Srimad Bhagavad Gita: अपनी तर्कपूर्ण शिक्षाओं और प्रकाशपूर्ण प्रेरणाओं के कारण समूचे विश्व में जीवन प्रबंधन के अनुपम ग्रन्थ के रूप में लोकप्रिय ‘श्रीमद्भागवत गीता’ (Srimad Bhagavad Gita) सनातन हिन्दू धर्म की अनमोल निधि है। इसके प्रत्येक श्लोक में ज्ञान का अनूठा प्रकाश है। मानव जीवन की इस उत्कृष्टतम आचार संहिता की विशिष्टता यह है कि विश्व शांति का यह संदेश युद्ध की भूमि से दिया गया है। किंकर्तव्यविमूढ़ मनुष्य को आत्मकल्याण का पथ सुझाकर भटकाव से बचाने वाले इस दिव्य ग्रन्थ में किसी पंथ विशेष की नहीं, अपितु विश्व मानव के हित के लिए ज्ञान, भक्ति व कर्म की तथ्यपूर्ण व्याख्या की गई है।
इसमें परस्पर विरोधी दिखाई देने वाले अनेक विश्वासों को मनोवैज्ञानिक ढंग से एक साथ गूंथकर मानव जाति के कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया गया है। इस अनुपम ग्रन्थ (Srimad Bhagavad Gita) की वैश्विक लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अपने अद्भुत विषय वैशिष्ट्य के कारण भागवत गीता (Srimad Bhagavad Gita) के 78 भाषाओं में 250 से ज्यादा अनुवाद और तथा दर्जनों भाष्य हो चुके हैं। 18 अध्यायों के 700 श्लोकों में प्रवाहित इस अद्भुत ज्ञान गंगा का कोई सानी नहीं है। देश-दुनिया के सभी आध्यात्मिक मनीषी इस विषय पर एकमत हैं।
बताते चलें कि श्रीमद्भागवत गीता (Srimad Bhagavad Gita) महाभारत के छठे खंड “भीष्म पर्व“ का वह हिस्सा है, जो वार्तालाप मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में युद्ध से पलायन को तत्पर मोहग्रस्त व दिग्भ्रांत अर्जुन को कर्तव्य पथ पर प्रेरित करने के लिए योगीश्वर श्रीकृष्ण ने उसके साथ किया था इसीलिए इस दिन को मोक्षदा एकादशी तथा गीता जयंती के रूप में भी जाना जाता है। गौरतलब हो कि श्रीमद्भागवत गीता (Srimad Bhagavad Gita) एक धर्मग्रंथ मात्र नहीं है, अपितु जीवन-मृत्यु के दुर्लभ सत्य को अपने में समेटे हुए सनातन धर्म की ऐसी अनमोल निधि है, जो निराश, हताश, थके, भयभीत व दुखी मनुष्य के हृदय में आशा, प्रेम, शक्ति व सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है। यह हमें जीवन के शत्रुओं से लड़ने और सर्वशक्तिमान परमात्मा से एक गहरा नाता जोड़ने में मदद करती है।
Srimad Bhagavad Gita: मान्यता है कि गीता सिर्फ पुस्तकीय ज्ञान नहीं, बल्कि समग्र जीवन दर्शन है
देश-दुनिया के मनीषियों की मान्यता है कि गीता सिर्फ पुस्तकीय ज्ञान नहीं, बल्कि समग्र जीवन दर्शन है, जो समूची विश्व वसुधा को “सर्वे भवन्तु सुखिनः” का पाठ पढ़ाती है। हर्ष का विषय है कि श्रीमद्भागवत गीता की इन्हीं लोकहितकारी शिक्षाओं से प्रेरित होकर आज देश-दुनिया के विभिन्न शिक्षण-प्रबंधन संस्थान इस अनमोल ज्ञान को अपने पाठ्यक्रमों का हिस्सा बना रहे हैं। अमेरिका, जर्मनी व नीदरलैंड जैसे कई विकसित देशों ने इसे अपने देश के शैक्षिक पाठ्यक्रम में शामिल कर रखा है। अमेरिका के न्यूजर्सी स्थित सैटान हॉल विश्वविद्यालय में तो हरेक छात्र गीता का अंग्रेजी अनुवाद नियमित रूप से पढ़ता है। शिक्षाविदों का मानना है कि श्रीमद्भागवत गीता के शैक्षिक पाठ्यक्रम में शामिल होने से नई पीढ़ी को न सिर्फ जीवन मूल्यों की शिक्षा मिलेगी, वरन उनके व्यक्तित्व का भी संतुलित विकास होगा।
Srimad Bhagavad Gita: यूजीसी के नेट परीक्षा के सिलेबस में श्रीमद्भागवत गीता
जानना दिलचस्प हो कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने श्रीमद्भागवत गीता को नेट परीक्षा के सिलेबस में शामिल किया है। यूजीसी का मानना है कि इससे दुनिया भर में गीता को पढ़ने वाले और समझने वालों को बढ़ावा दिया जा सकेगा। ज्ञात हो कि राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा व गुजरात आदि कुछ राज्यों ने भी गीता के सूत्रों के बहुआयामी लाभों को समझकर अपने राज्य के शैक्षिक पाठ्यक्रम में गीता के साथ ही रामायण के प्रबंधन सूत्रों को शामिल कर सराहनीय कार्य किया है। भारत की सबसे धनी मुम्बई नगरपालिका ने भी बीते दिनों अपने विद्यालयों में गीता की पढ़ाई शुरू कर एक प्रशंसनीय कदम उठाया है।
यही नहीं, मूल्यपरक उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अनेक कीर्तिमान स्थापित करने वाले उत्तराखण्ड के देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति व जाने-माने आध्यात्मिक चिंतक डाॅ. प्रणव पण्ड्या तो स्वयं गीता की कक्षाएं लेते हैं। बताते चलें कि हरियाणा व मध्य प्रदेश सरकार के मुताबिक स्कूली पुस्तकों को समावेशी बनाने की दृष्टि से पाठ्यक्रम में गीता के कुछ अंश विद्यार्थियों के ज्ञानवर्द्धन के लिए शामिल किये गये हैं।
शिक्षा के भगवाकरण का आरोप लगाने वाले संकुचित मानसिकता वाले मुट्ठी भर लोग भले ही केन्द्र सरकार के इस कदम का लाख विरोध करें, मगर देश के सनातन जीवन मूल्यों का हिमायती बुद्धिजीवी वर्ग इस पहल का खुले दिल से स्वागत कर रहा है। बताते चलें कि इन कक्षाओं में श्रीमद्भागवत गीता के उन श्लोकों के बारे में बताया जाता है, जो बच्चों के भीतर संस्कार, कर्म और नैतिक शिक्षा को आगे बढ़ाते हैं। शिक्षिका अरुणा त्यागी के अनुसार कि श्रीमद्भागवत गीता को नैतिक शिक्षा के तौर पर पढ़ने से बच्चों का झुकाव अपनी संस्कृति की ओर हुआ है। अब वे अपने से बड़ों का आदर करने लगे हैं। गीता के अध्ययन से बच्चों को कर्तव्य के बारे में बताया जाता है। कर्म करते हुए कर्म के बंधन से किस प्रकार मुक्त रहते हैं, गीता हमें यह सिखाती है।
Srimad Bhagavad Gita: सिलेबस का हिस्सा बनाए जाने पर शिक्षक ही नहीं, माता-पिता भी उत्साहित
गीता को सिलेबस का हिस्सा बनाए जाने पर परीक्षाफल बेहतर आने पर शिक्षक ही नहीं, माता-पिता भी खासे उत्साहित हैं। जानना दिलचस्प हो कि जनवरी 2012 में जब मध्य प्रदेश के स्कूलों में गीता-सार पढ़ाए जाने के शासन के निर्णय के विरुद्ध कैथोलिक बिशप कौंसिल द्वारा मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गयी थी, तो तथ्यों का अवलोकन करने के बाद कोर्ट ने यह व्यवस्था दी थी कि गीता मूलतः भारतीय दर्शन की पुस्तक है न कि भारत के हिन्दू धर्म की। इस दृष्टि से गीता के व्यावहारिक जीवन में उपयोगी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए इससे जुड़े जो पाठ स्कूल की नैतिक शिक्षा की पुस्तकों में शामिल किये गये हैं, उन्हें धार्मिक या साम्प्रदायिक नजरिए से देखना गलत है।
Srimad Bhagavad Gita: श्रीमद्भागवत गीता के प्रबंधन सूत्रों से उत्साहित हैं मैनेजमेंट गुरु
देश-विदेश के नामचीन मैनेजमेंट गुरु श्रीमद्भागवत गीता के प्रबंधन सूत्रों का लाभ उठा कर उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल कर रहे हैं। देश की विभिन्न तमाम नामी-गिरामी कम्पनियों के एचआर प्रबंधकों के मुताबिक गीता में प्रतिपादित प्रबंधन सूत्रों का अनुसरण कर कोई भी व्यक्ति सहज ही अपनी उन्नति और विकास कर सकता है। गीता कहती है “योगः कर्मसु कौशलम्।” यानी कार्यफल में समता रूपी निपुणता प्राप्त कर लेना। किसी कार्य में समग्र रूप से निमग्न हो जाना ही योग है। कार्य के संग अनासक्त भाव ही निष्काम कर्म है।
आसक्ति ही कर्म का बंधन बनती है। प्रत्येक कर्म के पीछे निहित उद्देश्य ही कर्मफल के रूप में हमारे सामने आता है और हमें उस भोग को भोगना ही पड़ता है, मगर गीता के सूत्रों पर पूरी निष्ठा से अमल करने से लक्ष्यसिद्धि सहज ही की सकती है। गीता (Srimad Bhagavad Gita) के इन्हीं दिव्य सूत्रों के नतीजों से उत्साहित होकर आज पूरी दुनिया में गीता का प्रशासकीय प्रबंधन के ज्ञान भंडार के रूप में अध्ययन-मनन किया जा रहा है। इसमें वर्णित व्यावहारिक ज्ञान न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी कुशल प्रबंधन का अचूक मंत्र साबित हो रहा है। इसके माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण ने संसार को धर्मानुसार कर्म करने की प्रेरणा दी है।
इसकी शिक्षाएं किसी काल, धर्म, संप्रदाय या जाति विशेष के लिए नहीं अपितु संपूर्ण मानव जाति के लिए उपयोगी हैं। उपादेयता की दृष्टि से इन सर्वकालिक सूत्रों पर गहराई से विचार करने से प्रतीत होता है कि मानों ये उपदेश भगवान श्रीकृष्ण ने आज की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए ही दिए हैं। यही कारण है कि आईआईएम से लेकर दूसरे मैनेजमेंट स्कूलों तक सभी में गीता (Srimad Bhagavad Gita) को प्रबंधन की किताब के रूप में स्वीकार किया गया है। मल्टीनेशनल कंपनियां श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों का इस्तेमाल कर कर्मचारियों में नई ऊर्जा का संचार कर रही हैं। कर्मचारियों को गीता का ज्ञान देने के लिए बाकायदा मोटिवेशनल ओरेटर-लेक्चरर और धर्मगुरुओं को आमंत्रित किया जा रहा है।
सुप्रसिद्ध मोटिवेशनल ओरेटर विवेक बिंद्रा (Vivek Bindra) के मुताबिक
सुप्रसिद्ध मोटिवेशनल ओरेटर विवेक बिंद्रा के मुताबिक, जिस तरह गीता (Srimad Bhagavad Gita) के पहले अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण शांत भाव से अर्जुन की सारी बात सुनते हैं, उसी तरह कंपनी के वरिष्ठों को भी अपने अधीन कर्मचारियों की बात पूरी गहराई से सुननी व समझनी चाहिए। जैसी मनुष्य की मनःस्थिति होती है, उसी के अनुरूप वह काम करता है। यदि कंपनी नुकसान झेल रही है तो गीता में इसका सरल उपाय है- पहले आचार फिर विचार एवं अंत में प्रचार। कर्मचारियों की दक्षता बढ़ाने में गीता के सूत्र बहुत मददगार साबित हुए हैं।
Srimad Bhagavad Gita: श्रीमद्भागवत गीता के स्वर्णिम जीवन सूत्र
1. जो हुआ, अच्छा हुआ। जो हो रहा है, अच्छा हो रहा है। जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा इसलिए इससे उबरें। आप जिस बात पर नाराज हैं, उसे भूल जाइए। नौकरी का इंटरव्यू जो ठीक से नहीं हुआ, या रिश्ता जो काम नहीं कर रहा था, वह होना ही था और ऐसा हुआ। सब कुछ किसी न किसी कारण से होता है। एक कारण है कि आप बुरे दौर से गुजर रहे हैं और एक कारण है कि आप गौरव का आनंद ले रहे हैं। यह एक चक्र है और आपको इसे चुपचाप स्वीकार करने की जरूरत है। आपको भविष्य के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है, न ही आपको अतीत पर ध्यान देना चाहिए। आपका नियंत्रण केवल वर्तमान पर है, इसलिए इसे पूरी तरह से जिएं।
2. आपको काम करने का अधिकार है, लेकिन काम के फल का कभी नहीं।
’कर्म करो, फल की चिंता मत करो’ भगवद्गीता द्वारा दिया गया सबसे बुद्धिमानी भरा संदेश है। आज हम केवल पैसे, बेहतर घर, कार और सुरक्षित भविष्य के लिए काम कर रहे हैं। हम इतने लक्ष्य-संचालित हैं कि हम हर काम केवल परिणामों के बारे में सोचकर करते हैं। उदाहरण के लिए, हम सभी अपने मूल्यांकन के समय अतिरिक्त घंटे काम करते हैं, यह सोचकर कि हमारे बॉस हमारे प्रदर्शन मूल्यांकन पर हमें उच्च दर्जा देंगे। यह ऐसी चीज है, जिससे हमें बचना चाहिए। केवल इसलिए क्योंकि यदि अपेक्षाएं पूरी नहीं होती हैं, तो दर्द अपरिहार्य है। ऐसे में काम करते रहें और बदले में कुछ भी उम्मीद न करें।
3. परिवर्तन ब्रह्मांड का नियम है। आप एक पल में करोड़पति या कंगाल बन सकते हैं। कितना सच है! हमारे जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है। पृथ्वी घूमती रहती है, स्थिर नहीं रहती, दिन खत्म होता है और रात होती है, उमस भरी गर्मी के बाद राहत देने वाला मानसून आता है। यह इस तथ्य को पुष्ट करता है कि नश्वरता ब्रह्मांड का नियम है इसलिए अपने धन पर गर्व करना अपरिपक्वता की निशानी है क्योंकि यह एक मिनट में हवा में उड़ सकता है। परिवर्तन को स्वीकार करने से आप अपने जीवन में किसी भी कठिन परिस्थिति का सामना करने के लिए पर्याप्त रूप से सुसंगत हो जाते हैं।
4. आत्मा न तो जन्म लेती है, न ही मरती है। अगर हमारे अंदर डर भर दिया जाए तो हम कुछ भी हासिल नहीं कर सकते। डर महत्वाकांक्षा, सपने और यहां तक कि प्रगति की थोड़ी सी भी संभावना को खत्म कर देता है। एक निडर आत्मा को चिंता करने की कोई बात नहीं है, क्योंकि वह जानती है कि उसे पिंजरे में नहीं रखा जा सकता और न ही उसे रोका जा सकता है इसलिए मृत्यु का डर बेतुका है, क्योंकि हमारी आत्माएं मरती नहीं हैं। डर और चिंता दो दुश्मन हैं, जो हमारी भलाई में बाधा डालते हैं। हमें उन्हें अपने दिमाग से पूरी तरह से मिटाने का प्रयास करना चाहिए।
5. तुम खाली हाथ आए थे और खाली हाथ ही जाओगे। हम भौतिक चीजों से इतना जुड़ जाते हैं कि हम अक्सर भूल जाते हैं कि हम कुछ भी अपने साथ नहीं ले जाएंगे। भौतिक चीजों से लगाव एक ऐसी चीज है, जिस पर हमें ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि हम चीजों को अपने पास नहीं रखते, चीजें हमें अपने पास रखना शुरू कर देती हैं।
6. काम, क्रोध और लोभ ये तीन आत्म-विनाशकारी नरक के द्वार हैं। काम, क्रोध और लोभ ने हमारा कुछ भला नहीं किया है। बेवजह की लालसा आपको विकृत बना देगी, क्रोध लोगों को आपसे दूर कर देगा और लालच आपको कभी संतुष्ट नहीं होने देगा।
7. मनुष्य अपने विश्वास से बनता है। जैसा वह विश्वास करता है, वैसा ही वह बनता है। आप वही हैं, जो आप सोचते हैं कि आप हैं। आपके विचार आपको बनाते और परिभाषित करते हैं। अगर आपको लगता है कि आप एक खुश व्यक्ति हैं, तो आप खुश हो जाते हैं। अगर आप अपने मन में उदास विचारों को हावी होने देते हैं, तो आप एक दुखी व्यक्ति बन जाते हैं।
8. जब ध्यान में निपुणता आ जाती है, तो मन वायु रहित स्थान में दीपक की लौ की तरह अविचल रहता है। हम ध्यान को उबाऊ मानते हैं। कौन अपनी आँखें बंद करके और बुरे विचारों से दूर होकर शांत बैठ सकता है ? लेकिन हमें वास्तव में अपने व्यस्त कार्यक्रम से कुछ मिनट निकालकर ध्यान में बैठने की जरूरत है ताकि आंतरिक शांति प्राप्त हो सके। चाहे वह हमारे आरामदायक घर का एक शांत कोना हो या फिर ऑफिस का एकांत स्थान, अपनी आंखें बंद करके शांति से बैठने से आपको मन की असीम शांति मिलेगी।
9. जो संदेह करता है, उसके लिए न तो यह लोक है, न परलोक है और न ही कोई सुख है। संदेह गलतफहमियां पैदा करते हैं। वे आपको भ्रमित करते हैं और अस्पष्ट विचारों से आपके दिमाग को धुंधला कर देते हैं। वे अनिर्णय की स्थिति भी लाते हैं और आपको कायर बनाते हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप किसी रिश्ते में हैं और यदि आपको अपने साथी की वफादारी और प्यार पर संदेह है तो आप अपने रिश्ते को कभी आगे नहीं बढ़ा पाएंगे। प्यार में कोई संदेह नहीं होता। अगर ऐसा है, तो यह प्यार नहीं है।
10. एक व्यक्ति अपने मन के प्रयासों से ऊपर उठ सकता है या खुद को नीचे गिरा सकता है, इसी तरह क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति स्वयं अपना मित्र या शत्रु होता है। आप खुद अपने सबसे अच्छे दोस्त हैं। अगर आपको कोई समस्या है, तो उसका समाधान सिर्फ आपके पास होगा, आपके दोस्त के पास नहीं। अपने सवालों के जवाब पाने के लिए आपको अपने अंदर झाँकना होगा।
Srimad Bhagavad Gita: श्रीमद्भागवत गीता से प्रभावित विदेशी विभूतियां
महान पाश्चात्य वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन को एकेश्वरवाद पर आधारित श्रीमद्भागवत गीता (Srimad Bhagavad Gita) ने भीतर तक गहराई से प्रभावित किया था। आइंस्टीन गीता में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए उपदेशों से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने कहा कि “जब मैंने गीता को पढ़ा तो मुझे पता चला कि ईश्वर ने कैसे दुनिया को बनाया है और मुझे यह अनुभव हुआ कि प्रकृति ने हर वस्तु कितनी प्रचुरता में प्रदान की है।” हम इसकी कल्पना नहीं कर सकते कि भागवत गीता ने मुझे कठिन परिश्रम करने के लिए कितना प्रेरित किया है। मैं आप सब से कहना चाहता हूं कि गीता को जरूर पढ़ें और आप खुद देखेंगे कि उसने आपके जीवन को कितना प्रभावित किया है।
इसी तरह अमेरिका के सुप्रसिद्ध प्रकृतिवादी, दार्शनिक व कवि हेनरी डेविड थोरो भारतीय दर्शन और आध्यात्म से बहुत प्रभावित थे। उन्हें सबसे ज्यादा लोकप्रियता अपनी किताब ‘’वाल्डेन’’ के लिए मिली, जो एक ऐसे राज्य के विरुद्ध अवज्ञा की बात करता है, जो अपने नागरिकों के साथ अन्याय करता है। उन्होंने अपनी प्रसिद्ध किताब “वाल्डेन” में भगवत गीता का कई बार उल्लेख किया है। वह किताब के पहले अध्याय में लिखते हैं “पूरब के देशों के दर्शन की तुलना की जाए तो वह सबसे ज्यादा ‘’श्रीमद्भागवत गीता’’ से प्रभावित हैं।”
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भौतिक वैज्ञानिक जे रॉबर्ट ओपेनहाइमर “श्रीमद्भागवत गीता’’ का उल्लेख करते हुए कहा था
अमेरिका के भौतिक वैज्ञानिक जे रॉबर्ट ओपेनहाइमर (J. Robert Oppenheimer) को परमाणु बम का जनक कहा जाता है। वह द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान में हिरोशिमा और नागासकी पर किए गए परमाणु हमले में शामिल थे। परमाणु हमले के बाद उन्होंने ‘’ श्रीमद्भागवत गीता’’ का उल्लेख करते हुए कहा था कि उन्हें उस वक्त भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश याद आया। जब वह अर्जुन से कहते हैं कि तुम केवल अपना कत्र्तव्य निभाओ। “मैं अब मृत्यु हूं और दुनिया को खत्म करने वाला बन गया हूं” बाद में ओपेनहाइमर ने कहा था कि ‘’श्रीमद्भागवत गीता’’ ने उनके जीवन में सबसे ज्यादा प्रभाव डाला है। उन्होंने परमाणु परीक्षण के विषय में बाद में गीता का उल्लेख करते हुए कहा, “हम जानते हैं कि दुनिया पहले जैसी नहीं रहेगी, कुछ लोग खुश होंगे, कुछ रोएंगे, ज्यादातर लोग चुप रहेंगे। मुझे गीता की पंक्तियां याद आ रही हैं कि भगवान विष्णु राजकुमार को उसका कर्तव्य समझाते रहे हैं और वह उसे अपना बहुभुजी रूप दिखा रहे हैं।”
पूनम नेगी
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