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मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ताः क्यों याद आ रहा शाहबानो का 40 साल पुराना केस ?

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New Delhi: 10 july 2024 को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि भरण पोषण कोई दान या चैरिटी नहीं है बल्कि यह विवाहित महिलाओं का अधिकार है और यह सभी विवाहित महिलाओं पर लागू होता है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। जस्टिस बी॰ वी॰ नागरत्ना (B. V. Nagarathna) की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 (Section 125 of the Code of Criminal Procedure) के तहत मुस्लिम महिला (muslim woman) भी अपने पति से गुजारा भत्ता (alimony) मांगने की हकदार है।

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मुस्लिम महिलाओं के हक में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि कोई भी मुस्लिम तलाकशुदा महिला (muslim divorced woman) अपने पति से गुजारा भत्ता मांग सकती है। इसके लिए महिलाएं सीआरपीसी की धारा 125 (Section 125 of CrPC) के तहत याचिका दायर करने की बात की है।

पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि गुजारा भत्ता कोई दान नहीं हैं, बल्कि हर विवाहित महिला का अधिकार है और सभी विवाहित महिलाएं इसकी हक की हक़दार हैं, सभी धर्म की महिलाओ को सामान रूप से लाभ होगा इस नियम में कहा गया, ‘मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 को CrPC की धारा 125 के धर्मनिरपेक्ष और धर्म तटस्थ प्रावधान (Secular and religion neutral provisions) पर वरीयता नहीं देनी होगी।’

गुजारा भत्ता दान नहीं है

पीठ ने आगे कहा कि गुजारा भत्ता दान नहीं है, बल्कि विवाहित महिलाओं का अधिकार है। यह धारा सभी विवाहित महिलाओं (Married Women) पर लागू होती है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। मुस्लिम महिलाएं भी इस प्रावधान (Provision) का सहारा ले सकती हैं। जस्टिस नागरत्ना (Justice Nagarathna) ने फैसला सुनाते हुए कहा कि हम इस निष्कर्ष के साथ आपराधिक अपील को खारिज कर रहे हैं कि Act 125 सभी महिलाओं पर लागू की जायेगी।

क्या है मामला?

अब्दुल समद नाम के एक मुस्लिम व्यक्ति ने अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देने के Telangana High Court के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट में व्यक्ति ने दलील दी थी कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला (CrPC) की धारा 125 के तहत याचिका दायर करने की हकदार नहीं है। तलाक पर अधिकारों का संरक्षण महिला को मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986 अधिनियम (Muslim Women Act, 1986 Act) के प्रावधानों का पालन करना होगा। ऐसे में कोर्ट के सामने सवाल यह था कि इस मामले में मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986 को प्राथमिकता दी जाए या सीआरपीसी की धारा 125 को।

याचिकाकर्ता के वकील वसीम कादरी (Wasim qadri) की दलीलें सुनने के बाद Supreme Court ने 19 फरवरी को मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। उसने मामले में कोर्ट की मदद के लिए वकील गौरव अग्रवाल को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया था। कादरी ने दलील दी थी कि 1986 का कानून मुस्लिम महिलाओं के लिए सीआरपीसी की धारा 125 से ज्यादा फायदेमंद है।

तेलंगाना हाईकोर्ट ने 13 दिसंबर, 2023 को समद की पत्नी को अंतरिम गुजारा भत्ता देने के मामले में फैमिली कोर्ट के फैसले पर रोक नहीं लगाई। हालांकि, उन्होंने गुजारा भत्ता की राशि 20,000 रुपये प्रति माह से घटाकर 10,000 रुपये कर दी, इसका भुगतान याचिका दायर करने की तारीख से किया जाना था।

समद ने हाईकोर्ट में दलील दी थी कि दंपति ने 2017 में पर्सनल लॉ के अनुसार तलाक ले लिया था और उनके पास तलाक का प्रमाण पत्र भी है, लेकिन फैमिली कोर्ट ने इस पर विचार नहीं किया और उनकी पत्नी को अंतरिम गुजारा भत्ता देने का आदेश जारी किया।

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शाहबानों वाले मामले से क्यों जोड़ा जा रहा फैसला

1985 में भी सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो मामले में अपने फैसले में कहा था कि सीआरपीसी की धारा 125 एक धर्मनिरपेक्ष धारा है, जो सभी महिलाओं पर लागू होती है। इसके बाद 1986 में तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने संसद में मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम (Muslim Women (Protection of Rights on Divorce) Act) पारित करके इस फैसले को पलट दिया था।

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