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अमृतलाल वेगड़ : जिन्होंने नदी के लिए जिया जीवन

वे ऐसी शख्सियत थे जो उनसे एक बार मिला वह उनका हो गया समझो। नदी से प्यार कैसे किया जाता है, क्यों नदियों की जीवित रखना है, जो सूख चुकी हैं, उन्हें कैसे जीवित करें। ऐसे तमाम प्रयास उनसे जुड़े हैं, जिन्हें अपने जीते जी तो वे करते ही रहे, किंतु उनकी मृत्यु के बाद जिस ज्ञान गंगा को वे पुस्तकों, लेखों के माध्यम से अद्यतन कर गए, उससे प्रेरणा लेकर अनेक लोग आज उनके बताए रास्ते पर चल रहे हैं। कह सकते हैं कि महात्मा गांधी ने जिस तरह से स्वतंत्रता आन्दोलन में सादगी पूर्ण जीवन जीने वाले अपने जैसे अनेकों गांधी देशभर में खड़े कर दिए थे, वैसे ही प्रकृति और नदियों से प्यार करने वाले अमृतलाल वेगड़ भी अपनी पुस्तकों की जीवन्तता से अब तक अनेक बेगड़ देश के कोने-कोने में खड़े करने में सफल हुए हैं।

वस्तुत: उन्होंने नर्मदा यात्रा के अपने जुनून को नदी की निर्मल धार की भांति शब्दों में बांधकर अनेक भाषाओं के पाठकों को नदी से प्यार करना सिखाया है। जीवनदायिनी नर्मदा के साथ-साथ बहने वाले, नर्मदा को भिन्न-भिन्न रूपों में चित्रित करने वाले, नर्मदा की हर बूंद के एहसास को शब्दों में बांधकर पुस्तक देने वाले पर्यावरण प्रेमी अमृतलाल वेगड़ आज उन सभी को याद आ रहे हैं, जो उनके किए कार्यों से अभीभूत हैं।

“हम हत्यारे हैं, अपनी नदियों के हत्यारे। क्या हाल बना दिया है हमने नदियों का ? नर्मदा तट के छोटे-से-छोटे तृण और छोटे-से-छोटे कण न जाने कितने परिव्राजकों, ऋषि-मुनियों और साधु-संतों की पदधूलि से पावन हुए होंगे। यहाँ के वनों में अनगिनत ऋषियों के आश्रम रहे होंगे। वहाँ उन्होंने धर्म पर विचार किया होगा, जीवन मूल्यों की खोज की होगी और संस्कृति का उजाला फैलाया होगा। हमारी संस्कृति आरण्यक संस्कृति रही। लेकिन अब ? हमने उन पावन वनों को काट डाला है और पशु-पक्षियों को खदेड़ दिया है या मार डाला है। धरती के साथ यह कैसा विश्वासघात है।”

इतनी साफगोई और पीड़ा से हमारी पीढ़ी के अपराध की स्वीकारोक्ति करने वाले नर्मदा नदी के इस प्रेमी का जन्म 03 अक्टूबर, 1928 को नर्मदा के किनारे मध्य प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर में हुआ था। बेगड़जी ने लगभग 90 वर्ष की आयु में 06 जुलाई 2018 को जबलपुर में ही अंतिम सांस ली और नर्मदा तट गौरीघाट पर ही पंचतत्व में विलीन हुए। लगा नर्मदा मैया का साधक, मैया की गोद में ही समा गया।

उनका जो सबसे बड़ा योगदान पर्यावरण और खासकर नर्मदा के महत्व को आधुनिक समय में जन-जन के बीच पहुंचाने को लेकर दिखाई देता है वह है नर्मदा अंचल में फैली बेशुमार जैव विविधता से दुनिया को परिचित कराना। हजारों किलोमीटर पैदल चलकर नर्मदा की पूरी यात्रा अपने जीवन में वे करने में सफल रहे । इस दौरान अमृतलाल बेगड़ ने अकूत सौंदर्य बटोरा, अनगिनत स्केच बनाए, दर्जनों संस्मरण लिखे।

अमृतलाल वेगड़ की दृष्टि में नर्मदा सौंदर्य की नदी है। लेकिन वे नर्मदा की आत्मकथा में आगाह करते हैं और कहते हैं ”याद रखो, पानी की हर बूँद एक चमत्कार है। हवा के बाद पानी ही मनुष्य की सबसे बड़ी आवश्यकता है। किन्तु पानी दिन पर दिन दुर्लभ होता जा रहा है। नदियाँ सूख रही हैं। उपजाऊ जमीन ढूहों में बदल रही है। आये दिन अकाल पड़ रहे हैं। मुझे खेद है, यह सब मनुष्यों के अविवेकपूर्ण व्यवहार के कारण हो रहा है। अभी भी समय है। वन विनाश बन्द करो। बादलों को बरसने दो। नदियों को स्वच्छ रहने दो। केवल मेरे प्रति ही नहीं, समस्त प्रकृति के प्रति प्यार और निष्ठा की भावना रखो। यह मैं इसलिये कह रहा हूँ क्योंकि मुझे तुमसे बेहद प्यार है। खुश रहो मेरे बच्चों !”

बेगड़ इस बात को बार-बार कहते रहे और हम सभी मनुष्यों को वर्तमान के साथ भविष्य के खतरे को भी बताते रहे कि जीवन की उत्पत्ति पानी में हुई। पर धीरे-धीरे पानी से जीवन समाप्त होता जा रहा है। समुद्र ही ब्रह्म है। सारे जीवों की उत्पत्ति समुद्र से हुई है। समुद्र विष्णु भी है। धरती के तीन चौथाई भाग में फैले और 97 फीसदी पानी धारण करने की क्षमता रखता है, सारा मानसून का पानी समुद्र से ही आता है जिससे खेत-खलिहान, जमीन-जंगल, कुंए- बावड़ी सब में जीवन मानसून से ही आता है। समुद्र ही संहार कर सकता है। अगर हम नदियों को मारते रहे, जल-जंगल-जमीन का सत्यानाश करते रहे तो ग्लोबल वार्मिंग, विषाक्त होती नदियां और जहरीली हवा धरती पर जीवन को संकट में डाल देगी।

अपने बारे में भी वे बहुत साफगोई से लिखते हैं कि ‘यह ठीक है कि मैं चित्रकार भी हूं और लेखक भी हूं लेकिन मैं साधारण चित्रकार और लेखक भी साधारण ही हूं। पहले मैं सोचता था कि क्या ही अच्छा होता भगवान मुझे केवल चित्रकार बनाता लेकिन उच्च कोटि का चित्रकार। या सिर्फ लेखक बनाता लेकिन मूर्धन्य कोटि का लेखक। भगवान ने मुझे आधा इधर आधा उधर, आधा तीतर आधा बटेर क्यों बनाया, परन्तु अब सोचता हूं कि अगर मैं केवल चित्रकार होता भले ही बड़ा चित्रकार तो नर्मदा के बारे में कौन लिखता… और केवल लेखक होता भले ही प्रकांड लेखक तो नर्मदा के चित्र कौन बनाता ? नर्मदा को असाधारण लेखक या असाधारण चित्रकार के बजाय एक ऐसे आदमी की जरूरत थी जिसमें से दोनों बातें हो फिर वह साधारण ही क्यों ना हो। दुनिया को मुझ जैसे साधारण आदमियों की भी जरूरत है।’

वस्तुत: अपनी नर्मदा यात्रा के दौरान हुए अनुभवों को उन्होंने अत्यंत रसपूण, भावपूर्ण भाषा शैली में हिन्दी की पुस्तकों- अमृतस्य नर्मदा, सौंदर्य की नदी नर्मद, नर्मदा तुम कितनी सुंदर हो और तीरे-तीरे नर्मदा में प्रस्तुत किया है । इसके साथ ही उनकी प्रसिद्ध पुस्तक ‘नर्मदा की परिक्रमा’ है । जिस पाठक ने इन पुस्तकों को पढ़ा, वह नर्मदा का प्रेमी हो गया। अपने यात्रा वृत्तांत में उन्होंने न सिर्फ नर्मदा के भिन्न रूपों को वर्णित किया बल्कि पाठकों को जैवविविधता और नर्मदा संरक्षण के प्रति जागरूक भी किया।

वे लिखते हैं- नर्मदा तट से लौटता, तो नर्मदा मेरी आँखों के आगे झूलती रहती, उसकी आवाज मेरे कानों में गूँजती रहती। नर्मदा मेरी रग-रग में प्रवाहित होती रहती। इसलिये मेरा मन चिल्ला-चिल्ला कर कहना चाहता है, ‘सुनिए, मैं नर्मदा तट से आ रहा हूँ। उसके सौन्दर्य का थोड़ा-सा प्रसाद लेकर आया हूँ। लीजिए और अगर अधिक पाने का मन करे, तो एक दिन पौ फटने पर अपने घर का दरवाजा बन्द करके सीधे नर्मदा तट की ओर चल दीजिए। सुन रहे हैं न आप लोग, मैं नर्मदा तट का वासी बोल रहा हूँ।”

उन्होंने गुजराती में सात, बाल साहित्य से जुड़ी आठ से दस पुस्तकें लिखीं। इन पुस्तकों के पाँच भाषाओं में तीन-तीन संस्करण अब तक निकल चुके हैं । कुछ का विदेशी भाषाओं में भी अनुवाद भी हुआ है। पुरस्कार के स्तर पर गुजराती और हिंदी में ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ और ‘महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार’ जैसे अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों से उन्हें सम्मानित किया गया था। 2018 में ‘माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय’ के दीक्षांत समारोह में भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू द्वारा मानक उपाधि अमृतलाल जी को प्रदान की गयी थी।

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उनके बारे में अंत में यही कहना होगा कि अपनी पुस्तकों के जरिए नर्मदा प्रेमी अमृतलाल वेगड़ हमारे बीच न होकर भी सदैव हमारे साथ बने हुए हैं और आगे भी बने रहेंगे। जब तक नर्मदा की निर्मल धार बहती रहेगी तब तक नर्मदामय जीवन जीनेवाले ‘अमृत’ का अंश नर्मदा से समुद्र में मिल पूरे संसार में पानी और प्रकृति के महत्व को हम सभी के बीच अपनी पुस्तकों से समझाता रहेगा ।

डॉ. मयंक चतुर्वेदी

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