शहीदों के मान के साथ बजट और किसान की भी बात

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जो कुछ भी कर रहे हैं, उसके पीछे उनकी दरंदेशी सोच तो है ही, देश को जोड़ने और उसे विकास पथ पर ले जाने की मंशा भी है। चौरी चौरा जनाक्रोश शताब्दी समारोह में केवल शहीदों की ही बात नहीं हुई, देश के विकास के तमाम आयामों पर भी चर्चा हुई। केंद्रीय बजट पर चर्चा हुई। किसानों पर चर्चा हुई। शहीदों की उपेक्षा पर चर्चा हुई। विपक्ष पर हमले भी हुए लेकिन शालीनता के दायरे में। सच भी है। लोकतंत्र में ऐसा होना भी चाहिए। अपने सपनों की पूर्ति की चाहत तो सबको होती है लेकिन जो देश की रक्षा के लिए प्राणोत्सर्ग करने वाले शहीदों के सपनों को पूरा करने की बात सोचे, जीना तो उसी का सार्थक है।

चौरी चौरा कांड पर शहीदों को श्रद्धांजलि देने की औपचारिकता तो हर साल होती रही है। उसपर अखबारों में सामग्री भी छपती रही है लेकिन इसबार चौरी चौरा कांड की जनशताब्दी पर पूरे उत्तर प्रदेश में उत्सव मनाने की, उनपर डाक टिकट जारी करने की बात सोची गई। यह बड़ी बात है। चौरी चौरा कांड का नाम चौरी चौरा जनाक्रोश करने के बारे में सोचना ही शहीदों को अलहदा और बड़ा सम्मान है और उससे भी बड़ा सम्मान है, शहीदों के स्मारकों पर वंदेमातरम का गायन। चौरी चौरा कांड के नायकों के 99 परिजनों का सम्मान। शहीदों की याद में सांस्कृतिक कार्यक्रम हों, एकसाथ 30 हजार से ज्यादा लोग वंदे मातरम गाएं, वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाएं, इससे विलक्षण और अभूतपूर्व क्षण भला और क्या होगा? उत्तर प्रदेश के सभी 75 जिलों में चौरी चौरा जनाक्रोश की शताब्दी मनाई जा रही है।

यह एक ऐसा आयोजन है जो केवल एक दिन की औपचारिकता तक सीमित नहीं है। यह पूरे एक साल चलने वाला कार्यक्रम है। इस समारोह की शुरुआत वर्चुअली ही सही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने केवल चौरी चौरा के शहीदों को ही याद नहीं किया, उनके बहाने उत्तर प्रदेश के सभी शहीदों को श्रद्धांजलि देने का अभियान शुरू किया है। उत्तर प्रदेश के सभी 75 जिलों में शहीदों के स्मारकों पर समारोह आयोजित करना प्रदेश के हर नागरिक को आह्लादित भी करता है और उन्हें राष्ट्रीय चिंतनधारा से जोड़ता भी है। यह कार्यक्रम इसलिए भी अहम हो जाता है कि गोरखपुर में चौरी चौरा महोत्सव सालभर चलेगा। इसमें वंदे मातरम गायन का भी रिकॉर्ड बनेगा। साहित्यिक, सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे। इसमें बड़े और छोटे कलाकारों की सहभागिता होगी और उससे भी बड़ी बात यह कि स्वातंत्र्यवीर क्रांतिकारियों के जीवनवृत्त, बलिदान और शौर्यगाथाओं से लोग रूबरू होंगे।

योगी सरकार ने पाठ्यक्रमों में भी क्रांतिकारियों के जीवनवृत्त को शामिल करने का दावा किया है। प्रधानमंत्री ने भी 26 जनवरी को लेखकों से क्रांतिकारियों की जीवन गाथा लिखने का आग्रह किया है। प्रधानमंत्री की अपील का मतलब है कि देशभर की भूली बिसरी हस्तियों को याद करने का काम होगा। इस मुहिम के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बधाई के पात्र हैं। जिस मंगल उद्देश्य के साथ इस चौरी चौरा जनाक्रोश शताब्दी समारोह को हाथ में लिया है, वह अपने मकसद में सफल हो, यही कामना है।

प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर बहुत उल्लेखनीय बात कही है। उनका मानना है कि सौ साल पहले चौरी चौरा में क्रांतिकारियों द्वारा आगजनी की गई थी लेकिन क्यों की गई थी, उन उद्देश्यों को जानने-समझने की जरूरत है। वह आग केवल थाने में ही नहीं लगी थी बल्कि लोगों के दिलों में भी लगी थी। उन्होंने स्वीकार किया है कि चौरी चौरा कांड के शहीदों को इतिहास में अपेक्षित जगह नहीं मिल पाई लेकिन यहां की मिट्टी में मिला उनका खून हमें इस बात के लिए प्रेरित करता है कि हम चौरी चौरा के शहीदों को इतिहास की पुस्तकों में मुकम्मल जगह दिलाएं। इस अवसर पर उन्होंने शहीदों को फांसी के फंदे से बचाने वाले, अंग्रेजी अदालत में उनकी पैरवी करने वाले बाबा राघव दास और महामना मदन मोहन मालवीय को भी याद किया। उन्होंने इस बात की ओर भी देश का ध्यान इंगित किया कि शताब्दी समारोह के कार्यक्रमों को लोक कला और आत्मनिर्भरता से जोड़ने का प्रयास किया गया है। सामूहिकता की जिस शक्ति से देश को गुलामी की बेड़ियों से मुक्ति मिली थी वही शक्ति भारत को दुनिया की बड़ी ताकत भी बनाएगी। यही शक्ति आत्मनिर्भरता का मूल आधार है।

प्रधानमंत्री बोलें और देश के विकास में गांव और किसान की बात न हो, ऐसा मुमकिन नहीं है। उन्होंने सुस्पष्ट तौर पर कहा है कि चौरी चौरा कांड के नायकों को सहयोग देने में यहां के किसानों की बड़ी भूमिका रही है। आजादी की लड़ाई में भारतीय किसानों ने भी क्रांतिकारियों जैसी ही भूमिका निभाई है। यह बात उन्होंंने तब कही है जब हजारों किसान दिल्ली के टीकरी, सिंघु और गाजीपुर बाॅर्डर पर केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन नए कृषि सुधार कानूनों को खत्म करने के लिए दो माह से आंदोलन कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने देशभर के किसानों को आश्वस्त किया है कि उनकी सरकार ने किसानों के हित में पिछले 7 साल में बहुत काम किए हैं। मौजूदा बजट में किसानों के लिए कई बड़े कदम उठाए गए हैं। किसानों को कहीं भी अपनी फसल बेचने की आजादी दी गई है। सरकार के मौजूदा सभी निर्णय किसानों की समृद्धि और बेहतरी का माध्यम बनेंगे। किसानों की जमीन पर किसी की बुरी नजर नहीं पड़ेगी।

उन्होंने कहा कि बजट से पहले लोग कह रहे थे कि कोरोना संकट की वजह से सरकार को जनता पर बोझ डालना ही पड़ेगा। कर बढ़ाना पड़ेगा, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया। सरकार ने देश को आगे बढ़ाने के लिए ज्यादा खर्च करने का फैसला लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मानें तो यह खर्च देश में चौड़ी सड़कें बनाने, गांवों को शहरों, बाजारों और मंडियों से जोड़ने के लिए होगा। पुल बनाने, रेल पटरी बिछाने, नई रेल, नई बसें चलाने में होगा। पढ़ाई-लिखाई की व्यवस्था अच्छी करने के लिए होगा। सरकार निर्माण पर ज्यादा खर्च करेगी तो देश के लाखों नौजवानों को रोजगार भी मिलेगा और उनकी आमदनी के नए मार्ग भी प्रशस्त होंगे। उन्होंने पहले और अब के बजट का फर्क सुस्पष्ट करते हुए कहा है कि पहले बजट में यह होता था कि किसके नाम पर कितनी घोषणाएं की गईं। बजट को वोट-बैंक का बही-खाता बना दिया गया था। बजट ऐसी घोषणाओं का जरिया बन गया था, जो पूरी ही नहीं होती थीं। अब देश ने वह सोच और एप्रोच बदल दी है।

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मतलब अपने भाषण में उन्होंने सरकार की सोच और देश के विकास का विजन तय कर दिया है। यह और बात है कि विपक्ष केंद्र सरकार के हालिया बजट में भी चार राज्यों के आसन्न चुनावों की झलक देख रहा है लेकिन कुल मिलाकर बात नजरिए की है। कुल मिलाकर किसानों, नौजवानों, गांवों, शहरों, बाजारों और कृषि मंडियों की बात कर प्रधानमंत्री ने देश को रचनात्मक विकास की जो नई चिंतनधारा दी है, उसके दूरगामी परिणाम होंगे।

सियाराम पांडेय