के घेरे के बाहर एक अलग घेरे में मुक्तेश्वर कुण्ड एवं सिद्धेश्वर कुण्ड है। इसके अलावा इस क्षेत्र में अनगिनत ऐसे भी मंदिर हैं, जिनकी हालत अत्यंत जीर्ण-शीर्ण है। उनमें प्रवेश करना खतरनाक है क्योंकि वे कभी भी ध्वस्त हो सकते हैं। भुवनेश्वर से लगभग 10 कि.मी. दूर धौली की पहाड़ियों पर शांति स्तूप बना है। इसके चारों ओर महात्मा बुद्ध की प्रतिमाएं लगी हैं, इसी पहाड़ी के पास इतिहास प्रसिद्ध कलिंग का युद्ध हुआ था। यह भी पढ़ेंः-राम की शरण में पंहुचते विपक्षी दल जहां सम्राट अशोक का हृदय परिवर्तन हुआ था। भुवनेश्वर से लगभग 05 किमी दूर स्थित खंडगिरि और उदयगिरि की बौद्ध गुफाएं खण्ड गिरि का गुलाबी जैन मंदिर तथा पारसनाथ का मंदिर सभी हिन्दु बौद्ध और जैन धर्मों की उन्नति और प्रभुत्व के प्रतीक हैं। गुफाओं की नक्काशी सबसे ज्यादा दिलचस्प है और यह भारतीय शिल्प कला के बेहतरीन उदाहरण है। क्षिण पूर्व रेलवे के हावड़ा-वाल्टेयर रेलमार्ग पर हावड़ा से लगभग 437 कि.मी. पर भुवनेश्वर रेलवे स्टेशन स्थित है। यहां से भुवनेश्वर का मुख्य मंदिर श्री लिंगराज मंदिर लगभग 04 किमी की दूरी पर स्थित है। स्टेशन से मुख्य मंदिर तक बसें, तांगे, रिक्शे आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। भुवनेश्वर से यात्रियों के ठहरने के लिए होटल, लाॅज, धर्मशालाएं तथा आश्रम उपलब्ध हैं। ज्योतिप्रकाश खरे (अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर(X) पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)